मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अनुरोध पर तेलंगाना में जम्मू-कश्मीर के छात्रों पर विशेष रियायतों की वर्षा !

IIT-Hyderabad

नरेंद्र मोदी सरकार, हाथों में पत्थर लेकर सडकों पर उतरने वाले कश्मीरी नौजवानों को देश की मुख्य धारा में लाने की लगातार कोशिश कर रही है ! हाल ही में मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा राज्य सरकारों को शैक्षणिक वर्ष 2016-17 के लिए कश्मीर से आने वाले विद्यार्थियों को विशेष रियायतें देने का अनुरोध किया गया है ! 

मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने यह अनुरोध ऐसे समय किया है, जब हिजबुल मुजाहिदीन कमांडर बुरहान वानी की हत्या को लेकर कश्मीर में जनजीवन प्रभावित हुआ है, तथा मजबूरन वहां के कोलेज कई सप्ताह से बंद है।

इस अनुरोध को स्वीकार करते हुए तेलंगाना सरकार ने शैक्षणिक वर्ष 2016-17 के लिए राज्य में व्यावसायिक संस्थानों में प्रवेश के लिए विशेष रियायतों की घोषणा कर भी दी हैं । 

सोमवार को जारी एक सरकारी आदेश का अनुसार तेलंगाना सरकार द्वारा कश्मीरी विस्थापितों के बच्चों को न्यूनतम पात्रता के अंकों में 10% तक छूट दी गई है । इसके अलावा प्रत्येक पाठ्यक्रम में 5% सीटें भी बढ़ा दी गई है, साथ ही सरकार ने तकनीकी और व्यावसायिक संस्थानों के मेरिट कोटा में कम से कम एक सीट उनके लिए आरक्षित करने का फैसला किया है।

राज्य सरकार ने राज्य में तकनीकी और व्यावसायिक संस्थानों में प्रवेश के लिए कश्मीरी विद्यार्थियों के लिए मूल निवासी की शर्तों को भी हटा दिया है।

रियायतें प्रदान करने संबंधी राज्य सरकार द्वारा जारी किए गए आदेश की प्रतिलिपि तकनीकी शिक्षा निदेशक, जवाहरलाल नेहरू टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी, हैदराबाद, तेलंगाना राज्य परिषद के उच्च शिक्षा सचिव को भी भेजी गई है । आदेश में तकनीकी शिक्षा निदेशक और सभी विश्वविद्यालयों के रजिस्ट्रारों को निर्देशित किया गया है कि वे मानव संसाधन विकास मंत्रालय , अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद और राज्य सरकार को इस श्रेणी के अंतर्गत बढाई गई सीटों की संख्या तथा उनमें भर्ती हुए छात्रों संख्या संबंधी जानकारी प्रस्तुत करें ।

स्मरणीय है कि सैकड़ों कश्मीरी छात्र हर साल हैदराबाद के विभिन्न विश्वविद्यालयों में विभिन्न पाठ्यक्रमों में प्रवेश हेतु आते हैं । देखना यह है कि इन सुविधाओं का लाभ लेकर कश्मीरी छात्र पढ़लिखकर राष्ट्र की मुख्यधारा में समाहित होते हैं, या अपनी काबलियत को आतंकी जिहादी मानसिकता पर कुरबान करते हैं ?

सचाई यह है कि कश्मीर अब कोई राजनीतिक समस्या नहीं है, अब यह एक विशुद्ध धार्मिक समस्या है... सर्वे बताते हैं कि बेहतर रिहायश और मकान के मामले में कश्मीरी भारत में दूसरे नंबर पर हैं... बिहार, यूपी, एमपी, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, उड़ीसा आदि राज्यों की अपेक्षा कश्मीरी नागरिक बेहतर आर्थिक सामजिक स्थिति में हैं... पिछले सात दशकों में कांग्रेसी और वामपंथी साजिश के तहत अब कश्मीर एक कट्टर इस्लामी राज्य बन चुका है... आतंकवादी बनने वाले अधिकाँश युवक संपन्न परिवारों के शिक्षित युवक हैं... कश्मीरी अलगाववादियों की फ़टीचर-बदहाल पाकिस्तान में विलय की मांग का आधार भी सिर्फ़ मज़हब ही है... 

योजनाबद्ध तरीके से 1985 से शुरू हुआ कश्मीरी पंडितों का कत्लेआम 1989 तक चरम पर रहा और जो 1995 तक चला... इस दौरान छोटे दुधमुंहे बच्चों सहित दसियों हज़ार कश्मीरी पण्डितों का नादिरशाही बर्बरतापूर्ण क़त्लेआम हुआ... हज़ारों अबलाओं की इज़्ज़त लूटी गयी... चार लाख से सात लाख के दरम्यान कश्मीरी पण्डित अपना सबकुछ छोड़कर रातोरात कश्मीर से जान बचाकर भागने को मज़बूर हुए... कश्मीरी पण्डित वहाँ की सबसे समृद्ध कौम थी, जिनके आलिशान मकान, खेत, बाग़-बागान, दूकान, फैक्ट्रियों, सोना-चांदी समेत खरबों रुपये की परिसंपत्तियां कश्मीरी मुसलमानों ने हथिया लीं ! 

कश्मीर समस्या एक विशुद्ध धार्मिक समस्या है, जिसके निराकरण में विलम्ब भारत जैसे सेक्युलर राष्ट्र को पुनः धार्मिक आधार पर खण्डित कर सकता है... इससे पूरी सख्ती से निपटने की ज़रुरत है, बाकी जो कुछ हो रहा है वह सिर्फ कुर्सी बचाऊ ड्रामा ही है... एक पागल से बातचीत नहीं बल्कि इलेक्ट्रिक शॉक और सख्ती से उपचार की ज़रुरत है. 

सचाई तो यह है कि कश्मीर का मुद्दा विकास नहीं होने की वजह से नही है ऐसा होता तो सभी राज्यों में लोग हथियार उठा लेते ये खालिस जेहादी मसला है जो इस्लामिक सोच और पाक परस्त है। 

pok से कोई कश्मीरी भारतीय सीमा में आतंक मचाने नहीं आता, इस मुद्दे पर केवल पाकिस्तान के हुक्मरान रूचि रखते हैं जनता का कोई लेना देना नहीं।

इनकी सीधी मांग है कश्मीर में शरिया लागु हो इस्लामिक कानून लागू हो और और ज्यादा संप्रभुता मिले और नही तो वे पाकिस्तान में जायेंगे पक्का। चाहे जितना मक्खन लगा लो !

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