हे भगवान – ये सत्यानासी बामपंथी ?



कल 13 सितम्बर को त्रिवेंद्रम से आईएएनएस द्वारा प्रसारित एक समाचार पर नजर गई, जिसमें केरल के मुख्यमंत्री पिनारयी विजयन ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अध्यक्ष अमित शाह पर मलयाली समुदाय का अपमान करने का आरोप लगाया है ! श्री अमित शाह ने कल वामन जयंती के अवसर पर देशवासियों को शुभकामना का सन्देश सोशल मीडिया पर दिया था जो इन वामपंथी महोदय की नज़रों में अपराध है ! 

स्मरणीय है कि वामपंथियों ने जहाँ जहाँ उनका बस चला, अपने प्रभाव क्षेत्र में भारतीय पौराणिक सन्दर्भों का उपयोग समाज को तोड़ने के लिए किया है ! जैसे कि जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में दुर्गापूजन के स्थान पर महिषासुर बलिदान दिवस का आयोजन ! महिषासुर को दलित घोषित कर छल से माँ दुर्गा द्वारा मारा जाना बताकर दलित समाज को शेष हिन्दू समाज से तोड़ने का घातक षडयंत्र ये लोग रचते रहे हैं ! 

उसी प्रकार केरल के परम्परागत ओणम पर्व का उपयोग भगवान विष्णू के वामन अवतार को खलनायक के रूप में प्रस्तुत करने के लिए करना उनकी समाज तोड़क नीति का ही एक भाग है ! केरल के लोग स्वयं को बलि की प्रजा मानते हैं और यह भी मान्यता है कि ओणम के अवसर पर महाबली अपनी प्रजा से मिलने पाताल से उनके बीच आते हैं |धर्म को अफीम का नशा बताने वाले कम्यूनिस्ट धार्मिक मान्यताओं पर भावनाएं भड़काने में कतई नहीं चूके और त्वरित टिप्पणी कर अमित शाह से 'हैप्पी वामन जयंती' कहने पर तुरंत केरल के लोगों से माफी मांगने के लिए कहा है ।

विजयन ने अपने बयान में कहा हैकि बली के शासन काल में कोई बुराई, धोखाधड़ी और गलत काम नहीं होते थे और सभी लोग सद्भाव से रहते थे ! मुख्य मंत्री ने कहा कि मलयाली समानता और समतावाद के प्रतीक के रूप में महाबली को देखते हैं । 

यहाँ दो बातें ध्यान देने योग्य हैं ! पहली तो यह कि भारतीय पौराणिक गाथाओं में सुर (देवता) और असुर (राक्षस) दोनों को एक ही पिता की संतान बताया गया है ! भलाई और बुराई के प्रतिनिधि के नाते दोनों में संघर्ष दर्शाया गया है ! इसमें से यह स्पष्ट ध्वनित होता है कि उस काल में बुराई से लड़ने में अपने पराये का भेद नहीं था ! 

दूसरा यह कि पुराणों में स्पष्टतः उल्लेख है कि भगवान विष्णू ने बलि की अच्छाईयों के मद्देनजर उन्हें न केवल पाताल का राज्य दिया, बल्कि स्वयं उनके द्वारपाल बनना भी स्वीकार किया ! इन सकारात्मक वर्णनों को नजर अंदाज कर केवल मलयाली समाज को शेष भारत से काटने के कम्यूनिस्ट षडयंत्र की जितनी निंदा की जाए कम है ! इस योजना को सफल बनाने का प्रयत्न करने में वामपंथी साहित्यकारों ने अपने शासनकाल में कोई कोर कसर बाक़ी नहीं रखी और इतिहास को विकृत कर सतत अंजाम दिया है !
एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें