बिहार में बहार है, डॉन लालू का यार है ?

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बिहार में बहार है, नीतीश की बयार है ! जीहाँ यही मुख्य नारा गढ़ा था चुनाव प्रबंधन के तथाकथित विशेषज्ञ बिकाऊ प्रबंधक प्रशांत किशोर ...



बिहार में बहार है, नीतीश की बयार है !

जीहाँ यही मुख्य नारा गढ़ा था चुनाव प्रबंधन के तथाकथित विशेषज्ञ बिकाऊ प्रबंधक प्रशांत किशोर ने बिहार चुनाव के दौरान ! इस नारे की असलियत और हकीकत हाल ही में बिहार की भागलपुर जेल से जमानत पर रिहा हुए राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन ने इन शब्दों में बयाँ की –

हमारे नेता तो लालू प्रसाद यादव हैं। नीतीश कुमार तो परिस्थिति वश मुख्यमंत्री हैं, परिस्थितियां बदलीं तो मुख्यमंत्री भी बदल सकता है।

स्मरणीय हैकि यही बात भाजपा के नेता हमेशा कहते रहे हैं कि पर्दे के पीछे से राज्य आज भी लालू प्रसाद यादव का ही है ! अब बात करते हैं लालू प्रसाद यादव के राज की ! वे 1990 से 1997 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे ! उसके बाद भी अपनी पत्नी के नाम पर 2005 तक उनका ही प्रभुत्व बिहार पर कायम रहा | अब देखते हैं कि कैसा था उनका राजकाज –

मार्च 1997 में जवाहर लाल नेहरू विवि छात्र संघ के अध्यक्ष रहे चंद्रशेखर को सीवान में तब गोलियों से छलनी कर दिया गया था, जब वह भाकपा माले के एक कार्यक्रम के सिलसिले में नुक्कड़ सभा कर रहे थे।

1999 में एक सीपीआई (एमएल) कार्यकर्ता का अपहरण कर उसकी हत्या कर दी गई ! मजे की बात यह कि उस ह्त्या के आरोप में गिरफ्तार शख्श मेडिकल आधार पर अस्पताल में शिफ्ट कर दिया गया, जहाँ वह कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें कर न सिर्फ चुनाव तैयारी की समीक्षा करता था बल्कि भारी सुरक्षा के बीच वहीं से फोन पर अधिकारियों, नेताओं से अपने काम भी करवाता था। बेचारा जेडीयू उम्मीदवार ओमप्रकाश, कड़ी टक्कर देने के बावजूद वह हत्यारा ही सीवान का लोकसभा सांसद बन गया। बनता भी कैसे नहीं ? 500 से ज्यादा पोलिंग बूथ लूट जो लिए गए थे !

16 अगस्त 2004 को सीवान के एक व्यवसायी चंद्रकेश्वर उर्फ चंदा बाबू के दो बेटों सतीश राज (23) और गिरीश राज (18) को अपहरण के बाद तेजाब से नहला दिया गया था, जिसके बाद उनकी मौत हो गई थी। इस हत्याकांड के चश्मदीद गवाह चंदा बाबू के सबसे बड़े बेटे राजीव रोशन (36) थे लेकिन मामला की सुनवाई के दौरान गवाही एक सप्ताह पहले ही 16 जून, 2014 को साढ़े आठ बजे रात में राजीव की गोली मारकर हत्या कर दी गई ।

कहने की आवश्यकता नहीं कि उक्त तीनों प्रकरणों का आरोप शहाबुद्दीन पर ही था ! शहाबुद्दीन 11 साल जेल में गुजारने के बाद शनिवार को जमानत पर बाहर निकला ! उसे करीब 12 दूसरे मामलों में पहले ही जमानत मिल चुकी थी ! भाजपा ने आरोप लगाया कि सरकार की मिली भगत से ही उस जघन्य अपराधी को जमानत मिली है ! लालू के बेटे ने तुरंत कहा कि ऐसा आरोप लगाकर भाजपा न्यायालय की अवमानना कर रही है ! शायद इसी को कहते हैं – चोर की दाढी में तिनका ! आखिर क्यों नीतीश कुमार सरकार के मंत्रियों और राजद के कई विधायकों ने जेल से निकलने पर शहाबुद्दीन का स्वागत किया। उनके सैकड़ों समर्थक जेल के बाहर उनका इंतजार कर रहे। वे सैकड़ों गाड़ियों के काफिले के साथ भागलपुर से अपने गृह जिला सिवान के लिए रवाना हुए।

अब बात करते हैं, शहाबुद्दीन की –

शहाबुद्दीन एक ऐसा है नाम जिसने अपराध की दुनिया से राजनीति में कदम रखा और पूरे प्रदेश की सियासत को बदल कर रख दिया। 10 मई 1967 को सीवान जिले के प्रतापपुर में जन्मा शहाबुद्दीन मात्र 19 साल की उम्र में अपराधी बन गया जब 1986 में उसके खिलाफ पहली बार आपराधिक मुकदमा दर्ज हुआ ! जल्द ही पुलिस ने सीवान के हुसैनगंज थाने में शहाबुद्दीन को ए श्रेणी का हिस्ट्रीशीटर घोषित कर दिया। लालू जी को तो ऐसे होनहार नेताओं की जरूरत ही रहती आई है ! और एक बार उनका वरद हस्त सर पर आते ही शहाबुद्दीन ने फिर पलट कर नहीं देखा ! आरजेडी सरकार के संरक्षण में शहाबुद्दीन सीवान को अपनी जागीर समझने लगा और उसके बिना क्षेत्र का एक पत्ता भी नहीं हिलता था।

सिवान के लोग शहाबुद्दीन के नाम से ही कांप उठते थे। जब कानून तोड़ने वाला ही कानून बनाने लग जाए तो क्या हो, और आखिर यही हुआ। शहाबुद्दीन के खौफ के सामने प्रशासन ने घुटने टेक दिए। SP से लेकर इंस्पेक्टर तक शहाबुद्दीन के रहमोकरम पर वर्दी पहनते थे।

उसने बिहार के चर्चित पैटर्न पर आसानी से पॉलिटिकल साइंस में एमए और पीएचडी कर लिया ! सिवान से चार बार MP और दो बार MLA बना ! 1990 में वह जनता दल के टिकट पर उस समय के सबसे कम उम्र के जनप्रतिनिधि के रूप में विधानसभा पहुंचा। दोबारा उसी सीट से 1995 के विधानसभा चुनाव में भी उसने जीत दर्ज की।

इस बाहुबली नेता का कद इतना बढ़ गया कि पार्टी ने 1996 में लोकसभा का टिकट थमा दिया और एक बार फिर शहाबुद्दीन ने परचम लहराया। 1997 में राष्ट्रीय जनता दल की सरकार बनते ही शहाबुद्दीन की ताकत पहले से कई गुना ज्यादा हो गई और आतंक का दूसरा नाम ही शहाबुद्दीन हो गया। पुलिस की बंद आंखों और सरकार के संरक्षण में शहाबुद्दीन अब खुद ही कानून बन गया था। हर जीत के साथ शहाबुद्दीन खौफ भी बढ़ता गया।

लेकिन साल 2004 के चुनाव के बाद इस बाहुबली का बुरा वक्त शुरू हो गया जब शहाबुद्दीन के खिलाफ राजनीतिक रंजिश के बढ़ते मामलों के बीच कई मामले दर्ज किए गए। सीवान के प्रतापपुर में पुलिस छापे के दौरान घर से कई अवैध आधुनिक हथियार जिसमें सेना के नाइट विजन डिवाइस और पाकिस्तानी शस्त्र फैक्ट्रियों में बने हथियार बरामद होने के बाद और हत्या, अपहरण, बमबारी, अवैध हथियार रखने और जबरन वसूली करने के दर्जनों मामले में शहाबुद्दीन को कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई ।

सजायाफ्ता शहाबुद्दीन पर 2009 में चुनाव लड़ने पर रोक लगी,तो उसने अपनी पत्नी हिना शहाब को चुनाव लड़वाया । लेकिन इस चुनाव में जेडीयू उम्मीदवार ओम प्रकाश यादव ने हिना को 1 लाख से भी अधिक मतों से हराया। कहा जाता है कि पत्नी की इस हार से बौखलाए शहाबुद्दीन ने रातोंरात जेडीयू नेता के खास कार्यकर्ताओं की जेल से बैठे-बैठे हत्या करा दी। बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार इस हार के बाद शहाबुद्दीन के कार्यकर्ताओं ने न सिर्फ भाटापोखर गांव में रहने वाले पंचायत मुखिया हरिंदर कुशवाहा को सरकारी कार्यालय में ही गोलियों से छलनी कर हत्या कर डाली बल्कि इसके बाद जेडीयू नेता ओमप्रकाश यादव के घर पर ताबड़तोड़ सैकड़ों राउंड फायरिंग कर पूरे घर पर गोलियों के निशान बना डाले।

जब मार्च 2001 में आरजेडी के स्थानीय अध्यक्ष मनोज कुमार पप्पू के खिलाफ एक वारंट लेकर गिरफ्तारी करने पहुंचे पुलिस अधिकारी संजीव कुमार को शहाबुद्दीन ने न सिर्फ थप्पड़ मार दिया बल्कि समर्थकों से पुलिस वालों की पिटाई भी करवा दी। इस पूरे घटनाक्रम से सकते में आई पुलिस महकमे ने यूपी पुलिस की सहायता लेते हुए इनकी गिरफ्तारी करने के मकसद से शहाबुद्दीन के घर छापेमारी की लेकिन इसके बाद जो हुआ वो शायाद किसी काले दिन से कम नहीं था।

शहाबुद्दीन गिरफ्तारी देने के बजाए पुलिस के साथ गोलीबारी करने में उलझ गया। इस घटना में 2 पुलिसकर्मी सहित 10 लोग मारे गए और पुलिस के कई वाहनों में आग लगा दी गई थी। शहाबुद्दीन और उसके साथी मौके से भाग निकलने में तो सफल रहे लेकिन घटनास्थल से भारी मात्रा में हथियार बरामद किए गए जिसमें एके-47 राइफल्स भी शामिल थे। इस घटना के बाद शहाबुद्दीन पर कई मुकदमे दर्ज किए गए थे। जब्त हथियारों पर पाकिस्तानी मुहर भी गए जिसके चलते बिहार के DGP डीपी ओझा ने केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट में इस बात से अवगत कराया की शहाबुद्दीन के संबंध ISI से है। 

उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार ने लालू यादव की वजह से इस बाहुबली को सपोर्ट किया और शहाबुद्दीन आकर दिल्ली के MP आवास में आकर छिप गया। ऐसा माना जाता है कि तीन महीने तक दिल्ली पुलिस के पास शहाबुद्दीन की गिरफ्तारी का वारंट होने के बाद भी वह हाथ पर हाथ धरके बैठी रही जिसके बाद बिहार पुलिस ने तीन महीने बाद बिना दिल्ली पुलिस की मदद लिए शहाबुद्दीन को गिरफ्तार कर लिया !

2005 के अप्रैल महीने में तत्कालीन डीएम सीके अनिल और एसपी रत्न संजय ने शहाबुद्दीन के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उन्हें कानून के शिकंजे में कस दिया। हालांकि इससे पहले 2003 में डीजीपी बनने के साथ ही डीपी ओझा ने शहाबुद्दीन के खिलाफ सबूत इकट्टे कर कई पुराने मामले को सीआईडी के जरिए फिर से खुलवा दिया था। इसी कारण माले कार्यकर्ता मुन्ना चौधरी के अपहरण व हत्या के मामले में शहाबुद्दीन को अदालत में आत्मसर्पण करना पड़ा। लेकिन इसके साथ ही सूबे की गरमाती सियासत और मामला आगे बढ़ता देख राज्य सरकार ने डीपी ओझा को ही डीजीपी पद से हटा दिया गया। आखिरकार सत्ता से टकराव के कारण उन्हें वीआरएस लेना पड़ा।

तेजाब कांड के आरोप में शहाबुद्दीन को उम्रकैद की सजा दी जा चुकी है। शहाबुद्दीन के ऊपर करीब तीन दर्जन से अधिक मामले दर्ज हैं। ट्रायल कोर्ट के गठन के बाद 12 मामलों का फैसला आ चुका है जिसमें आठ मामलों में एक साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो चुकी है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के कार्यकर्ता छोटे लाल गुप्ता के अपहरण और हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। 1993 से लेकर 2001 के बीच सीवान में भाकपा माले के 18 समर्थकों को अपनी जान गंवानी पड़ी। 2006 में बीजेपी-जेडीयू गठबंधन सरकार के तहत बनाए गए स्पेशल कोर्ट के जिस अदालत में यह केस चल रहा था उसके जज बीबी गुप्ता को ही शहाबुद्दीन ने जान से मारने की धमकी दे डाली। बाद में हाईकोर्ट को इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा और मई 2007 में CPIML के वर्कर छोटेलाल के अपहरण में शहाबुद्दीन को उम्र कैद की सजा सुनाई गई।

इस सबके बावजूद कुछ ही दिन पहले लालू प्रसाद ने उनको राजद की राष्ट्रीय समिति का सदस्य बनाया था । जबकि कुछ माह पहले ही सीवान में हुई स्थानीय पत्रकार राजदेव रंजन की दर्दनाक तरीके से हत्या के बाद शक की सुई शहाबुद्दीन की ओर घूमी थी । शहाबुद्दीन का निकट सहयोगी लड्डन मियाँ उस काण्ड में जेल में है ! जेल से बाहर आते ही शहाबुद्दीन ने फरमाया कि वह उक्त पत्रकार के घर जाकर उसके परिवार से भेंट करेगा ! क्यों करेगा, इसका अनुमान आप लगाते रहिये !

निष्कर्ष –

लालू प्रसाद अपराधियों का संरक्षक है और उनके बूते पर ही उसकी राजनीति चलती है ! नीतीश कुमार एक मेरुदंडविहीन नेता है ! जब वे भाजपा के साथ थे, तब लालू का जंगलराज नहीं था, किन्तु अब जबकि नीतीश केवल मुखौटे हैं, असली शासक लालू ही है ! बिहार में एक बार फिर जंगल राज का दौर शुरू हो चुका है !


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