मिलिए दो गिनीज़ रिकॉर्ड वाले विनोद से, जिन्हें जानती है पूरी दुनिया, मगर दिल्ली सरकार को इनकी ख़बर ही नहीं


दिल में आग हो और कुछ पाने की ललक हो, तो ज़िंदगी में आई रुकावटें ज़्यादा समय तक नहीं टिक पाती हैं. दिल्ली के नांगलोई के रहने वाले विनोद कुमार चौधरी जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में अनुबंध के तहत एक कंप्यूटर ऑपरेटर हैं. वे रोज़ अपनी बाइक से लगभग 30 किमी की यात्रा तय कर काम करने आते हैं. सैलरी के रूप में उन्हें 10 हज़ार रुपये मिलते हैं. मगर सबसे दिलचस्प बात ये है कि वह कोई आम कंप्यूटर ऑपरेटर नहीं, बल्कि देश के बेहद ख़ास इंसान हैं, जो मज़बूरी में अपने और अपने परिवार का पेट पालने के लिए ये नौकरी कर रहा है. गिनीज़ बुक वर्ल्ड ऑफ़ रिकॉर्ड्स में दो रिकॉर्ड दर्ज़ करवाकर देश को सम्मान दिलाने वाले विनोद किसी ‘सुपरस्टार’ से कम नहीं हैं.आइए, आज हम आपको हिन्दुस्तान के उस सुपरस्टार से मिलवाते हैं, जो गुमनामी में जी रहा है.

हंसमुख विनोद, मिलने पर आपको बिल्कुल शांत लगेंगे, आंखों में एक अजीब सी चमक है, जिसे आप महसूस कर सकते हैं. देश की शान और समाज के कल्याण के लिए विनोद हमेशा खड़े रहते हैं. घर में उनके अलावा उनके मां-बाप, पत्नी और तीन बेटियां हैं. तमाम चुनौतियां और जिम्मेदारी होने के बावजूद विनोद का जज़्बा देखने लायक है. सवेरे उठते ही ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहते हैं “हे ईश्वर! मेरे अंदर जो आग है, मुझे उससे कभी मत छीनना.”

वे तमाम चुनौतियों को पार कर एक नई कहानी गढ़ना चाहते हैं. आइए, जानते हैं अब तक के उनके रिकॉर्ड्स के बारे में. दरअसल, विनोद कुमार चौधरी के पास दो गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स हैं.

Fastest Time to Type Using the Nose

विनोद ने अपनी नाक से कंप्यूटर के 103 शब्दों को 46.30 सेकंड में टाइप कर एक रिकॉर्ड बनाया था. हालांकि, अभी हाल में ही इस रिकॉर्ड को भारत के ही हैदराबाद निवासी मोहम्मद खुर्शीद हुसैन ने तोड़ दिया है.

Fastest Time to Type the Alphabet Blindfolded

आंख पर पट्टी बांध कर 6.71 सेकंड्स में सबसे तेज़ कंप्यूटर टाइपिंग करने में रिकॉर्ड बना कर विनोद ने गिनीज़ बुक वर्ल्ड ऑफ़ रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज़ कर लिया.

टाइपिंग का चस्का कैसे लगा?

टाइपिंग के बारे में एक मजेदार किस्सा सुनाते हुए विनोद बताते हैं कि 1997 में वे एक कूरियर कंपनी में काम करते थे. एक दिन कहीं वे कूरियर पहुंचाने गए, वहां उनकी नज़र एक ऐसे शख़्स पर पड़ी, जो कंप्यूटर पर टाइपिंग कर रहा था. तभी उन्हें ख़याल आया कि कंप्यूटर में टाइपिंग करके कुछ और कमाया जा सकता है. उन्होंने टाइपिंग सीखने को अपनी आदत में शामिल कर लिया और आज इसी क्षेत्र में अपनी पहचान बना रहे हैं.

टाइपिस्ट नहीं , वे धावक बनना चाहते थे

विनोद गंभीरता के साथ कहते हैं कि “मेरा सपना तो एक सफ़ल धावक बनने का था. मैं देश के लिए दौड़ना चाहता था, मगर आर्थिक स्थिति और ज़िम्मेदारियों ने मुझे धावक बनने से रोक लिया.”

सरकार सुनती नहीं, सम्मानित क्या करेगी!

दो वर्ल्ड रिकॉर्ड्स बनाने वाले विनोद मायूसी के साथ कहते हैं कि “मेरी मेहनत पर दिल्ली सरकार ने सुध भी नहीं ली. मुझे सरकार से कुछ नहीं चाहिए, बस एक बार हाल-चाल ही पूछ लें. अरविंद केजरीवाल को कई ट्वीट्स भी किए, मगर उनका कोई रिप्लाई नहीं आया. यदि ये मुझे प्रोत्साहित करते तो मुझे ख़ुशी होती.”

प्रैक्टिस के लिए न समय है और न पैसे

प्रैक्टिस के बारे में कहते हैं कि “नौकरी और आने-जाने के बाद इतना समय नहीं मिल पाता कि मैं प्रैक्टिस कर सकूं. मैं और कई कीर्तिमान स्थापित करना चाहता हूं.”

‘मैं भला करता हूं, ताकि कोई और विनोद लाचार ना रह सके’

इन सब के बावजूद विनोद अपने आस-पास रहने वाले ज़रूरतमंद बच्चों को मुफ़्त में टाइपिंग सिखाते हैं. समय बचने के बाद विनोद युवाओं को फिजिकल ट्रेनिंग देते हैं. देश में कई जवान ऐसे हैं, जो उनकी ट्रेनिंग की बदौलत सेना में भर्ती हो चुके हैं.

कुछ लोगों का जन्म इसलिए होता है, ताकि हम और आप उनके प्रयास और मेहनत से सीख ले सकें. विनोद उन्हीं लोगों में से एक हैं. वे एक ऐसे शख़्स हैं, जो किसी भी हालत में अपनी हार स्वीकार नहीं करते हैं. वे समस्याओं को चुनौती देते हुए आगे बढ़ना चाहते हैं. वे देश के लिए ही जीना चाहते हैं और मरना भी.

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