क्या गांधी परिवार में भी चल रहा है आतंरिक सत्ता संघर्ष ?


क्या मुलायम परिवार के बाद सोनिया गांधी के परिवार में भी नेतृत्व को लेकर विवाद हो रहा है ? यह सवाल आजकल उत्तरप्रदेश के आम कांग्रेसी हलकों में जोरशोर से पूछा जा रहा है ! यह तो साफ़ ही है कि प्रियंका और राहुल गांधी के दो अलग अलग खेमे बन गए हैं और दोनों खेमों में जोर आजमाइश भी हो रही है। उत्तर प्रदेश के लेकर कांग्रेस की रणनीति बैठक में प्रियंका के शामिल होने और राहुल के नहीं आने से विवादों की चर्चा ने और भी जोर पकड़ा है । स्मरणीय है कि राहुल इस बैठक में न केवल नहीं आए बल्कि उन्होंने अलग से कांग्रेस के विधायकों और दूसरे नेताओं के साथ बैठक की।

कांग्रेस के नेता मान रहे हैं कि राहुल गांधी का पत्ता पिटा हुआ है। वे कांग्रेस में जान नहीं फूंक सकते हैं। तभी प्रियंका लाओ, कांग्रेस बचाओ का नारा लग रहा है। लेकिन चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में बताया जा रहा है कि कांग्रेस की हालत बहुत पतली। और ऐसे में अगर प्रियंका गांधी का पत्ता भी उत्तर प्रदेश में पिट गया तो क्या होगा?

कांग्रेस के जानकार सूत्रों का कहना है कि अगर प्रियंका के प्रचार के बावजूद कांग्रेस बुरी तरह हारी तो फिर प्रियंका लाओ, कांग्रेस बचाओ का नारा हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा। फिर राहुल गांधी का नेतृत्व पार्टी में स्थापित हो जाएगा। तभी प्रियंका के करीबी कई नेता उन्हें सीमित प्रचार की ही सलाह दे रहे हैं। उनका मानना है कि सर्जिकल स्ट्राइक और सपा परिवार के झगड़े से बदले हालात में प्रियंका को दूर ही रहना चाहिए। कई नेता यहीं सलाह राहुल को भी दे रहे हैं। 

इन सरगर्मियों से इतना तो साफ है कि राजनीतिक महत्वाकांक्षा राहुल और प्रियंका दोनों अपने अपने मन में छुपाये हुए हैं ! दोनों के अपने अपने समर्थक समूह भी कांग्रेस में विद्यमान हैं ! यह अलग बात है कि कांग्रेसियों को न राहुल से कोई मतलब है और ना ही प्रियंका से, वे तो अपने स्वयं के अस्तित्व को बचाए रखने की चिंता में दुबले हो रहे हैं ! उनकी चिंता सोनिया जी के स्वास्थ्य समाचारों ने और अधिक बढाई हुई है ! जिस प्रकार उत्तर प्रदेश में सोनिया जी की पिछली बाराणसी की रैली तबियत खराब होने के कारण अधबीच में ही समाप्त करनी पडी, उससे इतना तो साफ़ ही है कि चुनावी घमासान में सोनिया जी की भूमिका अत्यंत सीमित ही रहने वाली है !

एक सवाल सबके दिमाग में है कि सोनिया जी के राजनैतिक परिद्रश्य से दूर होने के बाद कांग्रेस में राहुल और प्रियंका का साझा नेतृत्व होगा या किसी एक का ? किसी एक का हुआ तो दूसरे की भूमिका क्या होगी ? क्या दूसरा चुपचाप गुमनामी की जिन्दगी जीना पसंद करेगा ?

राजनैतिक पृष्ठभूमि के किसी परिवार में अभी तक ऐसा नहीं हुआ, फिर इस शीर्ष परिवार में भी यह होना असंभव है ! इसलिए तय मानिए कि चार छः महीने बाद होने वाले यूपी के चुनाव परिणाम न केवल यूपी का भविष्य तय करेंगे बल्कि उन परिणामों पर कांग्रेस का भविष्य भी टिका हुआ है ! कांग्रेस की विरासत के केवल ये दोनों ही दावेदार नहीं हैं, अनेक घाघ कांग्रेसी भी इनकी असफलता पर निगाह गडाए हुए हैं, और अपना नेतृत्व स्थापित करने का अवसर ताक रहे हैं ! आज भले ही यह कथन दूर की कौड़ी लगे, किन्तु कांग्रेस का विभाजन तय है, उसमें समय कम या अधिक लग सकता है !
(साभार आंशिक आधार नया इण्डिया)
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