हलाला या महिलाओं को हलाल करना ? यह इस्लामी नहीं बल्कि इस्लाम पूर्व की कुप्रथा !
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पिछले
दिनों एक दिल दहलाने वाला समाचार सामने आया है ! जयपुर निवासी एक व्यक्ति ने शर्त में अपनी
पत्नी को ही दांव पर लगा दिया और शर्त हारने के बाद, उसे “निकाह-हलाला“ के लिए मजबूर किया !
इस घटना ने ट्रिपल तलाक पर चल रही बहस को और हवा दे दी है !
इन
दिनों जारी चर्चाओं के कारण मुस्लिम समाज में व्याप्त यह कुरीति अब सबके सामने आ
चुकी है, जिसमें तलाक के बाद यदि पति और पत्नी दोबारा साथ रहना चाहते हैं, तो
पत्नी को पहले किसी दूसरे आदमी से शादी करनी होगी, और जब दूसरा पति उसे तलाक दे दे
या खुदागंज का टिकिट कटा ले, तभी वह अपने पहले पति से फिर शादी कर सकती है । इसी
कुप्रथा का नतीजा है उपरोक्त जुआरी वाली घटना !
यद्यपि
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का मानना है कि वर्तमान मुस्लिम विवाह क़ानून
में कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह उनके धार्मिक क़ानून में हस्तक्षेप
होगा, किन्तु दूसरी ओर अब कुछ धार्मिक विद्वानों का अभिमत सामने आया है कि उक्त
कानूनों का उद्गम इस्लाम के पूर्व का है, अतः उन्हें इस्लामु धार्मिक क़ानून मानना
गलत होगा ।
स्मरणीय
है कि भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन (BMMA) की मुस्लिम महिलाओं ने पिछले दिनों ट्रिपल तलाक, बहुविवाह और हलाला पर प्रतिबंध लगाने
के लिए सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय महिला आयोग का दरवाजा खटखटाया है ! इस समूह से
जुड़ी जुबैदा खातून शेख का मानना है कि मुस्लिम महिलाओं के मौलिक मानवाधिकारों से
जुड़े इस मामले की व्याख्या करने में धार्मिक विद्वान सक्षम नहीं है ! उन्होंने
पूछा कि निरपराध महिलाओं को क्यों दंडित किया जा रहा है ?
इन
महिलाओं की मांग को अब और अधिक बल मिल गया है ! कुछ विद्वानों की राय है कि ये
प्रथाएं इस्लाम के पूर्व की हैं। सेंट जेवियर्स कॉलेज में इस्लामी अध्ययन विभाग के
पूर्व प्रमुख जीनत शौकत अली, ने कहा है कि यह प्रथा इस्लाम के पूर्व अरब
समाज में प्रचलित थी । "पैगंबर मोहम्मद शून्य से उत्पन्न नहीं हुए थे । जिस
युग में नबी पैदा हुए, उस समय के समाज में “हलाला” की प्रथा थी ।
शौकत
अली का कहना है कि हलाला और ट्रिपल तलाक इस्लाम पूर्व की प्रथाएं हैं, जिन्हें समाप्त
किया जाना चाहिए, हालांकि कुछ परिस्थितियों में बहुविवाह की अनुमति दी जानी चाहिए ।
उन्होंने जोर देकर कहा कि मैं जानता हूँ कि मैं क्या कह रहा हूँ और किसके बारे में
कह रहा हूँ, किन्तु मेरा मानना है कि ट्रिपल तलाक न केवल असंवैधानिक है बल्कि इस्लामी
भी नहीं है। इसका वर्त्तमान स्वरुप केवल महिलाओं को अपमानित करने का हथियार है हलाला को भी समाप्त कर दिया जाना चाहिए ।
अली
के अनुसार यद्यपि बहुविवाह भी इस्लाम के पूर्व का ही रिवाज है, किन्तु उसे युद्ध के
समय वहाँ पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक हो जाने के कारण मान्य किया गया था । "मुस्लिम
पर्सनल लॉ बोर्ड के तर्क बेमानी हैं । उन्होंने कहा कि आम तौर पर मुसलामानों में शिक्षा
की कमी है और वे लोग कानून से भी अनभिज्ञ हैं। सबसे अच्छा विकल्प यही है कि सुप्रीम
कोर्ट के फैसले का इंतजार किया जाए ।
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