आत्मघाती पाकिस्तान के साथ खुदकुशी करती भारत की छद्म राजनीति - प्रफुल्ल केतकर (सम्पादक ओर्गेनाईजर)


भारत ने राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर राजनीति कभी नहीं की । ... भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है कि हमने राष्ट्र को हमेशा राजनीति से ऊपर रखा ।
(25 मई, 1998 को पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद श्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा इण्डिया टुडे को दिया गया साक्षात्कार)

दुनिया भर में कई राष्ट्रवादी पार्टियों  के लिए प्रेरणा रहे महान राजनीतिज्ञ ओटो वॉन बिस्मार्क  ने कहा है, "राजनीति सम्भावनाओं की कला है, जो किया है, आगे उससे और  अच्छा करने की कला है।" किसी भी पार्टी, विचारधारा यहाँ तक कि प्रत्येक व्यक्ति को श्रेष्ठ सम्भावनाओं के लिए प्रयत्न करने का अधिकार है। श्रेष्ठ परिणाम प्राप्त करने का मूलभूत सिद्धांत यह है कि स्वहित और लोकहित के मध्य सेतु निर्माण किया जाये।

किन्तु दुर्भाग्य से भारतीय राजनीति एक ऐसी गंदी दिशा में मुड गई है कि पाकिस्तान प्रेरित आतंकवाद और राष्ट्र विरोधी तत्वों की भी कई बार राजनेता ढाल बनते दिखाई देते हैं ! इसका ताजातरीन उदाहरण है, जब हाल ही में नियंत्रण रेखा के पार भारतीय सैन्य बल द्वारा किये गए सर्जिकल स्ट्राईक के बाद कुछ स्वयंभू 'मानवतावादी' और 'धर्मनिरपेक्षता के ठेकेदार' पाकिस्तानी प्रतिक्रिया के समान ही स्वर गुंजाते दिखे । सर्जिकल स्ट्राईक के सबूत मांगना भी ऐसा ही एक घृणित और निंदनीय कृत्य है । निश्चित रूप से ये सबूत किसी और के इशारे पर किसी और के लिए मांगे जा रहे हैं । लेकिन इस प्रकार का 'छद्म' खेल खेलने वाले ये भूल रहे हैं कि देरसबेर सचाई सामने आ ही जाती है ! इस मामले में भी यह उनका आत्म-घाती कदम है।

पाकिस्तान तो निश्चित रूप से धीरे धीरे विनाश की ओर जा ही रहा है । आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में सहयोगी होने का नाटक करने वाला पाकिस्तान अब दुनिया के सामने 'आतंक के प्रायोजक' के रूप में बेनकाब हो चुका है। पाकिस्तान खुद के निर्माण के समय से ही भारत विरोधी व्यामोह से इतना ग्रस्त है, कि उसे यह भी भान नहीं है कि इसके कारण वह स्वयं आत्म-विनाश के कगार पर जा पहुंचा है । अंध मोदी विरोधी लोगों और दलों को यह समझना चाहिए कि वे भी अपनी छद्म राजनीति के खेल में कहीं उसी आत्मघाती मार्ग पर तो नहीं बढ़ रहे ?

पूर्व प्रधानमंत्री श्री वाजपेई का जो बयान ऊपर उद्धृत किया गया है, वह एक व्यक्ति का स्वर नहीं है, बल्कि वह भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था का सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व है, जो यह दर्शाता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि है, उस पर राजनीति नहीं होना चाहिए । भारतीय सैनिकों के पराक्रम पूर्ण कृत्य के तत्काल बाद पार्टी लाइन से ऊपर उठकर सभी दलों ने और सामाजिक वर्गों ने उसका स्वागत किया, वह आम सहमति अटल जी के मंतव्य की ही प्रतिध्वनि थी । किन्तु अचानक राजनीति की 'भ्रष्ट' प्रकृति को बदलने के नाम पर उभरी एक पार्टी ने सर्जिकल स्ट्राईक के सबूत मांगकर परोक्ष रूप से पाकिस्तान को मनमाफिक भोजन प्रदान कर दिया । यूं तो अब तक, इस पार्टी के कई कार्यों ने इसकी तथाकथित 'नई राजनीति' को सवालों के घेरे में लाया है, किन्तु राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में यह अराजकतावादी चिंतन तो सारी हद ही पार कर गया है।

चलिए मान लिया जाए कि केजरीवाल और उनकी नवजात पार्टी तो अभी प्रयोगात्मक दौर में है, वह अपना मार्ग चुनने को स्वतंत्र है, बची रहे या समाप्त हो जाए, देश को कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है । लेकिन कांग्रेस पार्टी को क्या हुआ, जो देश की सबसे पुरानी पार्टी है और जिसकी राष्ट्रीय जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका रही है ? उसके नेता अगर सशस्त्र बलों की विश्वसनीयता के बारे में सवाल उठाते दिखाई दें तो निश्चय ही यह एक खतरनाक और हजम न होने वाला मसला है । घटती लोकप्रियता और लगातार चुनावी पराजय का दर्द, कांग्रेस नेतृत्व को इतनी हताशा में ले जाएगा, कि वे सशस्त्र बलों के पराक्रम पर ही सवालिया निशान उठाने लगेंगे, यह परिद्रश्य आज की राजनीति के गिरते स्तर को रेखांकित करता है । सत्तारूढ़ नेतृत्व के निर्णय पर सेना का पराक्रम, इसके लाभ हानि का गणित, यही है आज की छद्म राजनीति !

केवल इतना ही नहीं तो जिन बुद्धिजीवियों और कलाकारों से यह उम्मीद की जाती है कि वे समाज का रचनात्मक मार्गदर्शन करेंगे, वे भी आग में घी डालने का काम करते नजर आ रहे हैं, अपने निहित स्वार्थों के चलते विभाजनकारी अन्धानुकरण की दौड़ में शामिल हो रहे हैं। उनके लिए आर्थिक हित राष्ट्रीय हितों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण हैं। हमारे सैनिकों का अपमान करने की कीमत पर भी जो लोग पाकिस्तानी कलाकारों का साथ देते दिखाई दे रहे हैं, उनका भी वही हश्र होगा जो 'असहिष्णुता' के नाम पर खुदकुशी करने वाले छद्म योद्धाओं का हुआ । समाज उन्हें भी कूड़ेदान में फेंक देगा !


विचारणीय तथ्य है कि भारत ने पहली बार यह साहस दिखाया है, निश्चित रूप से इसके पीछे दृढ राजनीतिक इच्छाशक्ति है । दुश्मन देश के छद्म युद्ध की रणनीति को पूरी तरह से ध्वस्त कर, वास्तविक कूटनीति के माध्यम से उसे उसकी औकात बताई गई है । यह समय की मांग है कि इस समय भारत एकजुट रहे, यही हमारी वास्तविक शक्ति है, एकजुट जनशक्ति सुरक्षा बलों से सबूत माँगने वाली छद्म राजनीति को आत्म-विनाशक सिद्ध करेगी । ये लोग मरते हुए पाकिस्तान के साथ खुद भी आत्महत्या करना चाह रहे हैं !
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