यू पी चुनाव – किस करवट बैठ सकता है ऊँट ?

पिछले एक महीने में यूपी की राजनीति का लब्बेलुआब यह है कि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस दोनों घर बैठ रही हैं। साथ ही यह भी कि दिल्ली का अनुभव याद दिलाता है कि कांग्रेस का भठ्ठा बैठा तो आप पार्टी को 70 में से 63 सीटें मिल गईं। अर्थात दिल्ली में कांग्रस की पिटाई हुई तो आप पार्टी को रिकार्ड सीटें मिली ! कहीं ऐसा तो नहीं कि सपा और कांग्रेस के उत्तरप्रदेश में लुढ़कने से किसी एक पार्टी का फायदा हो ? कौन हो सकती है वह पार्टी ?

उत्तरप्रदेश में जातिवादी समीकरण काम करते रहे हैं ! पिछले चुनाव में मायावती का दलित ब्राह्मण गठजोड़ टूटा और समाजवादी पार्टी के मुस्लिम यादव गठजोड़ का रंग जमा ! इस बार मुस्लिम वोट क्या गुल खिलाने जा रहे हैं, इसको समझने के लिए समाजवादी पार्टी के सबसे बड़े मुस्लिम चेहरे के तौर पर स्थापित आजम खान का ताजा बयान ध्यान देने योग्य है ! आजम खान का कहना है कि प्रदेश का मुसलमान न तो हारती हुई बाजी लड़ने वालों के पक्ष में वोट करेगा और न गैर भरोसे के लोगों को वोट करेगा। अब सवाल उठता है कि हारती हुई बाजी कौन लड़ रहा है? उत्तर साफ़ हैं कि इस समय सपा और कांग्रेस दोनों ही हारती हुई बाजी लड़ रहे है !

पहले बात करते हैं समाजवादी पार्टी की, क्योंकि वहां परिवार में और पार्टी में झगड़ा छिड़ा है। मुलायम सिंह और शिवपाल यादव मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के विरोध में खड़े हैं। मुलायम ने जिस अंदाज में अमर सिंह की तारीफ की है, उससे जाहिर तौर पर आजम खान नाराज हुए होंगे। आजम खान की नाराजगी के कई कारण हैं। एक कारण अमर सिंह हैं। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जितना अमर सिंह से चिढ़ते हैं, आजम खान उससे भी ज्यादा चिढ़ते हैं। लेकिन सपा प्रमुख ने कहा है कि वे अमर सिंह के खिलाफ कुछ नहीं सुन सकते हैं। तभी आजम खान नाराज हुए हैं। दूसरा कारण पश्चिमी उत्तर प्रदेश के आशु मलिक को तरजीह मिलने का है। पिछले कुछ समय में आशु मलिक सपा के सबसे मजबूत मुस्लिम चेहरे के तौर पर उभरे हैं। उनको मुलायम सिंह बहुत तरजीह दे रहे हैं। तीसरा कारण अफजल और मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का सपा में विलय कराने का फैसला है। इससे सपा के भीतर कई मजबूत मुस्लिम चेहरे हो जाएंगे।

अब देखना दिलचस्प होगा कि मुसलमानों में आजम का बजन ज्यादा है अथवा आशू मलिक और मुख्तार अब्बास अंसारी जैसों का ! और उसके भी पहले समाजवादी पार्टी की फूट क्या गुल खिलाती है !फिलहाल तो 3 नवम्बर से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अकेले अपनी दम पर चुनाव अभियान शुरू करने का फैसला कर लिया है ! अखिलेश के इस तेवर से साफ हो गया है कि मुलायम सिंह और शिवपाल यादव को उन्हें मुख्यमंत्री का दावेदार स्वीकार करके चुनाव लड़ना होगा, नहीं तो वे अकेले चुनाव लड़ेंगे। इतना ही नहीं तो यह भी खबर है कि रामगोपाल यादव ने चुनाव आयोग से संपर्क किया है। इसका मतलब है कि जरूरत पड़ी तो वे अलग पार्टी बना सकते हैं, जो अखिलेश के चेहरे पर चुनाव लड़ेगी।

ऐसी स्थिति बनी तो मुस्लिम क्या करेंगे, किसके साथ जायेंगे ? चुनाव चतुष्कोणीय से बहुकोणीय हो जाएगा ! आजम खान का कहना सच है तो मुस्लिम वोट भाजपा को हराने के लिए किसी एक पार्टी के ही साथ जायेंगे और वह पार्टी केवल और केवल बसपा ही हो सकती है ! इसके चलते बसपा के पास दलित-मुसलमान का 38 प्रतिशत आधार पक्का हो जाएगा । मतलब आज की तारीख में सपा-कांग्रेस का नुकसान भाजपा से ज्यादा बसपा के लिए फायदेमंद है।

लेकिन नरेंद्र मोदी-अमित शाह को इन समीकरणों का अंदाज न हो यह संभव नहीं ! उनकी भी आखिर कोई तो रणनीति बनेगी ही ! सर्जिकल आपरेशन के चलते बैसे भी न केवल भाजपा की सर्वहिंदू वोटों में स्वीकार्यता बढ़ी है, बल्कि आम भाजपा कार्यकर्ता का मनोबल भी आसमान छू रहा है । बैसे भी यादवी संघर्ष के बीच मुस्लिम ध्रुवीकरण आम हिन्दू वोट को भी स्वभावतः एकजुट करेगा यादवों का भी एक वर्ग भाजपा के पक्ष में जा सकता है । बस एक बात जरूर है कि प्रत्यासी चयन कौन कैसा करता है इस पर बहुत कुछ दारोमदार रहेगा !

बहुकोणीय संघर्ष की संभावना के बनते ही अचानक चौतरफा गठबंधन की चर्चा भी शुरू हो गई है। समाजवादी पार्टी के नेता तो गठबंधन के लिए सबसे ज्यादा भागदौड़ कर ही रहे हैं, बसपा और कांग्रेस के नेता भी संपर्क में है। कांग्रेस के नेता सपा के दोनों खेमों से भी बात कर रहे हैं। अखिलेश अगर अकेले चुनाव लड़ने के लिए उतरे तो नीतीश कुमार और राहुल गांधी दोनों उनका साथ देंगे।

जैसे कांग्रेस के नेता सपा के दोनों खेमों और बसपा के संपर्क में हैं, वैसे ही रालोद के नेता भाजपा और सपा दोनों के संपर्क में हैं। माना जा रहा है कि सेना के सर्जिकल स्ट्राइक और सपा के झगड़े ने उत्तर प्रदेश के सारे पुराने समीकरण बदल दिए हैं।

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