भ्रष्टाचार मुक्ति अभियान का अगला निशाना . बेनामी संपत्ति - प्रमोद भार्गव


देश को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार का अगला कदम बेनामी संपत्ति पर करारी चोट के रूप में सामने आ गया है। साफ है, भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रधानमंत्री ने कमर कस ली है। इस दृश्टि से सरकार की और से बेनामी संपत्ति लेन-देन कानून 1988, संशोधन के बाद 1 नबंवर से लागू कर दिया गया है। इस कानून के अमल में आने के बाद सरकार को अधिकार मिल गया है कि वो बेनामी संपत्तियों को ज़ब्त कर सकती है. इसके लिए सरकार को वैधानिक और प्रशासनिक शक्तियां प्रदान की गई हैं. जानकारों की मानें तो लगभग 80 प्रतिशत काली कमाई, जमीन-जयदाद और सोना-चांदी में खपाई जाती है। इस कानून का यदि कड़ाई से पालन किया जाता है, तो नोटबंदी के बाद कालाधन पर अंकुष लगाने के नजरिए से यह दूसरी बड़ी सर्जीकल स्ट्राइक होगी। 

            नए कानून के तहत वह संपत्ति बेनामी मानी जाएगी जो किसी और व्यक्ति के नाम हो या हस्तांतरित कर दी गई हो, लेकिन उसके मूल्य का भुगतान किसी और व्यक्ति के द्वारा किया गया हो। ऐसे व्यक्ति अब बेनामी संपत्ति के दायरे में आ गए हैं। इन्हें इस नए कानून के तहत एक साल से लेकर 7 साल तक के कठोर कारावास की सजा मिल सकती है। साथ ही आर्थिक दण्ड भी लगाया जा सकता है। यह जुर्माना संपत्ति के बाजार मूल्य का 25 फीसदी तक हो सकता है। हालांकि यह कानून उनके लिए है जो अवैधानिक रूप से कमाई राषि से अचल संपत्ति आर्जित करते है। वे लोग कितनी भी संपत्ति खरीद सकते है, जिनकी आय के स्रोत कानूनन वैध हैं। बशर्तें ऐसे व्यक्ति के पास वास्तविक आय और व्यय का प्रमाण हो। सरकार की मंशा इतनी है कि घूस और गलत कामों से कमाया धन नामी-बेनामी संपत्ति की खरीद में न खपे। नए कानून में यह भी प्रावधान है कि इसमें कानूनी कार्रवाही तब तक आगे नहीं बढ़ेगी, जब तक केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) की अनुमति न मिल जाएं। हालांकि यह कानून तो पुराना ही है, किंतु अब “मौजूदा बेनामी सौदा निषेध कानून 1988 का नाम बदलकर “बेनामी संपत्ति लेन-देन कानून 1988 कर दिया गया है।  

            इस कानून के तहत जो वास्तविक धार्मिक न्यास हैं, उन्हें तो बख्षा जाएगा, लेकिन कथित लोक कल्याणकारी न्यास इसके दायरे में हैं। दरअसल देश के जितने भी पुर्व सामंत है, उनके ट्रस्टों के पास बीच शहरों में कई एकड़ भूमि खाली पड़ी हैं। इनकी वर्तमान कीमत अरबों रुपए है। इनमें से ज्यादातर अचल संपत्तियां ऐसी हैं, जो रियासतों के विलय के समय राज्य सरकारों की संपत्ति घोषित हो गई थीं। किंतु बाद में जब ये सामंत लोकतांत्रिक प्रक्रिया के चलते सांसद व विधायक बनकर सत्ता के अधिकारी हुए तो इन्होंने दस्तावेजों में हेराफेरी कराकर इन जमींनों पर फिर से अपना मालिकाना हक हासिल कर लिया। चूंकि इनमें से ज्यादातर जमीनें शहरी विस्तार के चलते बीच में आ गई हैं, इसलिए इनका मूल्य तो बढ़ा ही, ये आवासीय कॉलोनियों में भी तब्दील की जाने लगी हैं। बेनामी संपत्ति से जुड़े शायद ऐसे ही मामलों के परिप्रेक्ष्य में मोदी ने गोवा में कहा था कि गड़बड़ी करने वालों का कच्चा-चिट्ठा खंगाला जाएगा। यह कच्चा-चिट्ठा खंगाला जाता है तो इसे खंगालने की शुरूआत रियासतों के विलय के वर्ष 1954 से लेकर 1956 से की जाए। क्योंकि विलय के पहले दस्तावेज इन्हीं वर्षों में तैयार हुए थे।

            पूरा देश जानता है कि कारोबारी, नौकरशाह और भ्रष्ट नेता गलत आचरण से अर्जित संपत्ति को हजार-पांच सौ के नोटों, बेनामी जमीन-जायदाद और सोने-चांदी में खपाते हैं। इसीलिए भ्रष्टाचार से मुक्ति के उपायों का एक के बाद एक दायरा बढ़ाना जरूरी है। नोटबंदी के रूप में कालेधन पर चोट करने के बाद लोगों को रोजमर्रा की जरूरतों की पूर्ति में तत्काल परेशानी जरूर उठानी पड़ रही है, बावजूद जन समर्थन सरकार के साथ है, क्योंकि कल इसका सबसे ज्यादा लाभ आम आदमी को ही मिलने वाला है। बेनामी संपत्ति की पड़ताल और फिर जब्ती होती है, तो यह एक सीमित तबके पर होगी। आम आदमी को तो उससे प्रसन्नता ही होगी । ज्यादातर ऐसी अचल संपत्ति भ्रष्ट नौकरशाहों और राजनेताओं के पास है। जितने भी सरकारी छोटे-बड़े अधिकारी कर्मचारियों के यहां छापे पड़े हैं, उनके पास से करोड़ों की नकदी के साथ सैकड़ों एकड़ भूमि और भवन के दस्तावेज भी बरामद हुए हैं। भूमण्डलीकरण और आर्थिक उदारवाद के बाद कृषि भूमि लघु और सीमांत किसानों से हस्तांतरित होकर चंद लोगों के पास लगातार  सिमटती जा रही है। यहां तक की अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों की आजीविका चलाने के लिए पट्टे पर मिलीं जो जमीनें विक्रय से प्रतिबंधित थीं, उन्हें भी नौकरशाहों और भूमफियाओं की मिली-भगत से हथिया लिया गया है। जिला कलेक्टरों को इन प्रतिबंधित भूमियों को बेचने की अनुमति देने का अधिकार होने से, भ्रष्ट कलेक्टर के जिले में पदस्थ होने के साथ ही ऐसी भूमियों को हथियाने का सिलसिला शुरू हो जाता है। ये भूमियां हरिजन- आदिवासियों के ही पास बनी रहें, इस मकसद से सरकार चाहे तो ऐसा कानून बना सकती है कि ये जमीनें केवल इन्हीं जातीय-समूहों के बीच बेची व खरीदी जा सकें !

            ट्रांसपेरिसी इंटरनेशनल का मानना है कि भारत यदि भ्रष्टाचार से मुक्त हो जाए तो देश से गरीबी का उन्मूलन आप से आप हो जाएगा। क्योंकि भ्रष्टाचार ही ऐसा कारक है जो विधायिका, कार्यपालिका और न्यायायपालिका के तंत्र को अपारदर्षी बनाए रखने का काम कर रहा है। इस द्रष्टि से राजग सरकार ने भ्रष्टाचार के सह उत्पाद कालाधन और बेनामी संपत्ति पर हमला बोल दिया है, लेकिन इन तंत्रों में व्यापक सुधार की भी जरूरत है। इन सुधारों के होने पर ही आम आदमी को राहत मिलेगी।

            दरअसल लाइलाज हो चुके भ्रष्टाचार से छुटकारा मिल जाता है तो देश के सकल घरेलू उत्पाद में तेजी से वृद्धि होगी। शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क और बिजली-पानी जैसी सुवधाओं को धन की कमी नहीं रहेगी। बेनामी संपत्ति पर लगाम लगती है तो मोदी सभी गरीबों को अपने घर का जो सपना दिखा रहे हैं, उसके साकार होने की उम्मीद बढ़ जाएगी। 

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