ईश्वर सर्वव्यापक है !



एक गुरु के पास दो मनुष्य शिष्य होने के लिए आए।


गुरुजी ने कहा-” हम तुम दोनों को एक-एक खिलौना देते हैँ, तुम ये खिलौना लेकर ऐसी जगह पर जाकर जहाँ कोई न हो, तोड लाओ ! तब हम तुमको अपना शिष्य बना लेंगे। ” दोनों अपना-अपना खिलौना लेकर चले।


एक शिष्य ने तो गुरुजी के मकान के पीछे जाकर चारों तरफ देखा कि’ अब कोई नहीं है और खिलौना तोड़ लाकर रख दिया।


और दूसरे ने खिलोने को लेकर सारा संसार, ऊँची से ऊँची पहाड़ की चोटियाँ, गहरी से गहरी समुद्र की सतह, एकान्त से एकान्त अंधेरी कोठरियाँ तथा बड़े बड़े भयानक वन खोज डाले, परन्तु उसे कहीं ऐसा स्थान न मिला, जहाँ खिलौना तोड़ता, अत: दूसरे ने खिलौना वैसा ही लाकर रख दिया।


गुरु ने पहले से प्रश्न किया "क्योजी, आपको कहॉ ऐसा स्थान मिला, जहाँ से खिलौना तोड़ लाए ? ” उसने कहा गुरुजी मैं आपके मकान के पीछे गया। वहाँ कोई न था। बस, वहीँ खिलौना तोड़ आपके आगे लाकर रख दिया।


दूसरे से कहा "क्यों भाई तुम्हें कोई ऐसा स्थान नहीं मिला, जहाँ से खिलौना तोड़ लाते ? तुमने लाकर वैसा ही रख दिया ? ”


दूसरे ने उत्तर दिया  "महाराज मैंने ऊँचे से ऊँचे पहाडों की चोटी, गहरे से गहरे समुद्र की सतह, अंधेरी से अँधेरी एकान्त कोठरियाँ और बड़े-बड़े भयानक जंगल में घूमा परन्तु मुझे कहीं ऐसा स्थान न मिला’ जहाँ वो ना था अर्थात् परमेश्वर न था।


महाराज, इसलिए नहीं तोडा। "महात्मा ने इसे ही अपना शिष्य बनाया और दूसरे से कहा तुम इस योग्य नही की मेरे शिष्य बन सको




शिक्षा : परमेश्वर सर्वव्यापक है, अत: एकान्त समझ कर भी पाप ना करें , हमेशा पाप करने से बचें।

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