खंडवा में आतंकी के जनाजे में साढ़े तीन हजार – पीछे छुपा सन्देश ! – डॉ. राहुल रंजन
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एक मारोगे तो सौ पैदा
होंगे, किन्तु यहाँ तो हजारों पैदा हो गए ! आठ आतंकियों के मारे जाने के बाद जब
इनका जनाजा खंडवा में निकला तो हजारों शामिल हुए, मानो किसी वीर का जनाजा हो ! यह
नजारा प्रमाणित करता है कि आतंकियों की संख्या बहुत अधिक है, जो कि तेजी से बढ़ भी रही
है तथा आने वाले दिनों में घातक सिद्ध हो सकती है !
बैसे तो पुलिस ज़रा ज़रा सी
बातों में वीडियो रिकोर्डिंग कराती है, किन्तु इस मामले में उसकी चूक साफ़ नजर आ
रही है, उन चेहरों को पहचानने में जो जनाजे में शामिल हुए ! आतंकी का समर्थक भी
उतना ही गुनहगार है ! एक आतंकी के परिवार में मां बाप, भाई बहिन और कुछ रिश्तेदार
तो हो सकते हैं, लेकिन तीन हजार लोग तो सगे नहीं हो सकते ! फिर खंडवा में इतने
समर्थक कैसे पैदा हो गए !
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को
इस बात पर गंभीरता से विचार करना चाहिए कि वह इस एनकाउन्टर को लेकर स्वयं निशाने
पर आ गए हैं ! वे राजनैतिक हंगामे से तो निबट लेंगे, लेकिन प्रदेश में उपस्थित
सिमी समर्थकों की इस फ़ौज से कैसे निबटेंगे ?
मारे गए सभी आतंकी मुस्लिम
थे ! देश में जहां भी आतंकी मारे या पकडे जा रहे हैं, या खुराफात कर रहे हैं, वे
सबके सब मुस्लिम हैं ! भले ही इन आतंकियों से आम मुस्लिम का कोई लेना देना न हो,
किन्तु जाति वर्ग के नाम पर वे सब भाई भाई हैं ! इनकी इस मानसिकता के कारण ही आज
नहीं तो कल देश को गंभीर परिणाम भोगने होने ! अब अधिक भुलावे में रहना खतरनाक है,
हमें लोकतंत्र, अनेकता में एकता और धर्मनिरपेक्षता का नारा बुलंद करना बंद कर देना
चाहिए !
आज तक देश ने इस वर्ग के
उत्थान के लिए जितना खर्च किया है, उससे कई सौगुना नुकसान उठाया है ! आज यह आँखें
दिखा रहे हैं, आखिर क्यों ? केवल इसलिए, क्योंकि नेताओं को वोट की चिंता है ! यदि
देश को बचाना है तो वोट की राजनीति बंद करना ही होगी ! वरना एक आतंकी मारोगे तो
देश में आग लग जायेगी !
मध्यप्रदेश में सिमी काफी
लम्बे समय से अपने संगठन का विस्तार कर रहा है ! इसके कार्यकर्ताओं की संख्या तेजी
से बढ़ रही है ! भोपाल जेल से भागे आतंकियों के एनकाउन्टर के बाद प्रदेश ही नही,
देश का मुस्लिम समुदाय, ऐसे गुस्सा व्यक्त कर रहा है, मानो उनका कोई सगा संबंधी मर
गया हो ! देश से दगा करने वाले का कोई धर्म नहीं होता ! स्पष्ट ही यह वर्ग देश की
अस्मिता से खेल रहा है और उसकी अखंडता को तहस नहस करने के मंसूबे पाले बैठा है !
तुच्छ ओछी राजनीति करने वाले इनके पैरोकार और माई बाप बने बैठे हैं !
आतंकियों का भोपाल से कोई
नाता नहीं, किन्तु यहाँ बैठकें हो रही हैं, पर्चे बंट रहे हैं, और तथाकथित समर्थक
बदले का षडयंत्र रच रहे हैं ! साथ ही यहाँ प्रश्न यह भी उठता है कि खंडवा में
आतंकियों के जनाजे में चार हजार का हुजूम था, किन्तु जिस जवान रमाशंकर यादव ने इन
हत्यारों के हाथों जान गंवाई, उसकी अंतिम यात्रा में कितने लोग शामिल हुए ?
यही फर्क है, बहुसंख्यक
कहलाने वाला समाज ऐसे मौकों पर सिर्फ मुंहजोरी करता रहता है ! भगवा दुपट्टा डालकर,
माथे पर तिलक लगाकर, गालियाँ देने से कुछ नहीं होता ! सोचना होगा कि आखिर इस देश
का बहुसंख्यक आखिर इतना डरा हुआ क्यों है ?
यह कहना कतई बाजिब नहीं कि
एक की गलती की सजा सबको कैसे दी जा सकती है, यह तर्क परोसने वाले यह भी बताएं कि
आखिर इन शैतानों के मरने का वह गम क्यों मनाते हैं ?
बीते दिनों इण्डिया टीवी पर
भोपाल जेल में बंद सभी आतंकियों का वीडियो देखा, जिसमें आतंकी तालिबान और
पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे, कह रहे थे कि अबकी बार निशाना मोदी होगा !
वे गालियाँ दे रहे थे और पुलिस तमाशा देख रही थी ! आखिर उसी वख्त गोली क्यों नहीं
मार देनी चाहिए थी ? देश के प्रधान मंत्री को गलियाँ देने वालों के साथ, उसकी
ह्त्या की धमकी देने वालों के साथ कैसी सहानुभूति ?
इन आतंकियों में वह अबू फजल
भी था, जिसने खंडवा जेल तोडी थी और यहाँ भी जेल से आतंकियों को भगाने की योजना
बनाई थी ! बुरा मानने की बात नहीं, किन्तु हमारी व्यवस्था इतनी नपुंसक हो चुकी है,
जिसने भारतमाता को गालियाँ देने वालों को पाल रखा है !
वर्तमान में देश की तमाम
सुरक्षित जेलों में आतंकी बंद हैं, इन पर देश का करोड़ों रूपया खर्च हो रहा है ! ये
लोग जेलों में कैदियों की तरह नहीं रह रहे, बल्कि इन्हें सुविधाओं के साथ कोठरियों
में रखा गया है ! इनके मुकदमे कोर्ट में चल रहे हैं, जहां साक्ष्यों की पड़ताल में
ही सालों गुजर जाते हैं ! इनके मुकदमे लड़ने वाले वकील देश धर्म को ताक पर रखकर व्यवसाय
धर्म निभाते हैं ! चूंकि उनको उसके बदले मोटी रकम जो मिलती है ! इस बात की भी जांच
होनी चाहिए कि आखिर आतंकियों के मुकदमे लड़ने वाले वकीलों को फीस कहाँ से मिल रही
है और कौन दे रहा है !
माना कि फरियादी को अपनी
बात रखने के लिए कानूनी रूप से वकील मुहैया कराना कानूनी जिम्मेदारी है, लेकिन
राष्ट्रधर्म भी तो है ! कहते हैं बिल्ली भी एक घर छोड़ देती है, पर यहाँ तो ऐसा
नहीं है ! देश के तमाम नामी वकील आतंकियों के केस लेने में जुटे रहते हैं, आखिर
क्यों ? क्या इनकी देश के प्रति कोई नैतिक जिम्मेदारी नहीं ? ताज्जुब होता है कि
जेलों में बंद आतंकियों के वर्षों से कोर्ट में ट्रायल चल रहे हैं, लेकिन फैसलों
और सजाओं की रफ़्तार कछुआ चाल से है ! इनसे पूछताछ में आज तक कुछ भी हासिल नहीं हुआ
है और न होगा, क्योंकि वे इतने मजबूत इरादे वाले होते हैं कि उन्हें तोड़ पाना संभव
नहीं है ! ऐसे में इन्हें पालने की जरूरत कैसी ? देश की कोई मजबूरी नहीं कि
आतंकियों को पनाह दे !
घाटी में रोज सेना आतंकियों
को गोली मारती है, पर कोई गम यहाँ नहीं होता, लेकिन यहाँ बैठे किसी आतंकी को गोली
मार दें तो रिश्ते नाते निकल आते हैं ! मानवाधिकार की और कौमी बातें होने लगती हैं
! आखिर कब तक ऐसी दहशत बनी रहेगी ? गोली ही समाधान है और इस बात को सबको समझना
चाहिए ! देश के हर नागरिक को, वह चाहे किसी भी कौम, धर्म या जाती का हो, इसका
समर्थन करना चाहिए ! और जहां तक नेताओं की बात है, इन्हें इनकी औकात बताने का, जब
भी मौक़ा मिले, बिलकुल नहीं चूकना चाहिए ! “गर्व से कहो, हम हिन्दू हैं” कहने भर से
कुछ नहीं होगा !
साभार - एलएन स्टार दिनांक
6 नवम्बर 2016
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अखबारों की कतरन
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