भारत का एक छोटा सा गाँव जहाँ हर घर में है एक सैनिक ! बच्चों के नाम रखे जाते है कर्नल, मेजर और कैप्टन !

भारत वीर सपूतों की भूमि रही है। आज हम देश के एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने हमेशा से ही वीर सपूतों को जन्म दिया है। इतिहास चाहे द्वितीय विश्वयुद्ध का हो, 1962 में चीन-भारत युद्ध , 1965 में भारत-पाक युद्ध या फिर 1971 में बंगलादेश मुक्ति संग्राम, इस गांव की भूमिका महत्वपूर्ण रही है।

अमरावती से 150 किलोमीटर दूर पश्चिम आंध्र प्रदेश के गोदावरी ज़िले की गोद में बसे एक छोटे से गांव माधवरम को हर घर से कम-से-कम एक सदस्य के भारतीय सेना में अपनी सेवाएं प्रदान करने के लिए जाना जाता है। यहां के जवान खुद को अपने नाम से पुकारे जाने की जगह सेना में अपने पद के नाम के बुलाया जाना पसंद करते हैं।

कहते हैं माधवरम का हर घर युद्ध और वीरता की तमाम लोक कथाओं को समेटे हुए है। यहां के हर घर की दीवारें युद्ध में जीते गए पदको से सम्मानित है। यही नहीं, गांव में नौकरी से रिटायर लोग खुद को अपने नाम से बुलाए जाने की जगह सेना में अपने पद के नाम के बुलाया जाना पसंद करते हैं। और तो और यहां की स्थानीय औरतें भी एक सैनिक से शादी करना अधिक पसंद करती हैं और बच्चों के नाम कर्नल, मेजर और कैप्टन रखे जाते हैं।

इस गांव के शूरवीरों का शानदार रहा है इतिहास

यह गांव 17वीं शताब्दी के उड़ीसा और दक्षिणी पठार के गजपति राजवंश के राजा पुष्पति माधव वर्मा ब्रह्मा का रक्षा ठिकाना था। इस राजा के ही नाम पर इस गांव का नाम माधवरम पड़ा। राजा ने माधवरम से 6 किमी दूर आरुगोलु गांव में मोर्चेबंदी के लिए एक किला भी बनवाया था, जो आज भी वहां मौजूद है।

साम्राज्य की सुरक्षा को मजबूत करने के लिए उड़ीसा और उत्तरी आंध्र से सैनिकों को लाकर माधवरम और आरगोलु के किले में बसाया गया, जिसके बदले में उन्हें उपहारस्वरूप जमीनें दी गईं। इन सैनिकों और उनके वंशजों ने क्षेत्र में कई शासकों के लिए युद्ध लड़े, जैसे कि – बोबिली, पीतापुराम, पलनाडु, वारंगल और काकतीय। बाद में औपनिवेशिक शासन के दौरान इस गांव के 90 सैनिकों ने ब्रिटिश साम्राज्य की तरफ से युद्ध लड़ा, जो आंकड़ा दूसरे विश्वयुद्ध में 1110 तक पहुंच गया था।


साभार बीबीसी भारत

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