अखाड़ा न बने संसद - प्रमोद भार्गव



शीतकालीन सत्र को गर्म रखने के लिए कांग्रेस समेत लगभग समूचे विपक्ष ने अपने-अपने हथियार भांज लिए हैं। हजार-पांच सौ के नोटों पर पाबंदी के साथ देशभर में जैसी उथल-पुथल मची है, उससे जहां राजग सरकार की चुनौती बढ़ी है, वहीं विपक्ष इतनी मजबूत मोर्चाबंदी में लगा है कि ममता बनर्जी जैसी तुनकमिजाज नेत्री सभी गिले-शिकवे भुलाकर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी तक से हाथ मिलाने को तैयार हो गई हैं। वहीं कांग्रेस ने नोटबंदी के कारण उत्पन्न हुई अर्थव्यवस्था में खलबली को देखते हुए काम रोको प्रस्ताव लाने का नोटिस दिया है। राज्यसभा में पार्टी के उपनेता आनंद शर्मा ने और लोकसभा में कांग्रेस के नेता मलिकार्जुन खड़गे ने नियम 267 के तहत नोटिस दिया है। साफ है, विपक्ष सरकार की चैतरफा घेराबंदी में लगा रहकर उसे पश्त करने के मूड में है। हालांकि संसदीय कार्य राज्यमंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा है कि राजनीतिक वाद-विवाद से लेकर आम आदमी से जुड़े सभी मुद्दों पर चर्चा से सरकार पीछे नहीं हटेगी। 

संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार की प्राथमिकता वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) संबंधी तीन विधेयकों को पारित कराना है। सरकार की मंशा है कि 1 अप्रैल 2017 से जीएसटी हर हाल में पूरे देश में लागू हो जाए। इस कानून की सार्थकता तभी है, जब इसके सहायक तीन और विधेयक पारित हो जाएं। इनमें केंद्रीय वस्तु एवं सेवाकर, समन्वित वस्तु एवं सेवाकर और वस्तु एवं सेवा कर ( राजस्व के नुकसान का मुआवजा) विधेयक शामिल हैं। जीएसटी की ज्यादातर कर दरों को अंतिम रूप दिया जा चुका है।

अर्थव्यवस्था से जुड़े इन विधेयकों के अलावा समाजिक व्यवस्था को नया रूप देने वाले करीब दर्जन भर विधेयक लंबित हैं। जिनमें तीन तलाक, श्रम सुधार और किराए की कोख नियमन विधेयक लंबित हैं। इस विधेयक के जरिए किराए की कोख संबंधी राष्ट्रीय बोर्ड, राज्य स्तरीय बोर्ड और किराए की कोख प्रक्रिया एवं चलन के नियम तय होंगे। सरकार तीन तलाक की तरह ईसाई दंपतियों से जुड़े डेढ़ सौ साल पुराने कानून में संसोधन के भी मूड में है। ईसाई समुदाय इसमें संशोधन की मांग अर्से से कर रहा है। हालांकि फिलहाल यह प्रस्ताव केंद्रीय मंत्री मंडल से मंजूर नहीं हुआ है। विधि मंत्रालय के प्रस्ताव के अनुसार आपसी सहमति से तलाक के लिए आवेदन दाखिल करने वाले ईसाई दंपत्तियों को अर्जी लगाने से पहले अलग-अलग रहने की अवधि को मौजूदा दो साल से कम करके एक साल करने के लिए तलाक अधिनियम 1869 में संशोधन किया जाना है। दरअसल हिंदू विवाह अधिनियम, पारसी और विशेष विवाह अधिनियमों में यह अवधि एक साल है। इस संशोधन का आदेश सर्वोच्च न्यायालय ने दिया था। ईसाई समुदाय के सदस्यों की मांग को मानकर कानून मंत्रालय ने अलग रहने की अवधि को कम करने का प्रस्ताव रखने का फैसला किया है।

लेकिन विधेयकों पर मुनासिब बहस करने से इतर संसद में उन मुद्दों पर ज्यादा हुल्लड़ होने की आषंका है, जिन पर नीतिगत एक राय बनाना संभव नहीं है। इनमें नोटबंदी, सेना की सर्जिकल स्ट्राइक और भोपाल में सिमी के पुलिस मुठभेड़ में मारे गए 8 आतंकी रहेंगे। लेकिन सबसे बड़ा मूद्दा तो वह रहेगा जिसने विपक्षी दलों की नींद हराम की हुई है, अर्थात नोटबंदी का मुद्दा ! हमारे सांसदों में बहुत बड़ी संख्या ऐसे सांसदों की है, जो नोटबंदी से आफत अनुभव कर रहे होंगे ? यह नोटबंदी ठीक उस वक्त की गई है, जब उत्तरप्रदेश व पंजाब समेत पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। ऐसे में इस नोटबंदी ने संभावित प्रत्याशी और दल-प्रमुखों की नींद हराम कर दी है। क्योंकि ज्यादातर उम्मीदवार धन की बहुलता से ही जीत की बाजी गले लगा पाते हैं।

इसमें कोई दो राय नहीं कि सरकार ने कालाधन, भ्रष्टाचार एवं आतंकवाद पर नकेल कसने के लिए हजार-पांच सौ के नोट बंद करके जो निर्णायक पहल की है, वह स्वागत योग्य है। लेकिन नेक फैसले पर अमल की जो तमाम मुष्किलें पैदा हो रही हैं, उनका प्रबंध नोटबंदी लागू करने से पहले कर लिया गया होता तो शायद न तो देश में इतनी छुट्टे व नए नोटों के लिए मारी-मारी हो रही होती और न ही विपक्ष को जनता से सीधा जुड़ा इतना बड़ा मुद्दा मिला होता। इसलिए इस मुद्दे पर हंगामा खड़ा होना कोई हैरानी की बात नहीं है। 

यदि संसद में राजनीतिक गतिरोध बना रहता है और संसद अखाड़े में तब्दील होती रही तो उन विधेयकों और अधिनियमों पर बारीकी से बहस संभव नहीं है, जो देश की सवा सौ करोड़ जनता की भलाई व नियमन के लिए कानून बनने जा रहे हैं। सांसद का दायित्व भी यही बनता है कि वह विधेयकों के प्रारूप का गंभीरता से अध्ययन करे, जिससे यह समझा जा सके कि उसमें शामिल प्रस्ताव देश व जनता के हित से जुड़े हैं अथवा नहीं। लेकिन राज्यसभा और लोकसभा का यह दुर्भाग्य है कि ज्यादातर सांसद अधिनियम के प्रारूप पर चर्चा करने की बजाय, ऐसे मुद्दों को बेवजह बीच में घसीट के आते हैं, जिनसे उनकी क्षेत्रीय राजनीति चमके। ऐर्सी स्थिति सत्तारूढ़ सरकार के लिए लाभदायी होती है, क्योंकि वह बिना किसी बहस के ही ज्यादातर विधेयक पारित करा लेती है। जबकि विपक्ष सार्थक बहस करने की बजाय गाहे-बगाहे सरकार को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश में लगा रहकर संसद का समय जाया कर देता है। जबकि प्रजातांत्रिक मूल्यों की रक्षा की दृश्टि से यह स्थित देशहित में कतई नहीं है।

इस लिहाज से सत्तारूढ़ सरकार और दल का कर्तव्य बनता है कि वह राजनीतिक गतिरोध का समाधान, राजनीतिक तौर-तरीकों से ही निकाले। यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि राजग सरकार राज्यसभा में अभी बहुमत में नहीं है और कांग्रेस के सहयोग व समर्थन के बिना राज्यसभा से कोई भी अहम् विधेयक पास हो जाए, ऐसा आज की स्थिति में कतई मुमकिन नहीं है। इसलिए सत्ता पक्ष को संसद में गतीशीलता बनी रहे इस दृश्टि से व्यावहारिक और वास्तविक नजरिया अपनाना जरूरी है। दरअसल सत्ता पक्ष की विपक्ष के साथ एक अदृष्य सहमति राष्ट्रहित से जुड़े मुद्दों पर होती हैं। यह अलिखित परंपरा है। साथ ही संबंधों में मधुरता बनी रहे, इस नाते संवाद सम्प्रेषण निरंतर बना रहना चाहिए।

दुश्यंत कुमार की एक प्रसिद्ध गजल है - ‘सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए। ‘लेकिन हम सभी जानते हैं कि संसद के दोनों सदनों में सांसद पक्ष के हों, या विपक्ष के उनकी देश की सूरत बदलने में रुचि कम ही है। नतीजतन संसद में हंगामा खड़ा करके गतिरोध बनाए रखने की कोशिशें ही ज्यादा परवान चढ़ेगी। 



प्रमोद भार्गव 

शब्दार्थ 49,श्रीराम काॅलोनी

शिवपुरी म.प्र.

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लेखक वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार हैं।
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