जयललिता - भारत का सस्ता मीडिया एक बार फिर बेपर्दा - संजय तिवारी


पांच हज़ार साल पहले श्रीमद्भागवत में कलियुग को लेकर कई भविष्यवाणियां की गयी है। एक श्लोक है -
वित्तमेव कलौ नृणां जन्माचारगुणोदयः।
धरमन्यायव्यवस्थायां कारणं बलमेवहि।।
अर्थात कलियुग में जिस व्यक्ति के पास जितना धन होगा वह उतना ही गुणी माना जायेगा और क़ानून, न्याय केवल एक शक्ति के आधार पर लागू किया जायेगा। लोक बोलचाल की भाषा में इसे ही "जिसकी लाठी उसकी भेंस कहा गया" ! इस श्लोक को याद करने का मकसद यहाँ सिर्फ इतना भर है कि पांच हज़ार साल पहले हमारे पूर्वजो ने आने वाली पीढियो को सचेत कर के यह सब बता दिया था कि आने वाले दिन ऐसे ही होंगे , इसलिए साथ में प्राचीन वांग्मय भी आपको दिए जा रहे है ताकि नैतिक और अनैतिक को आप पहचान खुद को उसी अनुरूप व्यवस्थित कर के जीवन के क्रम को आगे बढाइये। 

दरअसल इस श्लोक की याद यू ही नहीं आयी। एक मित्र है अनन्य अविनाश , पेशे से पत्रकार है। बहुत दुखी हुए उस दिन जब जयललिता का निधन हुआ। वह राष्ट्रीय मीडिया में जयललिता के बारे में सच्ची खबर तलाश रहे थे , मसलन घोटाले , अनैतिक ढंग से पार्टी पर कब्ज़ा , बेनामी अकूत संपत्ति, आय से अधिक संपत्ति आदि आदि। अविनाश को पता नहीं कहा से यह भ्रम हो गया की देश के इस कथित चौथे स्तम्भ में वह सच देख पाएंगे। जब कुछ दिखा नहीं तो एक पोस्ट लिखी और साइबर आकाश में उड़ा दिया। 

वह लिखते है , जयललिता का जयराम क्या हुआ भारत का सस्ता मीडिया एक बार फिर बेपर्दा हो गया।पूरा नंगा, इसकी सारी गन्दगी दिख गयी। बिकाऊ, डरपोक और चालबाज भारतीय मीडिया। हमारे मीडिया ने अपने कॉस्मेटिक पुते चेहरे पर जो 'not for sale' का स्टीकर लगाया था वह जयललिता के आभामंडल में ऐसे उतर गया मानो हमारे सारे चैनेल होल सेल मार्केट में खड़े हों। अव्वल तो अपनी अधूरी झूठी कहानी को जनता के कान में ठूंसने की बड़ी ही चालाक और बेशर्म कोशिश। यह वही चैनल हैं जो घटना होने के पहले ही ब्रेकिंग जारी कर देते हैं, लेकिन जयललिता के मौत की खबर तब तक नहीं चलाये, जबतक मंत्रियों नेताओं ने श्रद्धांजलि ट्वीट नहीं कर दी। सच्चाई का स्टाम्प और ईमानदारी का सर्टिफिकेट जारी करने वाले चैनलों ने जयललिता के जीवन के स्याह पक्ष से यूं परहेज किया, जैसे वे कोई मामले ही नहीं थे। 

एक अतिमहत्वाकांछी, चालबाज, धोखेबाज, अवसरवादी और अहंकारी जयललिता को प्रेम की मूर्ती, दया की देवी और भारतीय राजनीति में सबसे बड़ा अवतार दिखाने की होड़ लगी रही चैनलों में। लेकिन किसी चैनेल की हिम्मत नहीं हुई की इस पूरे घटनाक्रम को , जे जयललिता के एपिसोड को एमजी रामचंद्रन की पत्नी की नजर से भी दिखा सके।किसी प्रोड्यूसर में यह दम नहीं दिखा जो बुलेटिन में यह जोड़ सके की जयललिता ने रामचंद्रन की पत्नी के हक पर डाका डाला था। एमजी रामचंद्रन के विरासत पर जबरिया कब्जा जमाया था। जयललिता, एमजी रामचंद्रन की अपने पत्नी से बेवफाई की बड़ी मिसाल हैं। रामचंद्रन धोखेबाज और चरित्रहीन नहीं होते तो जयललिता की जगह रामचंद्रन की पत्नी या उनका परिवार आज आगे होता। 

हमारा मीडिया कौन सा सच दिखाता है इसकी बानगी ही थी कि किसी ने इस पर जोर देना जरूरी नहीं समझा कि जयललिता का जीवन जनता के पैसों पर नेताओं के ऐश की कहानी भी है। ऐसा कहने का मतलब यह नहीं कि जयललिता के जनसरोकारों की कहानी को नकारा जा रहा है। लेकिन जयललिता को सिर्फ देवी बताना खबर के साथ न्याय कतई नहीं है। भारतीय राजनीति ऐसे लालू ,मुलायम, मायावती और जयललिता के किस्सों से भरी पड़ी है लेकिन उनका अंधा महिमामण्डन मीडिया के प्रति नफरत ही पैदा करता है। निराशा ही भरता है। 

दरसल यह गुस्सा केवल किसी अविनाश जैसे एक पत्रकार का ही भर नहीं है। इसी तरह का गुस्सा देश की सामान्य जनता के मन में बार बार आता जब जब वे इसी तरह महिमा ,मंडित होते माह भ्रष्ट की जीवनी बांचते राष्ट्रीय मीडिया को देखती है। जनता को यह बिलकुल समझ में नहीं आता की आखिर मीडिया का यह कौन सा चरित्र है। कैसे एक महा भ्रष्ट , महा ठग , महापापी अचानक ही उसकी नज़र में देवी देवता जैसा पूज्य बन जाता है। यही राष्ट्रीय मीडिया है जो आतंकवादियो को भी युवा नेता बता कर महिमामंडित करती है। वह कभी यह क्यों नहीं बताती कि कोई फ़िल्मी हीरोइन किसी रामचंद्रन को धोखा दे तमिलनाडु की महारानी तक बन जाती है। यह मीडिया क्यों नहीं बताता कि जयललिता के खिलाफ गवाही देने वाले राम विजयन की कोर्ट पहुचने से पहले ही कैसे मौत हो गयी थी और जयललिता दोषमुक्त कर दी गयी थी। 

राष्ट्रीय मीडिया को शायद भूलने की बीमारी है तो मैं यहाँ याद दिलाना उचित समझता हूँ कि 1996 में तत्कालीन जनता पार्टी के नेता और अब भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने मुकदमा दायर कर आरोप लगाया था कि जयललिता ने 1991 से 1996 तक सीएम पद पर रहते हुए 66.44 करोड़ रुपए की बेहिसाब संपत्ति इकट्ठा की थी। जब मामला बेंगलुरू की स्पेशल कोर्ट में पहुंचा तो प्रॉसिक्यूशन ने जयललिता की संपत्ति का ब्योरा दिया। कहा- जयललिता, शशिकला और बाकी दो आरोपियों ने 32 कंपनियां बनाईं जिनका कोई कारोबार नहीं था। ये कंपनियां सिर्फ काली कमाई से संपत्तियां खरीदती थीं। इन कंपनियों के जरिए नीलगिरी में 1000 एकड़ और तिरुनेलवेली में 1000 एकड़ की जमीन खरीदी गई। जयललिता के पास 30 किलोग्राम साेना, 12 हजार साड़ी थीं। उन्होंने अपने दत्तक बेटे वी.एन. सुधाकरण की शादी पर 6.45 करोड़ रुपए खर्च किए। अपने आवास पर एडिशनल कंस्ट्रक्शन पर 28 करोड़ रुपए लगाए।जब मामला हाईकोर्ट में पहुंचा तो जयललिता के वकील बी. कुमार ने बताया कि सुधाकरण की शादी पर 29 लाख रुपए ही जयललिता ने खर्च किए थे। एडिशनल कंस्ट्रक्शन पर 13 करोड़ रुपए नहीं, सिर्फ 3 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। इस मामले में वे कर्नाटक हाईकोर्ट से बरी हो गई थीं।

आय से ज्यादा संपत्ति के मामले में जयललिता और शशिकला को जेल पहुंचाने में उसके एक नौकर की गवाही ने अहम भूमिका निभाई थी। ये था जयललिता के चेन्नई स्थित आवास पर काम करने वाला जयरामन। उसने कोर्ट में गवाही दी थी कि शशिकला के कहने पर वह रोज पूर्व मुख्यमंत्री के घर से नोटों से भरे बैग बैंक ले जाता था, जहां जयललिता और शशिकला की फर्मों के अकाउंट थे। बैंक में पैसे जमा कराने वाला जयराम का दूसरा साथी राम विजयन कोर्ट में बिना गवाही दिए ही मर गया। इसी आधार पर वकीलों को यह साबित करने में बहुत मदद मिली कि जयललिता ने भ्रष्टाचार के जरिए पैसा कमाया।

यह सब सामने होकर भी यदि मीडिया के लिए ढका हुआ रह गया तो अब इस मीडिया के बारे में क्या कहा जा सकता है। इतना ही नहीं , जयललिता की एक मात्र रक्त संबंधी उनकी सगी भतीजी उसी दिन से अस्पताल और चेन्नई तक का चक्कर काटने लगी थी, जब वह बीमार हुई थी लेकिन कौन सी शक्तियां थी जिनके आदेश पर उस लड़की को हर जगह से खदेड़ा जाता रहा , यह बात भी हमारे देश की मीडिया को दिखाने या बताने की जरूरत महसूस नहीं हुई। 

जयललिता के निधन के बाद उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाए जाने को लेकर जिस तरह अटकलें हैं, उसी तरह बड़ा सवाल यह भी है कि उनकी 114 करोड़ रुपए की प्रॉपर्टी का वारिस कौन होगा। जयललिता 6 बार सीएम रहीं। वह अक्सर अपनी लाइफस्टाइल के चलते विवादों में रहीं। कहा जाता था कि उनके पास 10 हजार से ज्यादा साड़ियां और तकरीबन 750 जोड़ी चप्पलें थीं। वहीं, अप्रैल 2015 में AIADMK चीफ ने खुद अपनी 114 करोड़ रुपए की संपत्ति का एलान किया था। इसमें 44 करोड़ का पोएस गार्डन का बंगला, 8 कारें और 22 किलो सोना शामिल है। राधाकृष्णन नगर असेंबली सीट से चुनाव लड़ने के लिए दाखिल हलफनामे के मुताबिक, जयललिता के पास 41.63 करोड़ की मूवेबल और 72 करोड़ रुपए इम्मूवेबल प्रॉपर्टी थी। उन्होंने तब 41 हजार रुपए कैश इन हैंड, 2.04 करोड़ रुपए की लायबिलिटी और अपना प्रोफेशन एग्रीकल्चर बताया था। हलफनामे में उन्होंने कहा था कि उनके पास करीब 22 किलो की गोल्ड ज्वेलरी है। इसकी वैल्यू उन्होंने इसलिए नहीं बताई थी क्योंकि यह ज्वेलरी बेहिसाबी संपत्ति के मामले में कर्नाटक सरकार की ट्रेजरी में जमा थी। उस वक्त उस पर एक केस सुप्रीम कोर्ट में भी पेंडिंग था। जयललिता ने खुलासा किया था कि उनके पास 3.12 करोड़ रुपए के 1250 किलोग्राम चांदी का सामान है। जयललिता पांच कंपनियों में पार्टनर थीं। इस पार्टनरशिप की वर्थ 27.44 करोड़ रुपए थी। ये कंपनियां हैं- श्री जया पब्लिकेशंस, शशि एंटरप्राइज, कोडानाद एस्टेट, रॉयल वैलरी फ्लोरिटेक एक्सपोर्ट्स और ग्रीन टी एस्टेट। हलफनामे में उन्होंने बताया था कि कंपनियों में उनके शेयर्स और कई तरह के डिपॉजिट्स पुलिस ने जब्त कर लिए थे और यह केस बेंगलुरु की कोर्ट में पेंडिंग था। जयललिता ने एनएसएस, पोस्टल सेविंग्स, इंश्योरेन्स पॉलिसी में कोई इन्वेस्टमेंट नहीं किया था। उनके पास कोई पर्सनल लोन नहीं था।

जयललिता ने बताया था कि वेदा नीलयम में 24 हजार स्क्वेयर फीट में फैला उनका घर है। इसका बिल्टअप एरिया 21,662 स्क्वेयर फीट है। इसकी 2015 में कीमत 44 करोड़ रुपए की थी। उन्होंने 1967 में यह प्रॉपर्टी 1.32 लाख रुपए में खरीदी थी। तेलंगाना के रंगा रेड्डी जिले के जीडीमेटला गांव में उनके पास 14.50 एकड़ खेती की जमीन थी। यह जमीन उन्होंने 1968 में खरीदी थी। ऐसी ही 3.43 एकड़ जमीन तमिलनाडु के कांचीपुरम में चेय्यूर गांव में भी थी जो उन्होंने अपनी मां के साथ 1981 में खरीदी थी। जयललिता के नाम चेन्नई-हैदराबाद में एक-एक इमारतों समेत कुल 4 बिल्डिंग्स थीं। जयललिता के पास दो Toyota Prado SUVs थीं जिसकी कीमत 40 लाख रुपए थी। उनके नाम एक टेम्पो ट्रेवलर, एक महिंद्रा जीप, एक एंबेसेडर, एक महिंद्रा बोलेरो, एक स्वराज माजदा मैक्सी और 1990 की कंटेसा थी। इन सभी की कीमत 42 लाख रुपए थी।

अब जब जयललिता नाम की कथित देवी इस दुनिया में नहीं है तब उनकी अकूत संपत्ति और विरासत को लेकर चर्चाये होनी ही है। यह अलग बात है की इस चर्चा में भी मीडिया उनके दत्तक पुत्र या उनकी भतीजी को लेकर कोई चर्चा नहीं कर रहा। चर्चा हो रही है उस शशिकला की जिसे जयललिता ने अपने साम्राज्य विस्तार की सहचरी तो बनाया लेकिन बाद में किनारे भी कर दिया था। ये शशिकला नाम की विदुषी के इतिहास पर भी नज़र डालना बहुत जरूरी है। एमजी रामचंद्रन (एमजीआर) जब शीर्ष पर थे तब उनकी एक करीबी आईएएस थी वी एस चंद्रलेखा। इस चंद्रलेखा के पीआरओ थे एम नटराजन। ये शशिकला जी उन्ही नटराजन साहब की पत्नी बतायी जा रही है। एमजी रामचंद्रन (एमजीआर) की करीबी आईएएस वीएस चंद्रलेखा के पीआरओ एम नटराजन की पत्नी शशिकला 80 के दशक में जयललिता के संपर्क में आईं और उनकी सबसे करीबी बन गईं। यहां तक कि पन्नीरसेल्वम अगर जया के अदालती मामलों में फंसने के चलते पहले दो बार सीएम बने तो शशिकला की मंजूरी के बाद ही बने। जयललिता की संपत्ति शशिकला संभाल सकती हैं।

कहा जा रहा है कि शशिकला के प्रभाव के चलते ही जयललिता ने उसके भतीजे वीएन सुधाकरन को अपना दत्तक पुत्र बनाया। वे ही जया टीवी संभालते हैं। 1995 में वीएन सुधाकरण की शादी पूरी दुनिया में चर्चित हुई। तमिल फिल्मों के महानायक शिवाजी गणेशन की सबसे छोटी बेटी से हुई उनकी इस शादी पर 100 करोड़ रुपए जो खर्च हुए थे। 1996 के आम चुनाव में इसी वजह से जयललिता की पार्टी राज्य की सभी 39 सीटें हार गई।

संजय तिवारी 

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