शिवपुरी के रोबिन हुड - सुशील बहादुर अष्ठाना

महाराज दिलीप सिंह जू देव के साथ सुशील जी व जगदीश जी वर्मा 



साईकिल की पंचर जोड़कर अपने परिवार का उदर पोषण करने वाला एक अतिशय निर्धन व्यक्ति शिवपुरी का विधायक बन गया, यह तो शायद कोई बहुत ख़ास बात नहीं है, किन्तु उसे आम व्यक्ति "भाई साहब" का आत्मीय संबोधन देने लगे, ऐसा विलक्षण चमत्कार कम ही देखने को मिलता है ! 

शिवपुरी जिले में भारतीय जनसंघ के निर्विवाद एकछत्र नायक रहे श्री सुशील बहादुर अष्ठाना का जन्म अगस्त 1928 में श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दूसरे दिन मंदसौर में हुआ ! पिता श्री जंग बहादुर अष्ठाना पी.डव्लू.डी. में कार्यरत थे ! स्थानान्तरण के कारण वे जहां जहां जाते, पूरा परिवार भी स्वाभाविक ही साथ जाता ! अतः सुशील जी की प्रारम्भिक शिक्षा विदिशा में हुई ! पिताजी के शिवपुरी स्थानान्तरण होने पर वे भी शिवपुरी आये और शिवपुरी महाविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की व प्रथम छात्र संघ अध्यक्ष बनने का गौरव प्राप्त किया ! वे लगातार दो बार छात्र संघ अध्यक्ष चुने गए !

पिताजी के स्वर्गवास के बाद उन्होंने कुछ समय पी.डब्लू.डी. में ही नौकरी भी की, किन्तु अधिकारियों से विवाद के चलते नौकरी छोड़ दी ! किन्तु उनके इस निर्णय के कारण उन्हें गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा ! साइकिल की पंचर जोड़ने व पेंटिंग को व्यवसाय बनाना पड़ा ! आर्थिक कठिनाईयों से जूझते हुए भी सुशील जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक के रूप में भारत विभाजन के दौरान आये हुए विस्थापितों के पुनर्वास में सहयोग के साथ हिन्दू समाज में व्याप्त असुरक्षा की भावना दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया ! 

जनसंघ के कर्मठ व जोशीले कार्यकर्ता के रूप में जनता के बीच धाक जमाने में जितने सुशील जी सफल हुए, उतना बाद के वर्षों में भी, या यूं कहा जाए कि आज तक भी, कोई अन्य नेता नहीं हो पाया ! बड़े से बड़े सूरमा अथवा धन्ना सेठ किसी मजलूम गरीब को सताने में उनके कारण भय खाने लगे थे ! आतताईयों व अत्याचारियों का मान मर्दन करना सुशील जी की खूबी थी ! जिसके कारण आम जन में उनकी छवि समाज में रोबिनहुड जैसी बन गई थी ! यही कारण है कि समाज के हर छोटे बड़े व्यक्ति ने उन्हें “भाई साहब” का आत्मीय संबोधन देना प्रारम्भ कर दिया !

मात्र 29 वर्ष की अवस्था में उन्होंने पहला विधानसभा चुनाव लड़ा ! शिवपुरी विधान सभा क्षेत्र से 1957 व 1962 में सुशील जी को भारतीय जनसंघ का प्रत्यासी बनाया गया ! यह अलग बात है कि दोनों बार उनकी जमानत जब्त हुई ! किन्तु उसके बाद धीरे धीरे परिद्रश्य बदलने लगा ! 62 के भारत चीन युद्ध के समय रक्षा कोष के लिए धन संग्रह अभियान चला, 65 में कच्छ के विशाल भूभाग पर पाकिस्तानी घुसपैठ के खिलाफ प्रदर्शन हुआ ! जन समस्याओं के निराकरण हेतु भी जनसंघ ने आन्दोलन चलाये ! उन दिनों जिला बंदी थी, कोई भी अपना अनाज एक जिले से दूसरे जिले में ले जाकर नहीं बेच सकता था ! जहाँ एक ओर किसान अपनी फसल को ओने पाने दामों में बेचने को विवश होता था, बहीं दूसरी ओर व्यापारी भी दूसरे जिलों में गल्ला न ले जा पाने के कारण कई बार घाटा सहने को विवश होता था ! 

इस व्यवस्था के विरोध में जनसंघ ने पूरे प्रदेश में प्रभावी आन्दोलन किया ! शिवपुरी में सुशील बहादुर अष्ठाना, बाबूलाल गुप्ता, भगवती भैया, प्रसन्न जी, कौशल चन्द्र जैन, डॉ. द्वारका प्रसाद गुप्ता, घनश्याम भसीन जैसे प्रमुख कार्यकर्ता तो कोलारस में बाबूलाल जी पांडे, महेश सर्राफ, पिछोर में राजाराम लोदी, करैरा में सुगनचंद जैन, गोवर्धन तिवारी, कासिम खां, नरवर मगरौनी में भगवानदास माहेश्वरी, लालाराम सोनी, महावीर प्रसाद, बिहारीलाल बांदिल तथा पोहरी में रामजीलाल शर्मा आदि के नेतृत्व में बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं ने जिला बंदी विरोधी आन्दोलन में हिस्सा लेकर गिरफ्तारियां दीं ! हालत यह हो गई कि शिवपुरी जेल में स्थान शेष न होने के कारण कई कार्यकर्ताओं को दतिया जेल में भेजा गया ! सभी को दस से पंद्रह दिन तक जेलों में रहना पड़ा !

1966 में दिल्ली संसद भवन के सामने गौरक्षा आन्दोलन हुआ ! बड़ी संख्या में शिवपुरी के कार्यकर्ता भी इस आन्दोलन में शामिल होने दिल्ली पहुंचे ! यह स्वतंत्र भारत का तब तक का पहला सबसे बड़ा जन आन्दोलन था ! इसे असफल बनाने हेतु पहली बार योजना बद्ध ढंग से जम्मू कश्मीर के चरमपंथियों ने काम किया ! उन्होंने आन्दोलनकारियों में सम्मिलित होकर आगजनी व तोड़फोड़ शुरू कर दी ! हालत इतने बिगड़ गए कि पुलिस को गोलियां चलानी पडीं ! सैंकड़ों की संख्या में साधू संत व निर्दोष आन्दोलनकारी मारे गए ! कितने मरे यह संख्या कभी सामने नहीं आई ! आहत और दुखी कार्यवाहक प्रधानमंत्री गुलजारीलाल नंदा ने संवेदनशीलता का परिचय दिया और पद त्याग कर दिया ! यही तो षडयंत्रकारी चाहते थे ! उनकी योजनानुसार इंदिरा गांधी की ताजपोशी हुई ! पूरा देश इस हत्याकांड से उबल रहा था ! सरकार की बहुत बदनामी हुई !

मध्यप्रदेश में 1967 में महंगाई विरोधी प्रचंड आन्दोलन हुआ ! चकबंदी, जिला बंदी व महंगाई से त्रस्त जनता के आक्रोश को जनसंघ के कार्यकर्ताओं ने स्वर दिया ! गुलाबी चना काण्ड ने कांग्रेस व तत्कालीन खाद्य मंत्री गौतम शर्मा को खल नायक बना दिया ! उन्ही दिनों बस्तर में आदिवासी आन्दोलन शुरू हुआ व महाराज प्रवीण चन्द्र भंजदेव की गोली मारकर ह्त्या कर दी गई ! ग्वालियर में भी 9 अगस्त को छात्र नेता हरिसिंह व दर्शन सिंह पुलिस की गोलियों से मारे गए ! 

इन सबका परिणाम यह निकला कि लौह पुरुष कहे जाने वाले मुख्य मंत्री डॉ. द्वारका प्रसाद मिश्र के खिलाफ जन आक्रोश से प्रभावित राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनसंघ के सहयोग से एक मजबूत गठबंधन का निर्माण किया ! प्रारम्भ में उन्होंने क्रांतिदल के नाम से एक नई पार्टी का गठन किया, जिसमें अनेक पुराने कांग्रेसी तथा कई नामी गिरामी हिन्दू महासभाई नेता शामिल हो गई ! परिणाम यह निकला कि जहाँ तब तक मध्यप्रदेश की 320 सदस्यीय विधानसभा में प्रतिपक्ष के 50 सदस्य भी नहीं थे, 1967 के चुनाव में सत्तारूढ़ कांग्रेस की फजीहत हो गई, उसकी करारी हार हुई व संविद सरकार बनी !

शिवपुरी विधान सभा की पाँचों सीटों पर कांग्रेस प्रत्यासी पराजित हुए ! शिवपुरी से सुशील बहादुर अष्ठाना, कोलारस से जगदीश वर्मा, पोहरी से बाबूलाल धानुक, पिछोर से लक्ष्मीनारायण गुप्ता व करैरा से स्वयं राजमाता विजयाराजे सिंधिया विजई हुईं ! 

सुशील जी जनमननायक कैसे बने, यह उस दौर के कुछ संस्मरणों से स्पष्ट होता है –

थानेदार की जग हंसाई –

यूं तो सुशील जी के पराक्रम की अनेक गाथाएँ हैं, किन्तु एक थानेदार का मानमर्दन जिस प्रकार हुआ, वह तो अद्भुत व बेजोड़ ही है ! हुआ यूं कि एक नगरपालिका चुनाव में एक मुस्लिम नाबालिग तरुण फर्जी वोट डालते हुए पकड़ा गया ! कार्यकर्ता उसे पकड़कर थाने ले गए और उसे थानेदार के सुपुर्द कर दिया ! पीछे पीछे मुस्लिम समाज का हुजूम भी थाने पहुँच गया, घबराये थानेदार ने प्रकरण कायमी नहीं की ! मालूम पड़ने पर सुशील जी भी थाने पहुंचे व थानेदार को समझाया कि लडके की उंगली पर स्याही का निशान है, इसका अर्थ ही यह है कि इसने वोट डाला है, अतः आपको कार्यवाही करना चाहिए ! किन्तु थानेदार बदतमीजी पर उतर आया, यहाँ तक कि उन पर डंडा तानने की जुर्रत भी कर बैठा ! फिर क्या था सुशील जी आगबबूला हो गए और फिर हुई - जैसे देव बैसी पूजा !

जमींदोज और अपमानित थानेदार ने सुशील जी पर मारपीट का मुक़दमा कायम कर दिया ! 

अब सामने आये तत्कालीन संघचालक व मामले को जलेबी बनाने की महारत में विख्यात बाबूलाल जी शर्मा वकील साहब ! श्री मंसूरकर न्यायाधीश थे ! जिरह से प्रभावित न्यायाधीश ने पुलिस वालों से प्रतिप्रश्न किया कि कोतबाली के अन्दर चार पुलिस वाले थे और मारपीट का मुक़दमा कायम हुआ है एक सुशील बहादुर पर ! एक अकेला आदमी चार पुलिस वालों को कैसे पीट सकता है ? और अगर आप चार पुलिस वाले एक अकेले आदमी से पिटे हो तो क्या आप पुलिस की नौकरी के काबिल हो ?

जैसे ही यह प्रश्न उठा पुलिस वालों की सिट्टीपिट्टी गम हो गई ! उन्हें अपनी नौकरी खतरे में दिखने लगी ! अब तो वे सुशील जी के पैर छूने लगे, उन्हें मनाने लगे कि कहीं वे अदालत में यह बयान न दे दें कि उन्होंने सही में पुलिस वालों को पीटा है ! पान की दुकानों, चाय की गुमटियों और गलियों चौराहों पर जन चर्चा का यह चटखारेदार विषय बन गया ! ऐसी थी उन दिनों की जनसंघ टोली !

मुख्यमंत्री की सभा में हंगामा –

उन दिनों श्री तख्तमल जैन प्रदेश के मुख्यमंत्री थे ! जिला कांग्रेस अधिवेशन के दौरान 14 नंबर कोठी में उनकी सभा चल रही थी ! दलबल के साथ सुशील जी भी सभा सुनने वहां पहुंचे हुए थे ! एक तरुण सिन्धी कार्यकर्ता हासानंद को मुख्यमंत्री की चमकदार कार ने बड़ा प्रभावित किया और वह उस गाड़ी पर हाथ फेरने लगा ! ड्राईवर को उसका गाडी छूना नागवार गुजरा और उसने हासानंद को एक झापड़ रसीद कर दिया ! हासानंद मिरगी का मरीज था, वह चांटा बर्दास्त नहीं कर पाया और जमीन पर गिरकर तड़पने लगा ! बस फिर क्या था, सुशील जी व अन्य कार्यकर्ता उस ड्राईवर पर पिल पड़े ! ड्राईवर को उसके बर्ताव का भरपूर दण्ड मिला ही, कांग्रेस अधिवेशन भी पूरी तरह अस्तव्यस्त हो गया, भगदड़ मच गई !

पुलिस ने सुशील जी को हिरासत में ले लिया, किन्तु जनभावनाएं उन दिनों सुशील जी से इतनी जुड़ चुकी थीं कि कोतवाली पर सैकड़ों की संख्या में भीड़ इकट्ठी हो गई ! घबराये हुए पुलिस अधिकारियों ने सुशील जी को छोड़ने में ही भलाई समझी !

फ़ूड ऑफिसर की शामत आई –

सुशील जी उन दिनों विधायक तो नहीं बने थे, किन्तु उनके परिचय संपर्क प्रदेश स्तर पर भी अत्याधिक बढ़ चुके थे ! एक कार्यकर्ता को किसी घरेलू समारोह के लिए 10 किलो शक्कर की आवश्यकता थी ! सुशील जी ने उन्हें फ़ूड ऑफिसर के पास भेजा, किन्तु फ़ूड ऑफिसर ने कार्यकर्ता को अपमानित कर भगा दिया, आवेदन भी फाड़ कर फेंक दिया ! आहत कार्यकर्ता ने सुशील जी को ताना मारा – चलती नहीं है, तो अफसरों के पास हमें क्यों भेजते हो ?

क्रोधित सुशील जी तुरंत फ़ूड ऑफिसर के पास पहुंचे और उसे वार्निंग दे दी कि अब तुम्हारे दिन शिवपुरी में पूरे हुए, अपना बोरिया बिस्तर बाँध लो !

कुछ ही दिनों में ऑफिसर का ट्रांसफर शिवपुरी से सरगुजा हो गया ! घबराया हुआ वह सुशील जी के पास आकर मिन्नतें करने लगा ! सुशील जी पिघल गए और उसका ट्रांसफर निरस्त भी हो गया !

जिस कार्यकर्ता को दस किलो शकर का परमिट नहीं मिला था, फिर उसे कंट्रोल की दूकान ही अलोट हुई, जो उसके पास 19 वर्ष रही !

कष्ट में रहा परिवार –

सुशील जी जन नायक तो बन गए किन्तु स्वयं उन्हें लम्बे समय तक अपनी घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मोहताज ही रहना पड़ा ! यहाँ तक कि उनके परिवार के लोगों को भी कष्ट उठाने पड़े ! उनके छोटे भाई बलबंत बहादुर अष्ठाना शासकीय अध्यापक थे ! उन्होंने आबकारी अधिकारी पद के लिए आवेदन दिया ! किन्तु उन्हें जनसंघ से सम्बंधित बताकर नियुक्ति पत्र नहीं दिया गया ! आहत बलबंत जी ने आवेदन देकर पूछा कि अगर वे आबकारी अधिकारी पद के लिए उपयुक्त नहीं हैं तो शासकीय अध्यापक कैसे हैं ?

हद तो तब हुई जब उनके इस आवेदन के आधार पर उन्हें शिक्षक पद से भी बर्खास्त कर दिया गया ! बाद में सुशील जी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री डी.पी. मिश्रा से व्यक्तिगत भेंट की, उसके बाद बलबंत बहादुर जी को नौकरी तो मिल गई, किन्तु वह पुनर्नियुक्ति मानी गई ! पूर्व का सेवाकाल उनकी सेवा पुस्तिका में से हटा दिया गया ! बाद में संविद सरकार बनने के बाद उनका नौकरी से पृथक रहा कार्यकाल, लीव विदआउट पे माना जाकर सर्विस बुक में जोड़ा गया ! 

तो ऐसा होता था उन दिनों समाज सेवा का मार्ग ! ये पंक्तियाँ चरितार्थ होती थीं -

कष्ट कंटकों में पड़ करके जीवन पट झीने होंगे,
कालकूट के विषमय प्याले प्रेम सहित पीने होंगे !


आज सुशील भाई साहब नहीं हैं, किन्तु उनकी स्मृतियाँ शिवपुरी वासियों के दिलों में सुदीर्घ काल तक बनी रहने वाली हैं !

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