शिवाजी और औरंगजेब - एक अति लघुलेख


श्रीमान योगी की प्रस्तावना में महाराष्ट्र के प्रमुख विचारक स्व. नरहर क्रोणकर जी ने लिखा कि जो महापुरुष होते हैं, वे काल से ऊपर उठकर दो सौ तीन सौ साल पीछे और दो सौ तीन सौ साल आगे देखते हैं ! इसलिए उनका जीवन लक्ष्य, उनके कार्य, उनके जीवन में पूर्ण न भी हुए तो उनके बाद भी चलते रहते हैं !

1674 में शिवाजी का राज्याभिषेक हुआ ! आम जन को लगा कि बस अब ये शिवाजी सीधे औरंगजेब पर चढ़ दौड़ेंगे ! किन्तु 1674 से 1680 में शिवाजी की मृत्यु तक ऐसा कुछ हुआ नहीं ! औरंगजेब दिल्ली में था, किन्तु उससे विपरीत दिशा में दक्षिण में तमिलनाड के जिन्जी तक शिवाजी ने अपने राज्य का विस्तार किया ! महाराष्ट्र में अपने अधिपत्य के 300 किलों में से प्रत्येक किले को मजबूती दी, उसे अभेद्य बनाया ! प्रजा की सुख समृद्धि की ओर ध्यान दिया ! प्रजा बड़ी हैरान कि यह हो क्या रहा है ! 

बाद में शिवाजी की मृत्यु के बाद जब औरंगजेब ने महाराष्ट्र पर चढ़ाई की, तब शिवाजी के उत्तराधिकारी राजाराम उस समय जिन्जी पर थे, इतनी जल्दी उनका वापस लौटना संभव नहीं था ! इसके बाबजूद औरंगजेब को एक एक किला जीतना मुश्किल हो गया ! एक किला जीने में दो दो तीन तीन साल लगते थे ! तीन चार किले जीतकर आगे बढ़ा तब तक मराठे पहले जीते किले वापस अपने अधिकार में ले लेते थे ! 27 साल तक औरंगजेब लडता रहा और आखिर में बहीं मर गया और वहीं पर मुग़ल सल्तनत की कबर खुद गई !

क्रोणकर लिखते हैं कि 1674 से 1680 तक शिवाजी ऐसे औरंगजेब से लडे, जो महाराष्ट्र में आया ही नहीं था ! और 1680 के बाद 27 साल औरंगजेब ऐसे शिवाजी से लड़ा जो इस दुनिया में ही नहीं थे !

महानायक ऐसे ही होते हैं !

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