बेनामी की सुनामी और बेईमानों से बेईमानी का आव्हान !
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तू डाल डाल मैं पात पात की तर्ज पर सरकार और काला धन धारकों के बीच शतरंज की बिसात बिछी हुई है ! ऐसा लगता है आने वाले दो वर्ष तक यही खेल चलता रहेगा ! इसका नतीजा अच्छा होगा या बुरा, यह आज कहना, अनुमान लगाना कठिन है !
बात केवल मुद्रा परिवर्तन की नहीं है, याद कीजिए मोदी जी की उस घोषणा की, जिसमें उन्होंने स्पष्ट कहा था कि 30 सितम्बर तक इनकम डिस्क्लोजर स्कीम (आय घोषणा योजना) के अंतर्गत काला धन 45 प्रतिशत टेक्स देकर घोषित किया जा सकता है ! 30 सितंबर को इस योजना की अवधि पूरी होने तक इसके तहत लगभग 65,250 करोड़ रुपए का खुलासा होने का एलान हुआ था। और इसके तहत घोषित की गई आय पर लगने वाले कर की पहली किश्त नवंबर 2016 में व अंतिम 20 सितंबर 2017 तक जमा होनी है। लेकिन पिछले दिनों एक अहम खुलासा हुआ ! महेश शाह नामक एक रियल एस्टेट कारोबारी ने 13.8 हज़ार करोड़ रुपए की अघोषित आय का ब्यौरा घोषित किया, किन्तु जब किश्त चुकाने की नौबत आई, वह फरार हो गया ! बाद में एक टीवी चेनल शो में वह नमूदार हुआ और बयान दिया कि उसके द्वारा घोषित आय का व्यौरा अकेले उसका नहीं है, उसमें कई नेता और अफसरों का पैसा भी सम्मिलित है, जिन्होंने पहले अपने हिस्से की किश्त देने हेतु सहमति दी थी, किन्तु घोषणा के बाद मुकर गए !
गोविन्दाचार्य जी ने पूर्व में ही रियल स्टेट में काला धन खपा होने की बात की थी, अन्य लोग भी इस संभावना को सबसे अधिक अहमियत दे रहे हैं, स्वयं प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भी काले धन से लड़ाई के अगले चरण में बेनामी संपत्ति को टार्गेट करने की बात की है ! ऐसे में महेश शाह का यह दावा कि उसके द्वारा घोषित की गई आय में अनेक नेता, अफसर और बिल्डर्स शामिल हैं, महत्वपूर्ण और गंभीर है !
इसके बाद के घटनाचक्र पर विचार कीजिए ! सरकार ने आईडीएस के जरिए काला धन रखने वालों को एक मौका दिया और कहा कि यह अंतिम है, उसके बाद उन पर अब गाज गिरना तय है। लेकिन हुआ क्या ? अब सरकार ने काला धन रखने वालों को एक और मौक़ा देने की बात की है ! वित्त मंत्री ने काला धन रखने वालों को 50 फीसदी कर चुका कर उसे सफेद बनाने का एक और मौका देने के लिए संसद मे आयकर कानून में संशोधन करने के लिए इधर विधेयक पेश किया है ! कुछ वरिष्ठ पत्रकार व विचारक इसे अपनी बात से पीछे हटना बताकर सरकार को चिढा रहे हैं !
इन आलोचनाओं से बेपरवाह नरेंद्र मोदी अपनी सुविचारित रणनीति पर आहिस्ता आहिस्ता लक्ष्य की ओर बढ़ते जा रहे हैं ! अब देखिये न, मुरादाबाद की एक जनसभा में जन-धन खाते वालों से आव्हान किया है कि - जिन्होंने भी आपके नाम से अपना पैसा आपके जनधन खातों में जमा किया है, उसे न लौटाएं ! इतना ही नहीं तो इसी रणनीति को आगे बढ़ाते हुए जन धन खातों से रकम निकासी का नया नियम बना दिया ! इन खातों से अब प्रतिमाह अधिकतम दस हजार रुपये ही निकाले जा सकेंगे ! जमा चाहे जितना कर दो, पर निकलेंगे केवल दस हजार रूपया महीना ! अब कल्पना कीजिए कि जिन धन्ना सेठों ने अपना ढाई ढाई लाख रूपया इन खातों में जमा किया है, वे तो फंस ही गए ! खातेधारी गरीब ईमानदारी से वापस करेगा भी तो पच्चीस महीनों बाद वापस होगा ! तब तक कोई नया नियम बन गया तो गए सेठ जी बारह के भाव में !
आंकड़ों के अनुसार गरीब लोगों के 25 करोड़ 56 लाख जनधन खाते हैं, जिनमें नोटबंदी के बाद पहले सप्ताह तीस हजार करोड़ तो दूसरे सप्ताह चौसठ हजार करोड़ रु जमा हुआ ! यह माना जाना स्वाभाविक है कि कालेधन वालों ने इनके खाते में पैसे जमा करवाएं। दस-दस हजार रु घरों में बांटे और जिस भी परिवार में 3-4 बैंक खाते खुले हुए थे तो उन सबमें पैसा जमा करवा दिया। वे बाद में पैसा नए नोट से निकालेंगे और सेठ जी को अपना कमीशन काटकर लौटा देंगे।
सीधा और साफ़ फंडा है कि मोदी सरकार अर्थ व्यवस्था को दीमक की तरह चाट रही काले धन की समस्या से आरपार की लडाई पूरे जोरशोर और दमखम से लड़ रही है ! दबे हुए काले धन को मुख्य प्रवाह में लाने की जीतोड़ कोशिश हो रही है ! उसके लिए चाहे समझौते का मार्ग अपनाना पड़े, चाहे ग़रीबों को बेईमानी के लिये उकसाना पड़े ! इस युद्ध में साम दाम दण्ड भेद सभी नीतियों का खुलकर सरकार उपयोग कर रही है !
ध्यान देने योग्य बात तो यह है कि मुद्रा परिवर्तन योजना से गरीब तो फायदे में रहा ही, क्योंकि उसे कमीशन मिला, या बड़े लोगों का पूरा पैसा डकारने का मौक़ा मिला, किन्तु साथ ही जो धन तिजोरियों में सड रहा था वो प्रवाह में आया ! दो हजार के नए नोट भी अब लोगों को बोझ लगने लगे हैं, बैंक से मिलते भी हैं, तो उन्हें जमा कर रखने के स्थान पर जल्द से जल्द ठिकाने लगाने की कोशिश होती है ! शायद अवचेतन में यह भय है कि दो हजार के ये नए नोट भी जल्द ही बंद हो सकते हैं ! कौन पच्चड में फंसे !
कुल मिलाकर बैंक के माध्यम से अधिकतम देनलेन को बढ़ावा मिल रहा है ! आम आदमी को परेशानी है भी, किन्तु उससे निजात पाने के लिए वह अपनी आदतें भी बदल रहा है ! विदेशी बेंकों में जमा काला धन कितना वापस आएगा, नहीं आयेगा, तिजोरियों में सड़ना तो बंद होगा ही ! साथ ही भारत में नया काला धन बनना भी कम होगा, इतना तो तय है ! आने वाले ढाई साल संक्रमण काल माने जा सकते हैं ! परिवर्तन का युग ! तय है कि 2019 आते आते, भारत की अर्थ व्यवस्था रफ़्तार पकड़ चुकी होगी ! सुनहरे भारत का सपना लेकर काम कर रहे नरेंद्र मोदी को इस बात की परवाह नहीं है कि परेशानी से लोग नाराज होकर उन्हें सत्ताच्युत कर सकते हैं ! उनके इसी फकीरी अंदाज का मैं कायल हूँ ! आपकी आप जाने !
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