भारत महाशक्ति क्यों नहीं है ? हमारे नेताओं के कारण - तुफैल अहमद


मेरी मांग है कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उनकी विदेशी नीति टीम के प्रमुख सदस्य शिवशंकर मेनन, सलमान खुर्शीद और एम के नारायणन पर हमारी भविष्य की पीढ़ियों के खिलाफ अपराध और साथ-साथ भारत के राष्ट्रीय हितों के खिलाफ काम करने के लिए राजद्रोह का मुक़दमा चलाया जाना चाहिए । इस मांग के समर्थन में मेरे पास मजबूत कारण हैं । मेरे हाथ में भरत कर्नाड की पुस्तक है, “Why India is Not a Great Power (Yet)” भारत अभी तक एक महाशक्ति क्यों नहीं बना ? इसके प्रत्येक अनुच्छेद को पढ़ते समय मुझे वह एक व्यथित बच्चे जैसा लगा, जो हमें बता रहा था कि कैसे इन नेताओं ने भारत के राष्ट्रीय हितों को लगातार दुर्भावना से जानबूझकर क्षति पहुंचाई, और कैसे 1.3 अरब आत्माओं वाले इस उपमहाद्वीप के हितों पर चीन और पाकिस्तान जैसे विरोधी देशों के हितों को तरजीह दी गई । कर्नाड की 552 पृष्ठ की इस पुस्तक की विस्तृत समीक्षा की आवश्यकता होगी, यह समीक्षात्मक लेख केवल इस बिंदु पर केन्द्रित है कि कैसे मनमोहन सिंह के नेतृत्व में उनकी टीम ने विदेश नीति को कुचल दिया और दुनिया में भारत की वैश्विक स्थिति और महत्वाकांक्षा को अपाहिज बना दिया ।

अगर आप 25 वर्ष से कम आयु के हैं, तो आप भारत की 55 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, यह देश आपका और आपके बच्चों का अधिक है, बनिस्बत 50 वर्ष या उससे अधिक आयु वर्ग के मुझ जैसे व्यक्ति की पीढ़ी के ! अतः यह आपके लिए जानना बेहद जरूरी है कि कैसे इन भारतीय नेताओं ने सत्ता में रहते हुए भारत के खिलाफ अपराधों की झडी लगा दी । मनमोहन सिंह 2004 से दस साल तक प्रधानमंत्री रहे ! एक ओर तो हमारे पूर्वजों ने हमें सिखाया कि भारत विश्व गुरु (दुनिया का नेता) होना चाहिए, मनमोहन सिंह ने 2007 में प्रधानमंत्री के रूप में लिखा कि भारत "एक वैश्विक महाशक्ति होने की इच्छा नहीं करता । शिवशंकर मेनन 2014 से चार साल तक मनमोहन सिंह के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे, उन्होंने तो स्थिति, प्रतिष्ठा या अन्य कोई लक्ष्य जो भारत के लिए लोकप्रिय या आकर्षक हो, को पूर्णतः खारिज कर दिया ।

इस पुस्तक में, कर्नाड नेहरूयुग से ही भारत की विदेश नीति विचारकों में व्याप्त मोहपूर्ण तनाव पर प्रहार करते हुए लिखते हैं कि कैसे प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक हमारे नेताओं ने मेजबान बनकर व्यावहारिक रूप से चीन और भारत जैसे दुश्मनों का आतिथ्य किया । जब अमेरिका और रूस द्वारा अलग अलग संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता हेतु भारत से पेशकश की, तब नेहरू ने लिखा, "अनौपचारिक रूप से, संयुक्त राज्य अमेरिका का सुझाव है कि चीन को संयुक्त राष्ट्र में तो रखा जाना चाहिए, किन्तु सुरक्षा परिषद में चीन को न रखते हुए उसके स्थान पर भारत को रखा जाना चाहिए । ज़ाहिर है, इसे हम स्वीकार नहीं कर सकते, क्योंकि यह चीन के साथ झगड़ने जैसा है, और चीन जैसे महान देश का सुरक्षा परिषद में न रखा जाना बहुत अनुचित होगा। "

पुस्तक हमें याद दिलाती है कि कैसे आज तक भारत को एक 'जिम्मेदार शक्ति" और "नेट सुरक्षा प्रदाता" बताया जा रहा है, जबकि वह महज विदेशी शक्तियों का एजेंडा निभाने तक ही सीमित है । ट्रैक द्वितीय कूटनीति में छिपे तौर पर सम्मिलित लोगों द्वारा किया गया यह खुलासा सार्वजनिक होने के बाद कि मनमोहन सिंह, अमेरिका की मध्यस्थता में, पाक अधिकृत कश्मीर को पूरी तरह पाकिस्तान को सौंपने के करीब थे, यह तथ्य ध्यान देने योग्य है कि इस बयान का कोई खंडन नहीं किया गया है । यह भारत के साथ विश्वासघात है, क्योंकि कानूनी स्पष्टता है कि पाक अधिकृत कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान, जम्मू और कश्मीर के दोनों हिस्सों में पैदा हुए लोग भारतीय नागरिक हैं । जो भारतीय नेता इतने महत्वपूर्ण विषय पर आपराधिक चुप्पी साढ़े हुए हैं, क्या हम उन्हें अपना कह सकते हैं ?

साभार - http://indiafacts.org/trial-of-manmohan-singh/  से अनूदित !

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