जम्मू-कश्मीर में सामान्य स्थिति बहाली के सकारात्मक संकेत : ओर्गेनाईजर की ग्राउंड रिपोर्ट 3 दिसंबर 2016



महीनों के बाद कश्मीर घाटी में कार्यालय, दुकानें, स्कूल और अन्य व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के खुलने के साथ ही घाटी में सामान्य स्थिति बहाल होने लगी है ! इससे भी अधिक रोचक और सकारात्मक दुकानदारों द्वारा अपने सामान को बेचने के लिए लगाई जाने वाली आवाज है ! वे ग्राहकों को अपनी दूकान की ओर आकर्षित करने के लिए उन्हें कुछ इस प्रकार पुकारते हैं –
सेल सेल सेल, गीलानी गवर्नमेंट फ़ैल !

20 नवम्बर रविवार को बाजार की फिजा में ये ही आवाजें सुनाई दे रही थी ! 133 दिनों के अंतराल के बाद जब श्रीनगर शहर का बाजार खुला तो इस प्रकार के नारे लगाकर दूकानदार एक तीर से दो शिकार करने की कोशिश कर रहे थे ! एक ओर तो वे ग्राहकों को आकर्षित कर अपने ऊनी कपडे और जैकेट बेच रहे थे और दूसरी तरफ वे लोग हैं कि सईद अली शाह गिलानी की विफलता को जनता के समक्ष उजागर कर अपनी नाराजगी का इजहार भी कर रहे थे ।

अपनी खाल बचाने को भले ही अलगाववादी नेता यह दावा कर रहे हैं कि रविवार को कश्मीर घाटी में बाजार उनकी सहमति से खोला गया था, क्योंकि उन्होंने दो दिन के लिए आन्दोलन स्थगित कर दिया था, किन्तु वास्तविकता यह है कि लोग उनके द्वारा बार बार किये जाने वाले बंद के आव्हान से तंग आ चुके हैं और वे अब अपने आपको उनसे दूर करना चाहते हैं । अलगाववादी नेताओं द्वारा शुरू लगभग तीन महीने लंबे आंदोलन से आम जन को खूनखराबे और विनाश के अतिरिक्त कुछ भी हासिल नहीं हुआ है, इसे समझकर लोगों का गुस्सा अब साफ़ झलक रहा है ।

दसवीं और बारहवीं कक्षा की परीक्षाओं के सफल आयोजन, बाजार का खुलना और 19 नवंबर से राज्य सरकार द्वारा मोबाइल नेटवर्क की बहाली आदि बातें इस बात का संकेत है कि कश्मीर घाटी में सामान्य स्थिति वापस लौट आई है । इसके पीछे का मूल कारण यह है कि घाटी के लोगों को एहसास हो गया है कि केंद्र में बैठी नरेंद्र मोदी सरकार पूर्ववर्ती सरकारों की तरह नहीं है, जिसे अलगाववादी नेता ब्लैकमेल कर दबाव में ले आते थे ! यह भी स्पष्ट है कि भाजपा के नेतृत्व वाली वर्तमान केंद्र सरकार गद्दार अलगाववादी नेताओं की धोखेबाज रणनीति के प्रति किसी भी प्रकार का लचीलापन नहीं दिखा रही है।

स्मरणीय है कि विगत 8 जुलाई को सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में हुई हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकवादी बुरहान वानी की मौत के बाद से अब तक घाटी में हुई हिसक वारदातों में 96 लोग मारे जा चुके हैं तथा सुरक्षाकर्मीयों सहित 5000 से अधिक लोग घायल हो चुके हैं ।

ऐसे में आई यह शान्ति उल्लेखनीय है ! यहाँ तक कि कश्मीर के उत्तर और दक्षिण भागों को जोड़ने वाली रेल सेवा भी पुनः प्रारम्भ हो चुकी है, जिसे आन्दोलनकारियों ने क्षतिग्रस्त कर दिया था ! अधिकारियों के अनुसार अगले दस दिनों में उत्तरी कश्मीर के बारामूला और दक्षिण के बनिहाल स्टेशन के बीच भी 120 किलोमीटर ट्रैक पर यातायात प्रारम्भ हो जाएगा ! श्रीनगर की सडकों पर सार्वजनिक परिवहन भी पूरी तरह से फिर से शुरू है ।

इसके पीछे का सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि अलगाववादी नेताओं की असलियत जनता के सामने उजागर हो चुकी है । लोगों ने धन्ना सेठ बने बैठे अलगाववादी नेताओं की अकूत संपत्ति पर भी उंगलियाँ उठानी शुरू कर दी हैं, जोकि उन्हें पाकिस्तान की आईएसआई द्वारा समय समय पर हवाला के जरिए उपलब्ध कराई गई । यही कारण है कि घाटी के लोगों ने अलगाववादियों द्वारा मृत शरीर पर की जाने वाली राजनीति को ठुकराना शुरू कर दिया है । श्रीनगर शहर के कई क्षेत्रों में लोग अब अलगाववादी नेताओं और द्वारा जारी किए गए 'हड़ताल कैलेंडर' को ठुकराकर सड़कों पर आने लगे हैं ।

अभी तक आतंकवादियों के डर के कारण लोग अभी तक अलगाववादियों के खिलाफ खुले तौर पर सामने नहीं आते थे, लेकिन आंतरिक रूप से वे हड़ताल संस्कृति से तंग आ चुके थे । अब जबकि आतंकवादियों के हमलों का भय कम होने लगा है, स्थिति स्वयमेव सामान्य होने लगी है ।

दूसरे सरकार द्वारा लिए गये मुद्रा परिवर्तन के निर्णय ने बेरोजगार नौजवानों को पत्थर फेंकने के लिए दिए जाने वाले धन पर रोक लगा दी है ! दूसरी ओर हड़ताल के कारण दैनिक मजदूर, सेल्समैन और ऑटो चालक भी बेरोजगार हो गए हैं।

स्थिति के इस तात्कालिक सुधार के बाबजूद यह भी यथार्थ है कि आज भी पाकिस्तान से वित्त पोषित अनेक संगठन घाटी में सक्रिय हैं, जैसे कि - हुर्रियत एम, हुर्रियत-जी और जेकेएलएफ आदि । इन संगठनों के कार्यकर्ता भी पूरे कश्मीर में फैले हुए हैं ।

सौजन्य: ऑर्गनाइजर

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