विश्व की सबसे प्राचीन युद्ध कला “क्लारिपायट्टू” की 74 वर्षीय भारतीय महिला योद्धा “मीनाक्षी अम्मा”

कोई आश्चर्य नही भारत की पुण्य भूमि ने लक्ष्मी बाई, झलकारी देवी, अवंतिका बाई जैसी वीरांगनाओं को जन्म दिया है। किसी के लिए भी यह उम्‍मीद करना काफी मुश्किल होगा कि 74 साल की उम्र में कोई महिला मार्शल आर्ट के अपने हुनर से विरोधियों को मिनटों में ही चित्‍त कर देती है। जी हां, यह कोई सपना बल्कि हकीकत है। यहां हम बात कर रहे हैं केरल की मीनाक्षी अम्मा की जो उम्र को मात देकर आज भी अच्छे-अच्छों को चित्‍त करने का जज्बा रखती हैं। वह 74 साल की उम्र में भी पूरी तरह से स्वस्थ हैं। इन्हें मार्शल आर्ट्स और सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग देते देखकर हर कोई दंग रह जाता है। मीनाक्षी अम्मा केरल के वताकारा कस्बे की रहने वाली एक 76 वर्षीय कलरीपायट्टू टीचर हैं।

क्या है क्लारिपायट्टू ?

क्लारिपायट्टू विश्व की सबसे पुरानी अस्तित्ववान युद्ध पद्धति है ! इसी युद्ध कला के महारथी महायोद्धा राजा बोधिधर्म ने चीन जाकर इस कला का व आयुर्वेद का प्रचार किया और फलस्वरूप शाओलिन कुंगफू और चीनी चिकित्सा पद्धति का जन्म हुआ ! इस युद्ध पद्धति में हमले, पैर से मारना, मल्लयुद्ध, पूर्व निर्धारित तरीके, हथियारों के जखीरें के साथ साथ उपचार के तरीको का विशेष महत्त्व है ! कलारी पयाट्टू शब्द, दो शब्दों की तत्पुरुष संधि है, पहला कलारी जिसका अर्थ विद्यालय या व्यायामशाला है, तथा दूसरा पयाट्टू जिसे पयाट्टूका से लिया गया है एवं जिसका अर्थ युद्ध/व्यायाम या "कड़ी मेहनत करना" है !

कलारी पयट की कई शैलियाँ हैं, जिन्हें तीन क्षेत्रीय स्वरूपों में वर्गीकृत किया जा सकता है। ये तीन मुख्य विचार शैलियाँ अपने पर हमला करने और रक्षात्मक तरीकों से पहचानी जाती हैं। इन शैलियों के बीच अंतर का परिचय जानने के लिए ळुइजेन्दिज्क की पुस्तक सर्वश्रेष्ठ है जो कलारी पयट के अभ्यास और उनके अनुप्रयोगों को दिखाने के लिए कई तस्वीरों का उपयोग करती है। उसकी पुस्तक के प्रत्येक अध्याय में तीन मुख्य परंपराओं में से प्रत्येक का प्रतिनिधित्व है।

उत्तरी कलारीपयाट्टू

उत्तरी कलारी पयट का मुख्य रूप से उत्तर मालाबार में अभ्यास किया जाता है। यह खाली हाथों की अपेक्षा हथियारों पर अधिक बल देता है। विष्णु के छठे अवतार माने जाने वाले परशुराम, को इस शैली की मौखिक व लिखित दोनों परंपराओं का संस्थापक माना जाता है। इस प्रणाली में गुरुओं को गुरुक्कल या कभी-कभी असन कहा जाता है और अक्सर सम्माननीय उपाधियाँ दी जातीं थी, विशेष रूप से पणिक्कर .

उत्तरीय शैली को इसके मेईपयाट्टू -शारीरिक प्रशिक्षण और पूरे शरीर की तेल की मालिश से पहचाना जाता है। उपचार की प्रणाली और मालिश और अभ्यास के बारे मान्यताएं, आयुर्वेद से निकट से जुड़े रहे हैं। औषधीय तेल मालिश का प्रयोजन अभ्यास करने वालों के लचीलेपन को बढाने के लिए, अभ्यास के दौरान लगी मांसपेशियों की चोटों के इलाज के लिए, या जब रोगी को हड्डी के ऊतकों से जुड़ी, मांसपेशियों से जुड़ी, या तंत्रिका तंत्र से संबंधित समस्या हो तो उसके लिए है। इस तरह की मालिश के लिए थिरुमल शब्द है और शारीरिक लचीलेपन के लिए की जाने वाली मालिश को चावुट्टी थिरुमल कहते हैं, जिसका शाब्दिक अर्थ है "मोहर मालिश" या "पैरों की मालिश". मालिश करनेवाले मालिश के लिए अपने पैर और शरीर के वजन का प्रयोग कर सकते हैं।

कई सारी प्रजातियां/शैलियां (सम्प्रदायम) हैं, जिनमे से 'थुलुनादन' सबसे अच्छा माना जाता है। प्राचीन समय में छात्र अपने दोषों (कुट्म थिरक्कल) पर काबू पाने के लिए थुलुनादु कलारी करते थे। कई विद्यालयों में इनमे से एक से अधिक परम्पराओं को सिखाया जाता है। उदाहरण के लिए कन्नूर के आसपास के कुछ परंपरागत कलारी पिल्लातान्नी , अरप्पुकई और कतादानाथ शैलियों का एक मिश्रण सिखाते हैं।

दक्षिणी कलारीपयाट्टू

दक्षिणी कलारी पयट का मुख्य रूप से नायर और नादर के द्वारा मुख्यतः पुराने त्रावणकोर में अभ्यास किया जाता था, जिसमे तमिलनाडु का वर्तमान कन्याकुमारी जिला शामिल है। खाली हाथ तकनीक पर जोर देते हुए, ये तमिल सिलाम्बम और श्रीलंका के अंगमपोर से काफी नजदीकी से जुड़ा है।

इसके संस्थापक और संरक्षक संत परसुराम की जगह ऋषि अगस्त्य माने जाते हैं। गुरुओं को असान के नाम से जाना जाता है।प्रशिक्षण के चरण इस प्रकार हैं, चुवातु (एकल रूप), जोड़ी (साथी के साथ प्रशिक्षण/मल्लयुद्ध), कुरुन्थादी (छोटी छड़ी), नेदुवादी (लंबी छड़ी), , कट्ठी (चाकू), कटारा (कटार), वलुम परिचयुम (तलवार और ढाल), चुत्तुवल (लचीली तलवार), दोहरी तलवार, कलारी कुश्ती और मर्म (दबाव बिंदु


ज़र्रिल्ली दक्षिणी कलारी पयट को वर्म अति (चोट पहुचाने का नियम),मर्म अति (महत्वपूर्ण जगहों पर चोट करना) या वर्म कलारी (कलारी की कला) कहते हैं। प्राथमिक खाली हाथ की वर्म अति तकनीकों को खाली अदिथाडा (चोट पहुचाओं/रक्षा करो) के नाम से जाना जाता है। मर्म अति विशिष्ट रूप से महत्वपूर्ण स्थानों पर इन तकनीकों के इस्तेमाल को बताता है। हथियारों में बांस का बल्लम, छोटी छडी और हिरन की दोहरी सींगें शामिल हैं।

दक्षिणी शैली में चिकित्सा उपचार को सिद्ध कहा गया है, ये पारंपरिक द्रविड़ चिकित्सा की व्यवस्था है, जो उत्तर भारतीय आयुर्वेद से भिन्न है। सिद्ध चिकित्सा प्रणाली, जो सिद्ध वैद्यम के रूप में भी जानी जाती है, अगस्त्य की देन मानी जाती है।

केंद्रीय कलारिपयाट्टू

केंद्रीय कलारी पयट, का अभ्यास मुख्यतः केरल के कोझीकोड, मलप्पुरम, पालाक्काड, त्रिश्शूर और एर्नाकुलम जिले के कुछ भागों में होता है। यह दक्षिणी और उत्तरी शैली का संगम है, जिसमे शामिल हैं, उत्तरी मेइप्पयत्तु की प्रारम्भिक कसरतें, दक्षिणी महत्त्व की खाली हाथ की चालें तथा इसकी अपनी फर्श पर की जाने वाली विशिष्ट तकनीकें जिन्हें कलम कहते हैं।

शैलियां

वदक्कन पत्तुकल में निर्दिष्ट कलारी की विभिन्न शैलियां,

करुवंचेरी कलारी, कोदुमाला कलारी, कोलास्त्री नाडू कलारी, कुरुन्गोत कलारी, मथिलुर कलारी, माय्याज्ही कलारी, मेलुर कलारी, नादापुरम कलारी, पनूर मधम कलारी, पय्यम्पल्ली कलारी, पोंनियम कलारी, पुथुस्सेरी कलारी, पुथुरम कलारी, थाचोली कलारी, थोतुवोर कलारी, तुलुनादन कलारी !

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