भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट का कारण भ्रष्टाचार – तो भ्रष्ट कौन ?

हाथी वाले भले ही चिल्लपों मचाएं, किन्तु वास्तविकता यही है कि भारत में भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा कारण भारत का संविधान ही है ! हमारी संवैधानिक व्यवस्था ने ही अव्यवहारिक प्रशासनिक व्यवस्था को जन्म दिया है, नेता शब्द जिन लोगों के कारण गाली माना जाने लगा, ऐसे धन पशु नेताओं और उन्हें चुनने की उतनी ही गंदी प्रणाली को उत्पन्न किया है ! 

अन्य प्रमुख कारण है कि स्वतंत्रता के बाद ऐसे बुर्जुआ नेतृत्व को सर पर लादे रखा गया जो अपनी कुर्सी नरकगामी होने के बाद ही छोड़ते दिखे, स्वर्गवासी तो वे होने से रहे ! सच्चे प्रजातंत्र का अर्थ है, नया खून, नया जज्बा, नई उमंग, नवीन कार्य शैली ! क्या ही अच्छा होता – अगर यह नियम बनाया जाता कि कोई भी व्यक्ति दो कार्यकाल से अधिक तक सांसद या विधायक नहीं रह सकता ! 

आज हर कोई अपने अपने ढंग से मुद्रा परिवर्तन के कदम से सैद्धांतिक सहमति जताते हुए भी क्रियान्वयन के तरीके की आलोचना करता दिखाई दे रहा है । आलोचना केवल आलोचना - समाधान हेतु कोई सुझाव नहीं । जबकि प्राथमिक आवश्यकता है समाधान की ! आराम कुर्सी पर अधलेटे बैठकर आलोचना तो कोई भी कर सकता है ।

वस्तुतः हिन्दू समाज मूलतः आध्यात्मिक और भौतिकता विरोधी हैं। इसलिए वे नैसर्गिक रूप से स्वभावतः भ्रष्ट नहीं हो सकते । यथार्थ यह भी है कि सार्वभौमिक सत्य समझकर पाश्चात्य जीवन शैली ने भी हमारी संस्कृति में घुसपैठ कर ली है । अतः भौतिकवाद की पश्चिमी अवधारणा के चलते आर्थिक विकास और पूंजीवाद के कारण जो गिरावट पश्चिम में आई, वही अब हमारे समाज में भी दिखाई देने लगी है । 

इसे और आगे बढ़ने से रोकने के लिए, हमें एक बार पुनः अपने मूल चिंतन की ओर लौटना होगा, जैसा कि चाणक्य ने अपने अर्थशास्त्र में बताया ! केवल वही तत्व चिंतन हमें दुस्वारियों से राहत दिला सकता है ! अगर पत्तियों में किसी रोग के लक्षण हैं तो भी इलाज जड़ का ही आवश्यक है । गरीबी और अमीरी के बीच की खाई जब तक कम नहीं होगी, भारत की अर्थ व्यवस्था कुलांचे नहीं भरेगी ! गरीबों में कमाई की ताकत बढे, वे भी स्वस्थ जीवन शैली से जी सकें, यही प्राथमिकता होना चाहिए ।

समय आ गया है, जब हमें स्वप्न लोक में जीना छोड़कर जाग जाना चाहिए ! भारतीय अर्थ व्यवस्था की जड़ों को खोखला करने वाला मूल कारण है - भ्रष्टाचार ! तो उसके लिए जिम्मेदार कौन ? इस प्रश्न का उत्तर खोजे बिना समस्या का समाधान संभव नहीं है ! केवल एक दूसरे को दोष देने से मसला हल नहीं होगा ।

200 साल के ब्रिटिश राज में हम भारतीय लोग भ्रष्ट नहीं थे, लेकिन आजादी के 70 वर्षों में हमने अपने आप को भ्रष्ट कर दिया है। ब्रिटिशों ने हमें केवल चाय पीने की आदत लगाई, किन्तु अब भारत का शायद ही कोई शहर हो जहाँ शराब की दूकान न मिले ! ब्रिटिश राज में क्या कभी किसी ने डिस्को क्लबों की कल्पना की थी ? किन्तु आज इंग्लैंड की तरह भारत के हर कोने में शराब और शबाब की मंडी लगती दिखाई दे जायेगी ।

अब फिर मूल विषय पर लौटते हैं और विचार करते हैं कि अगर भ्रष्टाचार मूल समस्या है तो आखिर हममें से भ्रष्ट कौन है ?

अपने अन्दर झांकिए उत्तर मिल जाएगा ! हममें से कौन भ्रष्ट नहीं है ?

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