आडवाणी जी राष्ट्रपति न बन पायें - लोबिंग शुरू !


आडवाणी जी के राष्ट्रपति बनने की चर्चा अभी शुरू भी नहीं हुई है, पर उनके खिलाफ लोबिंग पहले प्रारम्भ हो गई है ! कल दिल्ली से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र “नया इण्डिया” के रिपोर्टर डायरी कोलम में श्री विवेक सक्सेना का आलेख छपा, जिसमें आडवाणी जी से सम्बंधित दो जानकारियाँ थीं –

(1) आडवाणीजी के बेटे की पहली पत्नी ने, जिससे उनके परिवार के संबंध काफी खराब हो चुके थे, मस्जिद विध्वंस की जांच कर रहे लिब्रहन आयोग के सामने एक बयान दाखिल किया। इसमें कहा गया था कि आडवाणीजी को रथयात्रा व दूसरे कार्यक्रमों में जो चांदी के भगवानों की मूर्तियां, तलवारें आदि मिलती थी, उन्हें उनकी पत्नी (दिवंगत) कमला अपनी बहन के पास मुंबई ले गई और वहां सुनार को बेचकर उसके बदले में चादी की चम्मचें थालियां आदि खरीद ली।

(2) आडवाणीजी भी अटल बिहारी वाजपेयी और जार्ज फर्नाडीस की राह पर चल पड़े हैं। वे जिस डिमेशिया बीमारी से पीड़ित हंै उसकी उन पर जकड़ बढ़ती ही जा रही है। उनके करीबी लोगों ने हाल में जो किस्से सुनाए हैं वे वास्तव में दुखद है। सार्वजनिक तौर पर भले ही इस सत्य को छिपाया जा रहा हो पर वे कई सालों से इस रोग के दर्द को झेल रहे हैं।
यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें इंसान सब कुछ भूलने लगता है। वह अपनों को पहचान नहीं पाता है। वह तमाम मामलों में प्रतिक्रिया भी नहीं जता पाता है। यह बढ़ती उम्र के साथ होने वाली बीमारी है जो कि इंसान के मस्तिष्क को प्रभावित करती है। उनकी याददास्त खोने लगती है। वह चीजे रखकर भूल जाता है। उसे यह पता नहीं चलता कि वह खाना खा चुका है। कई मामलों में इसका रोगी आक्रामक तक हो जाता है। अमेरिका के राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन व उनकी पत्नी, दोनों ही बाद में इस रोग के शिकार हो गए थे। हमारे देश में भी ऐसे रोगियों की संख्या लाखों में है।
आडवाणीजी को भी ऐसी बीमारी के लक्षण है, इस संभावना का या इस अनुमान का आधार क्या ? दरअसल हाल ही में उनके जन्मदिन पर मुंबई व गुजरात से आए सिंधियों का एक प्रतिनिधि मंडल उनसे मिलने गया। संयोग से उनके साथ पत्रकार श्रीकांत भाटिया भी थे जो कि सिंधी समाज और आडवाणीजी दोनों से ही बहुत जुड़े हुए हैं। उनके घर पहुंचे तो उनके सैल फोन रखवा लिए गए। उन्हें बताया गया कि सुरक्षा की दृष्टि से ऐसा किया जा रहा है। उन्हें बताया गया कि अंदर फोटोग्राफर मौजूद है। वे लोग उस बैठक में पहुंचे जहां आडवाणीजी मौजूद थे। ये लोग अपने साथ मिठाई व फूल आदि लेकर गए थे। कुछ देर के इंतजार के बाद आडवाणीजी वहां आए। उन लोगों ने उन्हें जन्मदिन की बधाई दी। अभी फोटोग्राफर ने तस्वीर खींचना शुरु ही किया था कि वे चिढ़ गए। नाराज होकर कहने लगे कि इन सब लोगों को बाहर निकालो। जब देखों फोटों खींचते रहते हैं। खैर, सबको बाहर निकाल दिया गया।
ऐसा ही किस्सा कुछ साल पहले भी घटा था जब कि उन्हें कई दशकों से जानने वाले कुछ सिंधी उनकी पत्नी कमलाजी के निधन पर शोक जताने उनके घर गए थे। उन लोगों ने आडवाणीजी के सामने कमलाजी की फोटो पर फूल चढ़ाए। इसके बाद दादा ने उनसे पूछा कि आप लोग कौन है। आपका परिचय, संयोग से उनकी बेटी वहीं खड़ी थीं उसने बात को संभालते हुए कहा कि ‘दादा’ अरे यह सभी तो पुराने लोग हैं। फलां फलां है।

मजा यह कि उक्त दोनों घटनाओं के तार लेखक महोदय ने राष्ट्रपति चुनाव से जोड़े भी हैं और यह अनुमान भी मढ़ा है कि –

पिछले दिनों जब संसद न चलने पर लाल कृष्ण आडवाणी ने सदन में अपनी नाराजगी जताई और लोकसभा अध्यक्ष तक को आड़े हाथों ले लिया तो भाजपा व कांग्रेस दोनों के अंदर दबी जुबान में यह चर्चा शुरु हो गई कि अगले साल होने वाले राष्ट्रपति चुनाव को देखते हुए शायद वे अपनी पोजीशनिंग कर रहे हैं। वहीं लालकृष्ण आडवाणी को करीब से जानने वालों का मानना है कि भले ही उनकी इस प्रतिकिया को किसी भी रुप में क्यों न लिया जाए मगर उनकी यह इच्छा पूरी होने वाली नहीं है। इसकी बड़ी वजह यह है कि अपनी पार्टी के तमाम नेताओं की जानकारी रखने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें यह पद देने के मूड में शायद ही हो । 

हद है न ? एक ओर तो उनके खिलाफ माहौल पत्रकार महाशय बनाएं और राष्ट्रपति न बन पायें तो आरोप मढ दिया जाए मोदी जी के सर पर ? सच है प्रत्यक्ष राजनीति कर रहे राजनेताओं से कहीं ज्यादा घाघ राजनीतिज्ञ तो हमारे देश के पत्रकार महानुभाव होते हैं ! कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना !

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