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दान और सामाजिक व्यवस्था - पं. योगेश शर्मा



प्रायः भारतीय जन यह नहीं समझ पाते कि दान क्या होता है? और दक्षिणा क्या? 

दान:- दान करने के लिए यह देश सनातन से ही जाना जाता है। लेकिन वर्तमान में दान का महत्व और दान का वास्तविक अधिकारी कौन है ? इससे आमजन अनभिज्ञ हैं। कारण वास्तविक ज्ञान का आभाव।

दान करना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है। अपने अपने स्तर पर व्यक्ति को दान करना चाहिए, परंतु दान किसलिए किया जाता है यह जानना अत्यन्त आवश्यक है। दान सामजिक उपकार के लिए किया जाता है। प्रत्येक वर्ग के व्यक्ति को अपने अपने स्तर से सामाजिक कल्याण हेतु दान करना चाहिए।

प्रायः तथाकथित लोग स्वयं को दान का बड़ा अधिकारी समझते हैं, परंतु उनको इतनी भी समझ नहीं की जो दान आपने माँगा अथवा आपको जो दान हेतु राशि आदि दी गयी उसका उपयोग कहाँ करना है। सत्य कहु तो जो राशि यज्ञशाला में घृत के निमित्त आयी थी वह श्रीमानों के रसोई घर मे पहुँच जाती है। कारण यह के दान लेने वाले और देने वाले दोनों की पता नहीं की दान का करना क्या होता है।

पूर्व मे हम लिख आये हैं कि " सामजिक उपकार हेतु दान लिया और दिया जाता है" । अब जो रसोई घर मे दान पहुँच गया तो बताइए अब कौनसा सामाजिक कल्याण का कार्य हुआ? यह तो समाज की दुर्दशा का एक विकराल कारण है, वस्तुतः नास्तिकता भी इन्ही छोटी छोटी सामाजिक अव्यवस्था का परिणाम है जो क़ि हिन्दू समाज में अपना स्थान व्यापक रूप से गृहण करती जा रही है।

दान के लिए मै प्रायः कहता हूँ।

खाया पीया अंग लगेगा
रखे हुए को जंग लगेगा
दान किया तो संग चलेगा।।

धन की तीन गतियां हमारे मनीषियों ने कही दान-भोग-नाश ! अभी जो भारत में नोट बंदी हुयी उससे सबसे अधिक प्रभावित बही लोग हुए जिन्होने या तो धन का भोग न किया था संभाल के रखे थे अपनी सातवी पीढ़ी के लिए। और दूसरे बो जिन्होंने अपने धन का उपयोग सामाजिक कल्याण के लिए नहीं किया था। तो इससे ही आप अनुमान लगा लीजिये कि हमारे शास्त्रकारों ने मिथ्या लेख नहीं लिखे थे धन के सम्बन्ध में।

दान करने का ही परिणाम है कि आज हमें गौ शालाऐ, यज्ञ शालाऐ, अनाथालय, औषधालय, प्याऊ, सड़क, भवन, विद्यालय आदि अपने पूर्वजों के धन के सही उपयोग अर्थात दान के माध्यम से मिले। परन्तु हम अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए क्या दान का यह आदर्श रख पाएंगे ?

वेद कहता है " मा गृध्: कस्य स्विद्धनम" लोभ मत करो यह धन तो परमात्मा का है। और क्या कहा "त्यक्तेन भुंजीथा" जो धन ऐश्वर्य आपको प्राप्त हुआ अथवा अपने पुरुषार्थ से अर्जित किया है उसको त्याग पूर्वके उपयोग करो। लोभ मत करो। और आप देखिये आज समाज में जी अव्यवस्था है वह दान न करने की भावना का दुष्परिणाम है। भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा पर है। अधिकतर व्यक्ति अपने कर्तव्य को उचित डंग से न निर्वाह करते हुए दूसरे के धन पर अपना अधिकार समझ कर कार्य कर रहा है।

अतः विश्व गुरु बनाने की एक छोटी सी पहल हम सभी को करनी होगी वह यह की हम । आसक्ति रहित होकर समाज कल्याण के लिए धन का सदुपयोग अर्थात दान करैं। आप स्वयं सुखी रहेंगे, समाज सुखी रहेगा। आने वाली पीढ़ी सम्मान करेगी।

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