वधाई आसाम सरकार, जनसंख्या नियंत्रण को लेकर कोई पहल तो की !



वर्ष 2005-06 में जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, उन्होंने स्थानीय निकाय चुनाव क़ानून में संसोधन कर पंचायतों, नगर पालिकाओं और नगर निगमों के चुनावों में दो से अधिक बच्चों के माता पिता को चुनाव लड़ने से अयोग्य कर दिया था ।

बढ़ती हुई जनसंख्या आज देश की सबसे जटिल समस्या बन चुकी है । आज जबकि देश में सीमित संसाधन हैं, जनसंख्या के विस्फोट को रोका जाना आवश्यक है, अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब भुखमरी से त्रस्त भारत में जिसकी लाठी उसकी भेंस जैसी अराजक स्थिति पैदा हो जायेगी !

यह संतोष की बात है कि कमसेकम एक राज्य ने तो इस दिशा में कोई कार्यवाही करने का मन बनाया है, और वह राज्य है असम ! राज्य सरकार ने यह अनुभव करते हुए कि असम में वर्तमान राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 से प्रथक अपनी स्वतंत्र नीति की आवश्यकता है, एक जनसंख्या नियंत्रण समिति का गठन किया ! स्थानीय मीडिया में प्रकाशित समाचारों के अनुसार समिति के एक सदस्य इलियास अली ने कहा कि अगर राज्य की अर्थ व्यवस्था को सुचारू रखना है तो जनसंख्या विस्फोट को रोकने के लिए राज्य के लिए एक स्वतंत्र नीति जरूरी है !

दो से अधिक बच्चे होने पर व्यक्ति को सरकारी नौकरियों के अपात्र घोषित कर कर्मचारियों को दो से कम बच्चों के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। तीसरे बच्चे के समय महिला कर्मचारियों को मातृत्व अवकाश देने से इनकार किया जाएगा, उन्हें लीव विदआउट पे रहना होगा ।

समिति के सदस्यों के अनुसार इस नीति में जहाँ एक ओर महिला शिक्षा पर जोर दिया जाएगा, बहीं दूसरी ओर गरीब महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने के लिए स्वयं सहायता समूहों के गठन द्वारा रोजगार के अवसर भी बढाए जायेंगे । राज्य के सभी 34 जिलों में विशेष रूप से महिलाओं के लिए कॉलेजों और अन्य शिक्षा संस्थानों की योजना बनाई गई है। स्मरणीय है कि आसाम के अनेक मुस्लिम परिवार मुस्लिम वालिकाओं को केवल इसलिए स्कूल और कॉलेजों में नहीं भेजते क्योंकि वहां लड़कियों के साथ लडके भी अध्ययन करते हैं, परिणाम स्वरुप मुस्लिम महिलाओं में साक्षरता भी अन्य समाजों से कम है ।

अली ने कहा कि "एक बार जब अधिकाँश महिलायें शिक्षित और आर्थिक रूप से स्वावलंबी हो जायेंगी, तो वह चिंतन धारा भी परिवर्तित होगी, जो स्त्री को केवल बच्चा पैदा करने की मशीन मानती है" ।

उन्होंने कहा कि असम में बत्तीस प्रतिशत पुरुष और 23% महिलाओं के विवाह, वैधानिक विवाह की आयु तक पहुँचने के पूर्व हो जाते हैं, यह भी राज्य में जनसंख्या विस्फोट के पीछे के मुख्य कारणों में से एक है । प्रस्तावित नीति के तहत बाल विवाह अधिनियम, 2006 को कडाई से लागू करने का भी उल्लेख है, जिसके अंतर्गत विवाह के समय लड़के की आयु कमसेकम 21 वर्ष तथा लड़कियों की उम्र 18 वर्ष होना चाहिए ।

कुछ बातें जो कही तो नहीं गईं किन्तु छनछन कर बाहर आई हैं, उनके अनुसार समिति ने दो से अधिक संतान वालों के पंचायत व नगरीय चुनाव में प्रत्यासी बनने पर रोक लगाने की भी अनुशंसा की है ! 

बहीं दूसरी ओर, इस विषय को साम्प्रदायिक नजरिये से देखने वालों की भी कमी नहीं है ! ऐसे लोगों का मानना है कि भाजपा नीत राज्य सरकार, मुस्लिम जनसंख्या की वृद्धि रोकने की खातिर ही यह कवायद कर रही है ! शायद इसीलिए सरकार भी इस संवेदनशील मामले में फूंक फूंक कर कदम रख रही है ! असम के वित्त मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने मीडिया को बताया कि राज्य सरकार का इरादा किसी को मजबूर करने का नहीं है, किन्तु इस नीति की अच्छाइयां बताकर हर जागरूक नागरिक से दो बच्चों की आदर्श स्थिति के लिए आग्रह अवश्य किया जाएगा । 

जो भी हो कमसेकम आसाम सरकार ने इस गंभीर विषय पर विचार तो किया ! आशा की जानी चाहिए कि अन्य राज्य सरकारें तथा केंद्र सरकार भी इससे कुछ तो प्रेरणा लेगी ! अगर हमारा चिर प्रतिद्वंदी चीन अपनी आवादी की वृद्धि को थाम सकता है, तो हम क्यों नहीं ? केन्द्र सरकार को भारत में समान नागरिक संहिता के साथ जनसंख्या नियंत्रण पर भी ठोस कार्यवाही करने पर विचार करना चाहिए ! 

आधार - https://hinduexistence.org/2017/01/25/assam-is-planning-a-population-policy-to-curb-the-unabated-muslim-growth-in-the-state/


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