कुछ करुणा-कुछ जीवट-यही है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

तीन अनूठे प्रसंग -

नागालेंड के मगुलोंग गाँव में एक बैठक संपन्न होने के बाद कुछ संघ स्वयंसेवक गाँव के लोगों से मिलने निकले ! ऐसे पहाडी प्रवासों में कार्यकर्ता कुछ प्राथमिक दवाईयां भी साथ रखते थे, जो गाँव के बीमार लोगों के उपचार में काम आती थीं ! ऐसे में उन लोगों को एक बुखार ग्रस्त वृद्ध माँ मिलीं ! साथ के नागा कार्यकर्ता ने पूछताछ कर बुखार उतारने वाली दस गोलियों की एक पत्ती उन्हें दी ! वृद्धा बोलीं, मुझे इतनी गोलियां नहीं चाहिए, पांच गोलियां पर्याप्त होंगी !

जबाब में कार्यकर्ता ने कहा, रख लो माताजी, भविष्य में कभी काम आयेंगी और बैसे भी आपको इनकी कोई कीमत नहीं देनी हैं !

वृद्धा ने कहा कि यह सही है कि मैं गरीब हूँ और मेरे पास दवा के लिए पैसा भी नहीं है, किन्तु मैं कोई चीज मुफ्त नहीं लेती !

इतना कहकर उन्होंने हंसते हुए अपने थैले में से तीन मुर्गी के अंडे निकालकर कार्यकर्ता ने हाथ में रख दिए और कहा लूंगी पांच ही गोली, बाक़ी गोलियां किसी और जरूरतमंद के काम आयेंगी ! 

कार्यकर्ता ने बहुत कहा कि मांजी अंडे वापस ले लो, हमें तो केवल आपका आशीर्वाद ही चाहिए, किन्तु वृद्धा मां नहीं मानी तो नहीं मानी ! 

इस घटना से कई बिंदु हमारे सामने आते हैं ! वनवासी महिला गरीब है, किन्तु लोभी नहीं ! अशिक्षित है, किन्तु अज्ञानी नहीं ! स्वाभिमान है और लाचारी तो कतई नहीं !

प्रश्न उठता है कि कौन ज्ञानी, कौन सुसंस्कृत ?

शहरी पढ़े लिखे या निरक्षर वनवासी ?

हम उन्हें सिखायेंगे या उनसे सीखेंगे ?

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तेलंगाना का एक छोटा सा गाँव है तिम्ममपेट ! माणिक्यम उस गाँव के मंदिर के पुजारी थे, साथ ही संघ के स्वयंसेवक भी ! साठ के दशक में इलाके में नक्सलियों की धमाचौकड़ी शुरू हुई ! तिम्ममपेट में भी उनकी आवाजाही शुरू हुई ! 

दिनांक 20 अप्रैल 1965 की रात नक्सलियों ने गाँव में आकर माणिक्यम के मामा नारायण से एक बड़ी धनराशि की मांग की ! नारायण वारंगल जिला परिषद् के अध्यक्ष रह चुके थे ! 

जब नारायण ने नक्सलियों की बात मानने से इनकार कर दिया तो उन्होंने नारायण को बेदर्दी से पीटना शुरू कर दिया ! 

पास ही खड़े माणिक्यम ने आब देखा ना ताब और पास ही खड़े एक नक्सली के हाथ से कुल्हाड़ी छीनकर आक्रमणकारियों के नेता का सिर काट दिया ! नक्सली भी मिलकर माणिक्यम पर टूट पड़े ! किन्तु उनकी संख्या से बेपरवाह माणिक्यम लगातार तब तक कुल्हाड़ी चलाता रहा, जब तक कि थककर चूर नहीं हो गया ! अंततः रक्त से लथपथ होकर माणिक्यम भी भूमि पर गिर गया और वीरगति को प्राप्त हुआ ! लेकिन इस दौरान एक और नक्सली को भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ा !

माणिक्यम की वीरता को पुरष्कृत करने के लिए राष्ट्रपति द्वारा उसे मरणोपरांत कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया ! राष्ट्रपति की ओर से यह पुरष्कार हैदरावाद में उसकी विधवा पत्नी को आंध्र के पुख्यमंत्री द्वारा प्रदान किया गया ! सामान्यतः कीर्ति चक्र सैन्यकर्मियों को ही दिया जाता है, किसी नागरिक को यह सम्मान मिलना अपने आप में बड़ी बात थी !

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बात 1975 के आपातकाल की है ! कर्नाटक में संघ के तुंकूर जिला प्रचारक भूमिगत थे ! तभी उन्हें जानकारी मिली कि एक स्थान के नगर कार्यवाह जी की पत्नी प्रसव के बाद गंभीर रूप से रुग्ण हो गई हैं ! संघ की पूंजी ही है परिवार भाव ! जिला प्रचारक जी उनका हालचाल जानने घर जा पहुंचे !

महिला की हालत बेहद गंभीर थी, किन्तु उसके बाद भी उन्होंने प्रचारक जी को पहचान लिया ! वे अपनी रुग्णावस्था को भूलकर जल्दी जल्दी कुछ बोलने का प्रयत्न करने लगीं, किन्तु उनके शब्द गले में अटक रहे थे ! जब किसी की समझ में कुछ नहीं आया, तो उन्होंने अपना हाथ दरवाजे की तरफ हिलाया और उसे बंद करने का इशारा किया ! 

प्रचारक जी की समझ में तो कुछ नहीं आया, किन्तु महिला के पति आंसू भरी आँखों से किबाड़ बंद करने को गए ! प्रचारक जी के पूछने पर उन्होंने बताया कि दो दिन पूर्व ही पुलिस आपको ढूँढते हुए यहाँ आई थी ! इस छोटे से एक कमरे के मकान में कोई आपको बाहर से देख न ले, इसकी चिंता मेरी पत्नी कर रही हैं और इसलिए द्वार बंद करने का इशारा कर रही हैं !

यह है संघ और उसका परिवार भाव ! मृत्यु शैया पर पड़ी मां बहिन भी अपने स्वास्थ्य को भूलकर एक भूमिगत कार्यकर्ता की चिंता पहले कर रही थीं ! यही है संघ की वास्तविक शक्ति ! इसे कौन क्षीण कर सकता है ?

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