शिव के श्रम स्वेद से निकली नर्मदा को बचाने अब शिव बहायेंगे स्वेद – महेश श्रीवास्तव


पुराणों के अनुसार नर्मदा की उत्पत्ति शिव के स्वेद से हुई ! वायु पुराण के अनुसार तांडव नृत्य के मध्य बहे शिव के श्रम स्वेद से तो स्कन्द पुराण के अनुसार शिव पार्वती की तपस्या के ताप से उत्पन्न स्वेद से नर्मदा का आविर्भाव हुआ ! इसीलिए इसे “रुद्रदेह समुद्भूता” कहा गया है ! महर्षि मार्कंडेय ने इसे “कल्पांत स्थापनी” अर्थात सात कल्पों तक यथावत रहने वाली बताया और इसीलिए इसे अमर अर्थात “न मृता तेन नर्मदा” कहा गया ! 

यह सत्य भी है, क्योंकि यह विन्ध्याचल एवं सतपुड़ा की संधि मेखला मेकल पर्वत श्रेणी से निकलकर पश्चिमोदधि में समाहित होने और निरंतर प्रवाहित होने वाली नदी है ! बर्फ से न निकलकर भी इसके “सदानीरा रहने का रहस्य, पर्वतों पर छाई सघन वनों की चादर के वे वृक्ष हैं, जो वर्षा में पानी सोखकर वर्षभर नर्मदा में छोड़कर इसके लिए कल्पवृक्ष की भूमिका निबाहते हैं ! 

किन्तु आज नर्मदा के अमरत्व की पौराणिक वाणी, विघटित होने के कगार पर है ! कल्पवृक्षों पर सबल लोगों की अनंत कुल्हाड़ियाँ निरंतर निर्ममता से चलीं और उत्खनन ने नर्मदा के वक्ष को छलनी कर दिया ! ग्रीष्मकाल में नर्मदा का प्रवाह दो प्रतिशत से भी कम रह जाना, इसके अंत का “काल पत्र” ही है ! 

यह शुभ है कि सत्ता के शीर्ष ने नर्मदा के शुष्क चरणों को पखारने की प्रक्रिया प्रारम्भ की है अन्यथा तो सत्ता एवं उसके सम्बन्धियों ने तो नर्मदा के साथ नृशंसता करने में कभी कोई कमी नहीं की ! प्राणदाता वृक्षों का प्राण हरण किया, खनिज के लिए मस्तक को खोद डाला, किसी कागज कारखाने को लाभ पहुंचाने के लिए अमरकंटक की दलदल मिटाने के नाम पर यूकेलिप्टस के पेड़ बोकर, अमृत कुंड को सोख लिया गया !

पहली बार किसी मुख्यमंत्री ने नर्मदा को शुद्ध एवं सदानीरा बनाए रखने के लिए पाँव पाँव चलने, स्वेद बहाने, जन को जागृत कर नर्मदा को अमर्त्य बनाने का बीड़ा उठाया है ! बैसे कहा यह जाता है कि नाम में क्या रखा है, किन्तु संयोग यह है कि भगवान् शिव के स्वेद से निसृत नर्मदा के प्रवाह को निरंतर बनाए रखने के लिए, शिव नामक मानव आज अपना स्वेद बहा रहा है ! जब सत्ता पुरुष मंगल के लिए जन के जल में प्रवेश करता है, तो जन समूह कलकल करता हुआ उसके साथ बहने लगता है ! धार्मिक पवित्रता के प्रवाह को भौतिक पवित्रता प्रदान करने का ऐसा अभियान दुनेया में अपनी अनूठी पहचान बनाता है !

हमने नर्मदा को देवी कहा, सम्पूर्ण नर्मदा को शिव का दिव्यासन माकर, इसके हर कंकर को शंकर माना, मैया माना, किन्तु यह सब शब्दों तक सीमित रहा अथवा बाह्य धार्मिक कर्मकांड तक ! यदि यह भक्ति भाव में उतरती और व्यवहार में दिखती तो शायद मैया वृद्धाश्रम में नहीं पहुँचती ! इधर पूजा की और उधर गंदगी बहाई ! जिसके दर्शन मात्र से मोक्ष की बात कही, उसी में मृत देह बहाई ! सौभाग्य है कि आज भी नर्मदा उतनी प्रदूषित नहीं दिखती, जितनी देश की अन्य नदियाँ ! किन्तु नर्मदा के सामने केवल प्रदूषण का नहीं, जीवन का संकट है ! यह हिमनद निसृत नहीं, भूमि से प्रगट भूमिजा है ! इसीलिए तटवर्ती एक किलोमीटर क्षेत्र में वृक्षारोपण, गंदाजल शुद्ध करने केलिए संयंत्रों की स्थापना, पूजा सामग्री के विसर्जन के लिए कुंडों का निर्माण, एक दूरदर्शी पहल है ! इससे नर्मदा सबल भी होगी और पवित्र भी रहेगी !

किन्तु यह तभी संभव है जब प्रदेश के हर व्यक्ति के मन में नर्मदा को बचाने और पवित्र रखने का संकल्प स्थायी हो जाए ! नर्मदा का उचित दोहन तो हो किन्तु शोषण नहीं ! सत्ता के संपेरों का लालच पहाड़, जंगल और नदी में नग्न नागिन नृत्य करता है ! शिव ने अपने गणों को नियंत्रित करने का वचन दिया है, यह उचित है, किन्तु गणतंत्र में गण और भी होते हैं, जिन्हें समाज की संगठित शक्ति से ही नियंत्रित किया जा सकता है ! ऐसा होगा तभी आदि शंकराचार्य की प्रार्थना की यह पंक्ति सिद्ध होती रहेगी –
ततस्तु जीव-जंतु-भुक्ति-मुक्ति दायकम !

नर्मदा भुक्ति और मुक्ति दाता है ! भुक्ति तो अज्ञानी को भी प्राप्त हो सकती है, किन्तु मुक्ति नर्मदा की पीड़ा के अनुभव और उसके निवारण के सतत उपायों से ही संभव है ! नर्मदा के हर कंकर को तो हम शंकर मानते ही हैं, नर्मदा क्षेत्र का हर नारी नर शंकर बन जाए और नर्मदा को सबल एवं शुद्ध बनाए रखने के लिए तप करे और अपने स्वेद को नर्मदा के प्रवाह में मिलाये !

साभार सुबह सवेरे दिनांक 16 जनवरी 2017

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