देश के पांच राज्यो में हो रहे विधानसभा चुनावो के बहाने कई नए और चौकाने वाले तथ्य भी राजनीतिक रूप से उभर कर सामने आने लगे हैं। हालांकि चु...

देश के पांच राज्यो में हो रहे विधानसभा चुनावो के बहाने कई नए और चौकाने वाले तथ्य भी राजनीतिक रूप से उभर कर सामने आने लगे हैं। हालांकि चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट ने कड़ाई से कहा है कि किसी भी दशा में जाति और सम्प्रदाय या धर्म का इस्तेमाल चुनाव में नहीं किया जाना चाहिए लेकिन ये राजनीतिक पार्टियां बावज़ूद इसके , अपनी जीत हार के सारे समीकरण जाति और सम्प्रदाय के आधार पर ही तय कर रही हैं। इतना ही नहीं , ख़ास तौर पर उत्तर प्रदेश में तो इस आदेश का कोई असर ही नहीं दिख रहा। मंचो से खुलेआम दलित मुस्लिम गठजोड़ की वकालत की जा रही है। मुस्लिम समुदाय को हर भाषण में इस बात से डराया जा रहा है कि यदि आप ने फला के साथ मिल कर वोट नहीं दिया तो फला जीत जाएगा और फिर आप संकट में आ जाओगे। कोई कहता है कि हमने 104 मुसलमान प्रत्याशी उतारे हैं इसलिए आप हमारे साथ आइये। कोई कहता है हमने 70 टिकट दिया है , मुसलमान हमारे साथ होने चाहिए। इस वोट बैंक पर कब्जे के चक्कर में सभी यह भूल गए हैं कि यहाँ और भी समुदाय हैं जो अल्पसंख्यक श्रेणी में आते हैं , लेकिन उनको कोई पूछने वाला नहीं है। यहाँ यह विंदु उल्लेख करना भी जरूरी है कि उत्तर प्रदेश की जंग में एक तरफ भाजपा के चेहरे के रूप में नरेंद्र मोदी स्वयं हैं और दूसरी तरफ सारे दल मोदी का ही भय दिखा कर मुस्लिम वोट बटोरने की जुगत में हैं। यहाँ सपा कांग्रेस गठबंधन ,मायावती की बसपा और भाजपा का त्रिकोणीय संघर्ष है लेकिन केंद्र में मुसलमान और उन्ही से जुडी राजनीति चर्चा में है। रोचक पहलू तो यह है कि इसी युद्ध के दरमियान मुस्लिम महिलाओ के तीन तलाक का मुद्दा भी आ गया है। भारत भीतर के राज्यो में हो रहे चुनाव के दौर में ही इस्लाम को लेकर एक व्यापक अध्ययन और दो पुस्तको की चर्चा आजकल दुनिया में छायी हुई है। इन पुस्तको के आधार पर हकीकत और फ़साना समझ लेना भी जरुरी है क्योकि यहाँ तो सवाल भारत , भारतीयता और वोटबैंक का है।
धर्मांधता किसी की भी हो, हिंदू, सिक्ख, मुसलमान या ईसाई, मानवता के लिए खतरा होती है। गत 2-3 दशकों से इस्लाम धर्म के मानने वालों की हिंसक गतिविधियां पूरी दुनिया के लिए सिरदर्द बनी हुई हैं। 2005 में समाजशास्त्री डा.पीटर हैमण्ड ने गहरे शोध के बाद इस्लाम धर्म के मानने वालों की दुनियाभर में प्रवृत्ति पर एक पुस्तक लिखी, जिसका शीर्षक है ‘स्लेवरी, टेररिज्म एण्ड इस्लाम – द हिस्टोरिकल रूट्स एण्ड कण्टेम्पररी थ्रेट’। इसके साथ ही “द हज” के लेखक लियोन यूरिस ने भी इस विषय पर अपनी पुस्तक में विस्तार से प्रकाश डाला है। जो तथ्य निकलकर आए हैं, वह न सिर्फ चैंकाने वाले हैं, बल्कि चिंताजनक हैं। ये ऐसे तथ्य हैं, जिन्हें बिना धर्मांधता के चश्मे के हर किसी को देखना और समझना चाहिए ! चाहे वो मुसलमान ही क्यों न हों। अब फर्ज उन मुसलमानों का बनता है, जो खुद को धर्मनिरपेक्ष बताते हैं, वे संगठित होकर आगे आएं और इस्लाम धर्म के साथ जुड़ने वाले इस विश्लेषणों से पैगंबर के मानने वालों को मुक्त कराएं, अन्यथा न तो इस्लाम के मानने वालों का भला होगा और न ही बाकी दुनिया का। जहा तक भारत का सवाल है , तो यह सोचने और विचार करने का सटीक समय है कि उनके लिए भारतीयता कितनी अहमियत रखती है। वे वास्तव में भारतीय रहना चाहते हैं या केवल कुछ राजनीतिक पार्टियों के लिए वोटबैंक बनकर।
भारत के खिलाफ साजिश और विध्वंस में लगे मोस्टवांटेड आतंकवादी
1) हाफिज मोहम्मद सईद.
2) साजिद माजिद.
3) सैयद हाशिम अब्दुर्रहमान पाशा.
4) मेजर इकबाल.
5) इलियास कश्मीरी.
6) राशिद अब्दुल्लाह.
7) मेजर समीर अली.
8) दाऊद इब्राहिम.
9) मेमन इब्राहिम.
10) छोटा शकील.
11) मेमन अब्दुल रज्जाक.
12) अनीस इब्राहिम.
13) अनवर अहमद हाजी जमाल.
14) मोहम्मद दोसा.
15) जावेद चिकना.
16) सलीम अब्दुल गाजा.
17) रियाज खत्री.
18) मुनाफा हलरी.
19) मोहम्मद सलीम मुजाहिद.
20) खान बशीर अहमद.
21) याकूब येदा खान.
22) मोहम्मद मेमन.
23) इरफान चौगले.
24) फिरोज राशिद खान.
25) अली मूसा.
26) सगीर अली शेख.
27) आफताब बटकी.
28) मौलाना मोहम्मद मसूद अजहर.
29) सलाउद्दीन.
30) आजम चीमा.
31) सैयद जबीउद्दीन जबी.
32) इब्राहिम अतहर.
33) अजहर युसुफ.
34) जहूर इब्राहिम मिस्त्री.
35) अख्तर सईद.
36) मोहम्मद शकीर.
37) रऊफ अब्दुल.
38) अमानुल्ला खान.
39) सूफियान मुफ्ती.
40) नाछन अकमल.
41) पठान याकूब खान.
42) कैम बशीर.
43) आयेश अहमद.
44) अल खालिद हुसैन.
45) इमरान तौकीब रजा.
46) शब्बीर तारिक हुसैन.
47) अबू हमजा.
48) जकी उर रहमान लखवी.
49) अमीर रजा खान.
50) मोहम्मद मोहसिन.
यहाँ यह उल्लेख करना भी आवश्यक है कि अज़मल कसाब और अफ़ज़ल गुरु को फांसी दी जा चुकी है।
जमात-ए-इस्लामी के संस्थापक मौलाना मौदूदी कहते हैं कि कुरान के अनुसार विश्व दो भागों में बँटा हुआ है, एक वह जो अल्लाह की तरफ़ हैं और दूसरा वे जो शैतान की तरफ़ हैं। देशो की सीमाओं को देखने का इस्लामिक नज़रिया कहता है कि विश्व में कुल मिलाकर सिर्फ़ दो खेमे हैं, पहला दार-उल-इस्लाम (यानी मुस्लिमों द्वारा शासित) और दार-उल-हर्ब (यानी “नास्तिकों” द्वारा शासित)। उनकी निगाह में नास्तिक का अर्थ है जो अल्लाह को नहीं मानता, क्योंकि विश्व के किसी भी धर्म के भगवानों को वे मान्यता ही नहीं देते हैं।

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