कितना विश्वसनीय और प्रामाणिक है हमारा न्यायतंत्र ?


हममें से कुछ लोगों को अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. कलिखो पुल का नाम याद होगा, कुछ भूल चुके होंगे ! खैर, हम याद करा देते हैं - अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कालिखो पुल ने पिछले 9 अगस्त को ईटानगर के अपने सरकारी निवास में आत्महत्या कर ली ! है न हैरत की बात, क्योंकि कालीखो पुल का अर्थ होता है – “बेहतर कल”? जिस व्यक्ति का नाम ही इतना आशाजनक हो, वह इतने अवसाद में डूब जाए, सहज विश्वास नहीं होता ! 

आजकल एक बार फिर उनका नाम सुर्ख़ियों में है ! उनका 7 अगस्त 2016 को लिखा गया 60 पेज का सुसाईड नोट इन दिनों सुर्ख़ियों में है ! आत्महत्या के पूर्व लिखे गए इस पत्र में पुल ने केंद्रीय जांच एजेंसियों के चार उच्च पदस्थ सदस्यों पर कथित तौर पर रिश्वत माँगने का आरोप लगाया है ! 

आज the quint में प्रकाशित चन्दन नंदी की रिपोर्ट के अनुसार इन चार अधिकारियों में से दो तो सेवा निवृत्त हो चुके हैं, जबकि दो अभी भी कार्यरत हैं ! यह सुसाईड नोट हिन्दी में लिखा गया है तथा उसके हर पेज पर कलिखो पुल के हस्ताक्षर हैं ! यह पत्र देश के सर्वोच्च कानूनी हलकों तथा कांग्रेस के आतंरिक भ्रष्टाचार को उजागर करता है ।

स्मरणीय है कि 20 फरवरी 2016 को कांग्रेस के कुछ विद्रोही विधायकों और भाजपा की मदद से स्व. पुल अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। बाद उनकी सरकार की कानूनी वैधता पर सवाल उठाया गया, तथा सर्वोच्च न्यायालय ने 13 जुलाई 2016 को पुल के खिलाफ फैसला सुनाया और उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया। अपने सुसाइड नोट में पुल आरोप लगाया कि इस निर्णय के पूर्व उनके पक्ष में निर्णय देने के लिए रिश्वत की मांग की गई थी ।

आईये इस घटना चक्र की पृष्ठभूमि की याद एक बार फिर ताजा करते हैं ! कालिखो पुल ने नबाम तुकी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार गिरा दी थी और अपने समर्थक कांग्रेसी विधायकों के साथ पार्टी से अलग हो गए थे। उनका आरोप था कि नबाम तुकी सरकार ने 6924 करोड़ रुपए का घोटाला किया है, पर कांग्रेस नेतृत्व ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया। सही भी है, जो घोटाले के खुद आरोपी रहे हों, कैसे इस बात को गंभीरता से लेते ! इसके बाद राज्यपाल ज्योति प्रसाद राजखोवा ने उनके नेतृत्व में सरकार का गठन करवा दिया था ! किन्तु सुप्रीम कोर्ट ने अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल के इस फैसले को दरकिनार करते हुए उनकी सरकार को अवैध ठहराया तो वे पुनः कांग्रेस में बागी विधायकों के साथ वापस चले गए। उन्होंने इसके बाद भी पार्टी पर अपना दबाव बनाए रखा और अंततः नबाम तुकी को मुख्यमंत्री बनने से रोक ही दिया। पार्टी हाईकमान को अंततः पेमा खांडू को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा। जब पेमा खांडे को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवाई जा रही थी तो वे उस समारोह में मौजूद रहे।

इस घटनाक्रम के कुछ हफ्ते बाद अपने राजनीतिक नुकसान और उससे भी अधिक से रिश्वत की मांग के दबाव से उदास, निराश पुल ने 8 अगस्त 2016 को अपने ईटानगर स्थित घर में खुद को फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।

पुल के सुसाइड नोट के आधार पर प्रवर्तन निदेशालय द्वारा इन दिनों नई दिल्ली स्थित एक वकील और एक शीर्ष कानून अधिकारी के वकील बेटे के बीच संबंधों के बारे में जानकारी एकत्रितकी जा रही है। यह वे ही वकील महानुभाव हैं, जो पिछले पिछले दिनों 125 करोड़ रुपये का आयकर रिटर्न दाखिल कर चर्चा में आये थे तथा उसके बाद उन्हें कथित तौर पर नोटबंदी के दौरान 70 करोड़ रुपये की हेराफेरी के आरोप में दिसंबर 2016 में गिरफ्तार किया गया था। 

उसके बाद 10 दिसंबर 2016 को प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों ने अधिवक्ता के ग्रेटर कैलाश निवास से पांच सूटकेस और चार स्टील ट्रंक में रखे हुए लगभग 14 करोड़ रुपये नगद बरामद किये थे, जिनमें 2 करोड़ रुपये मूल्य के 2,000 रुपये के नए नोट भी शामिल थे । 

दिल्ली का यह वकील मूलतः चंडीगढ़ का निवासी है, जहाँ उसके पिता पूर्व में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश रह चुके थे । यद्यपि अधिवक्ता ने दावा किया कि जब्त पैसा उसके ग्राहकों का था । लेकिन बाद में प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारी उस समय दंग रह गए जब उनकी पूछताछ में इस प्रकरण में एक बड़े नामचीन वकील के बेटे का नाम शामिल होने की जानकारी सामने आई ।

quint के अनुसार सरकारी सूत्रों का कथन है कि यह सारा मामला हाई प्रोफाईल कानूनविद् के बेटे से सम्बंधित होने के कारण टॉप सीक्रेट रखा गया है और इसे केवल उच्चतम स्तर पर साझा किया गया है ।

सुसाइड नोट का महत्व -

पुल से रिश्वत की मांग में वकील के बेटे की कथित भूमिका, जिसे सीबीआई भी "अनौपचारिक" रूप से स्वीकार रही है ।

इस मुख्य आरोपी तथा चार वरिष्ठ अधिकारियों का नाम कानूनी कारणों से अभी प्रकट नहीं किये जा रहे ।

सुसाइड नोट इसलिए भी काफी अहमियत रखता है क्योंकि कानूनी तौर पर इसे डाईंग डिक्लेरेशन माना जाता है तथा महत्वपूर्ण साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य है।

लेकिन एक जुझारू राजनेता के दुखद अंत से यह प्रश्न तो उठता ही है कि हमारा न्यायतंत्र भी कितना विश्वसनीय और प्रामाणिक है ? 

कलिखो पुल के जीवन वृत्त पर नजर डालने से समझ में आता है कि देश ने कितना होनहार राजनेता खोया है –

अरुणांचल के पूर्व मुख्य मंत्री कालीखो पुल


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