भारत में जिस तरह से दिनों दिन कट्टरपंथ बढ़ता जा रहा है, और जिस कट्टरपंथ की आंधी के कारण कभी देश का विभाजन हुआ था, उससे सबक न लेते हुए जि...
वस्तुत: जिन प्रमुख मुद्दों पर देशव्यापी वातावरण बनाने का कार्य भाजपा पिछले कई सालों से कर रही है, समान नागरिक संहिता उन्हीं मुद्दों में से ही तो एक है । आज देश की अधिकांश जनता यही चाहती है कि जब भारत में कानून सभी के लिए समान हैं, जब भारतीय संविधान इस बात की इजाजत किसी को नहीं देता कि राज्य अपने नागरिकों से किसी भी स्तर पर भेद रखे। सभी को समान नजर से देखने का निर्देश जब हमारा संविधान देता हो, वहां धर्म निरपेक्ष होने के बाद भी धर्म के आधार पर ही बंटवारा किया जाए, उसे आखिर कहा तक उचित माना जा सकता है ? सभी धर्मों की संस्कृति, परम्पराएं अलग हो सकती हैं लेकिन सभी का देश तो एक ही भारतवर्ष है । विविध पंथ मत दर्शन अपने भेद नहीं वैशिष्ठ्य हमारा, यही तो भारत की मूल पहचान है । फिर क्यों नहीं समान नागरिक संहिता भारत में लागू होने से इसे रोका जाना चाहिए । किंतु उसी समान नागरिक संहिता की जब लेखिका तस्लीमा बात करती हैं तो वे इस्लामिक कट्टरपंथ के निशाने पर आ जाती हैं।

मध्यप्रदेश समाचार
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