“समानो मन्त्र: समिति समानी”, सम्मान से संगठन और अभिमान से विघटन

संगठन का निर्माण तब होता है जब एक से दो लोगों के विचार, उद्देश्य समान होते है । संगठन में दूसरे व्यक्ति की भावनाओं, विचारों तथा कार्यों का सम्मान किया जाता हैं तब संगठन बढ़ता है। सम्मान शब्द ही कह रहा हैं "सम्" अर्थात जैसे आप हैं वैसे ही आपके सामने वाला और मान का अर्थ हुआ आदर करना। तो सम्मान का क्या अर्थ हुआ ? जैसा आप अपने प्रति व्यवहार चाहते है,वैसा ही व्यवहार दूसरे के साथ करना ।

सनातन वैदिक धर्म में यही धर्म की व्याख्या लिखी है। महर्षि दयानंद कहते है- जो व्यवहार आपकी आत्मा के प्रतिकूल हो वैसा व्यवहार दूसरों के साथ न करे,अर्थात जैसा आपकी आत्मा को अच्छा लगे वैसे ही दूसरे आत्मा को जानकार व्यवहार करें। सम्मान जहाँ पर बढ़ता चला जाएगा संगठन उतना बढ़ता चला जायेगा, क्योंकिं संगठन में सम्मान अपेक्षित है उपेक्षित नहीं। अन्य व्यक्ति जो आपके साथ जिस महान उद्देश्य के लिए तन मन धन से समर्पित होकर कार्य कर रहे हैं, उनका उत्साह वर्धन, उनकी कर्तव्य परायणता को नमन, उनके सुझावों पर अमल अनिवार्य हैं, सफल संगठन चालक वही कहलाता है जो प्रत्येक सदस्य की जो संगठन को दृढ़ करने तथा उच्च शिखर पर ले जाने में अपनी महत्त्व पूर्ण भूमिका निभा रहा है, उसकी भावनाओं, विचारों को सम्मान दे। उससे संगठन में नवीन ऊर्जा का विकास होता है। जिसके फलस्वरूप संगठन उन्नति पथ पर निरंतर चलता रहता है। 

परमात्मा की अनन्य कृपा है की प्रत्येक मानव अपने आप में एक अद्भुत प्रतिभा लिए इस पावन धरा पर विचरता है, उन प्रतिभाओं का विकास किसी न किसी माध्यम से होता ही है जो प्रतिभा को संवारने का काम करते हैं वास्तव में वह देव तुल्य हैं। जब संगठन में हमें प्रतिभावान व्यक्ति मिलते हैं तो संगठन अधिक शक्ति संपन्न हो जाता है। जब ऐसे प्रतिभवान् व्यक्तियों का शोषण किया जाता है, तब उपेक्षाओं, विरोधों का दौर प्रारम्भ हो जाता है। जैसे एक मजबूत बाँध के स्त्रोत खुल गए हो, सेंध लग गयी हो। धीरे धीरे वह बांध जर्जर होने लगता है और अंत में आर्तनाद करते हुए विखंडित हो जाता है। वैसे ही प्रतिभाओं का निर्माण निखार प्रोत्साहन न होने से धीरे धीरे संगठन, विघटन की ओर चला जाता है जिसका कारण है अभिमान। 

परंतु "अभिमान से विखंडन" 

जब संगठन में दूसरे व्यक्ति को सम्मान नहीं दिया जाता, जब उसके सुझावों, विचारों, कार्यों जो की संगठन के हित में होते हैं उन पर ध्यान नहीं दिया जाता, केवल खाना पूर्ति सदस्यो से काम लिया मात्र जाता है, उपयोग जैसा किया जाता है- तब विखण्डन विघटन प्रारंभ हो जाता है। इस विघटन का कारण होता है अभिमान। अभिमान किसी भी प्रकार का हो सकता है, वो प्रथम आये विचारों, सफल हुए कार्यों, सामाजिक प्रतिष्ठा, धन आदि आदि।

नए सदस्य का सुझाव,व्यवहार मेरे से अच्छा कैसे? ये सब बाते अभिमान की जनक होती हैं। समझदार संगठन चालक को चाहिए कि इन तुच्छ महत्वाकांक्षाओं को छोड़ परमात्मा प्राप्ति की महत्वाकांक्षा रख, सभी का सम्मान करे,क्योंकि सम्मान ही संगठन का निर्माता और अभिमान विघटन का मूल है।

यह लेख किसी संस्था विशेष व् व्यक्ति विशेष को लक्ष्य करके नहीं लिखा गया। यह तो ह्रदय उदगार हैं।

वैदिक आचार्य योगेश जी शर्मा
वैदिक संसथान, शिवपुरी (म.प्र.)

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें