संस्कृति का सूखता बटवृक्ष, जड़ में मट्ठा डालने वालों को भी तो जानिये ? - परमानन्द पाण्डेय


आप लोगों को गुड़गोबर नज़र आ रही ,कन्हैया कुमार नज़र आ रहा है , आप लोगों को उमर खालिद नज़र आ रहा है, आप लोगों को हार्दिक पटेल नज़र आ रहा है , रोहित वेमुला याद होगा , अख़लाक़ की मौत के बाद असहिष्णुता की जो सुनामी चलायी गयी थी वो भी याद होगी और अगर मैं इस तरह पीछे चलता जाऊँ तो 2002 का गोधरा और 1990 का कश्मीरी पंडितों के पलायन की तारीख याद होगी। 1988 में कुंडकोलम न्युक्लीअर प्लान्ट बनाना शुरू हुआ 24 साल तक बनता रहा , लेकिन जब उसके शुरू होने के दिन आये तो विरोध करने के लिए एक उदय कुमार जी जाग गए। होने लगा धरना प्रदर्शन। 

ऐसे ही 60 के दशक से एक बाँध बन रहा था , जिसके बनने से गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के चालीस लाख से ज्यादा लोगों को पीने,और सिंचाई के लिए पानी मिलना है , इन राज्यों को बिजली मिलनी है। लेकिन मेधा पाटकर नाम के प्राणी को बाढ़ और सूखे की मार झेलने वाले लाखों लोगों से ज्यादा चिंता उन सैंकड़ों लोगों की थी जिनकी ज़मीन पर सरदार सरोवर बाँध बन रहा था। इनका साथ दिया अरुंधति रॉय ,आमिर खान जैसे लोगों ने। आपको याद हैं न ये वही लोग हैं जिन्होंने अफ़ज़ल गुरु और याकूब मेमन की फांसी की सजा माफ़ करने के लिए राष्ट्रपति को पत्र लिखा था। 

यूँ ही याददाश्त को पीछे लेकर जाएँ तो मैं आपको वर्ष 1812 तक ले जा सकता हूँ जब सी आई ए ने Adoniram judson नाम के एक धर्मगुरु को प्रायोजित करके हिंदुओं का धर्म परिवर्तित करने के लिए भारत में भेजा था।

क्या आपको मालूम है कि 1988 से लेकर 2011 तक, 24 साल कुंडकोलम बनता रहा और कोई विरोध नहीं हुआ ??? जैसे ही उस न्युक्लीअर प्लांट की शुरुआत होनी थी , मुम्बई स्थित अमरीकी वाणिज्यदूतावास से एक मेल (Wikileaks cable 06MUMBAI1803_a) सी आई ए को गई और शुरू हो गया विरोध। 

1975 में अमरीकी सीनेट ने सी आई ए तथा गिरिजाघरों के सम्बन्धो को जानने के लिए सीनेटर फ्रैंक चर्च की अध्यक्षता में एक समिति गठित की जिसका भारत के परिपेक्ष्य में एक अंश कहता है ---- 

सी आई ए धार्मिक लोगों को तनख्वाह,बोनस और खर्चे देती रही है। उनके द्वारा चलाये गए प्रोजेक्ट्स की फंडिंग करती रही है। अधिकतर व्यक्तियों को गुप्त गतिविधियां चलाने के लिए पैसा दिया जाता था। 60 के दशक में सैकड़ों लोग गुप्त गतिविधियाँ चलाते थे मूलतः वामपंथ से प्रतिस्पर्धा करने के लिए . . . . . . . . . . . . . . 

हाल में अमरीका के लिए सबसे घातक एक पादरी के सी आई ए से सम्बन्ध हैं जो कि विद्यार्थियों और धार्मिक मामलों में विचारों की विभिन्नता के लिए जासूसी करता है। 70 के दशक में अमरीका सरकार इस पादरी को एक लाख रूपये सालाना तनख्वाह के इलावा अक्सर उपहार दिया करती थी। 

इस पादरी के रूप में जासूस का नाम तो नहीं मालूम , पर भारत में सामाजिक और धार्मिक मामलों के जानकारों के लिए जॉन दयाल, कांचा इल्लैया और सुनील सरदार के नाम  अनजाने नहीं हैं। ये तीनों भारतीय हैं ,लेकिन दुनिया का ऐसा कोई मंच नहीं है जहाँ से ये भारत और हिन्दुओं को बदनाम करने का मौका छोड़ते हों। अगर सिर्फ बदनाम करने की बात होती तो शायद इन्हें नज़रअंदाज़ किया जा सकता था, लेकिन भारत में रह कर धर्मान्तरण करवाना और जेनयू जैसे शिक्षण संस्थानों में सेमिनारों में हिंदुओं और हिंदुओं के आराध्यों के अपशब्द कहना इनका पेशा है। बस इनका प्रतिरोध नहीं होना चाहिए। गलत या सही किसी अल्पसंख्यक के साथ कोई घटना हो जाये उसके लिए हिंदुओं को ज़िम्मेदार ठहराना इनका मूलकर्तव्य है। किसी भी मुद्दे पर मीडिया के साथ मिल कर इतना हो हल्ला मचाते हैं कि सरकार मजबूरी में हिंदुओं पर कार्यवाही करने के लिए बाध्य हो जाये। ये चाहें तो कितना भी धर्म परिवर्तन करवा लें बस हिन्दू संगठन घर वापसी न करवाएं। 

सी आई ए का एक मुखौटा है " समर इंस्टिट्यूट ऑफ़ लिंग्विस्टिक्स " जिसे USAID से पैसा मिलता है। महाराष्ट्र के इसकी एक शाखा " इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ क्रॉस कल्चरल कम्युनिकेशन" के नाम से है। 70 के दशक में एलएसडी एक मनोविकृतकारी ड्रग का परीक्षण भारत में इसी संस्थान ने किया था। चूँकि ये लोग भारतीयों की धार्मिक भावनाओं को नहीं हिला पा रहे थे तो ओशो आश्रम, इस्कॉन, और आनंदमार्ग में घुसपैठ करके उनके अनुयायियों पर इस ड्रग का इस्तेमाल करके उन्हें आपस में लड़वा कर उन्हें बदनाम करवाने में सीआईए का ही हाथ था।

60 के दशक में थे एक अतिउत्साही ईसाई मत के प्रवर्तक लेस्टर डोनिगर जिन्हें अमरीकी सरकार से धर्मान्तरण के लिए भरपूर पैसा मिलता था। इनकी हैं एक बिटिया जिसका नाम है वेंडी डोनिगर। याद आया आपको यह नाम ??? जिन्होंने , "द हिन्दू : एन आल्टरनेटिव हिस्ट्री"लिखी थी । यह वही किताब है जिसने देवी देवताओं की जानवरों से तुलना करके हिंदुओं का मज़ाक उड़ाया था। यह बात दीगर है की इस पुस्तक को दीनानाथ बत्रा जी ने अदालत के द्वारा प्रतिबंधित करवा दिया था। लेकिन अफ़सोस बहुत से हिंदुओं ने इस प्रतिबन्ध का विरोध किया, अभिव्यक्ति की आज़ादी पर प्रश्न चिन्ह लगाया था । लेकिन तथ्य जो बहुतों को नहीं मालूम वो यह है कि इसी वेंडी डोनिगर को अमरीकी सरकार ने विद्यार्थी के छद्म रूप में 1963-64 में $6000 का वज़ीफ़ा दे कर भारत की जासूसी करने के लिए भेजा था। 

कौन हैं वो लोग जो अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर रोज़ स्यापा करते है ??? 

ज़रा सा दिमाग पर ज़ोर डालिये, एम एफ हुसैन ने हिंदुओं के साथ वही किया था जो चार्ली हेब्दो ने मुसलमानों के साथ किया था। हुसैन देश छोड़ कर भाग गया जब हिन्दू संगठनों ने अदालत का सहारा लिया। चार्ली हेब्दो ने देश नहीं छोड़ा। हुसैन स्वाभाविक मौत मर गया, चार्ली हेब्दो को मुसलमानों ने मार डाला इसके बाद हुसैन की मौत पर भारत के बुद्धिजीवी बोलते हैं --- RIP Maqbool Fida hussain, victim of Lunatic & apathy of some Indians .Alvida Hussain Saab.

और चार्ली हेब्दो पर यही हिन्दू बुद्धिजीवी बोलते हैं ---Condemn the murders in Paris. But verbal violence begot violence there .

इस तरह की बातें करने की मानसिकता यूँ ही पैदा नहीं हो जाती। ---1935 में आर के नारायण द्वारा लिखित " Swami and Friends " में नारायण लिखते हैं कि स्कूल के बच्चों में ईसाईयत के भाव भरने के लिए अध्यापक बच्चों को कहते है ____" ओ दयनीय बेवकूफों ! क्या हमारे जीसस तुम्हारे कृष्ण की तरह नाचती हुई लड़कियों के साथ इधर उधर आवारा गर्दी करते थे ???? क्या हमारे जीसस तुम्हारे दुरात्मा कृष्ण की तरह मख्खन चुराते घूमते थे ??? क्या हमारे जीसस तुम्हारे कृष्ण की तरह अपने आस पास वालों पर काला जादू करते थे ????

ये बात 1935 की है। 1967 में अमरीका से पैसा और सम्मान मिलने के बाद रोमिला थापर सरीखों ने भारतीय इतिहास के साथ कैसा बलात्कार किया यह जानने के लिए अरुण शौरी द्वारा लिखित “Eminent Historians: Their Technology, Their Life, Their Fraud” , पढ़िए। आपको समझ आ जायेगा कि वर्तमान इतिहासकारों ने भारत की गरिमा को मिटटी में मिलाने के लिए विदेशियों के पैसे के दम पर तत्कालीन मुस्लिम इतिहासकारों द्वारा लिखित इतिहास को ही झुठला दिया है, जिन्होंने इस्लाम के दमनकारी चक्र को बहुत गौरवान्वित हो कर वर्णित किया था।

आज के बच्चों की मानसिकता कैसे गुरमेहर या कन्हैय्या जैसी हो जाती है , उसे समझने के लिए कक्षा 1 से कक्षा 10 तक की किसी भी बोर्ड की पुस्तकें उठा कर देख लीजिये आपको समझ आ जायेगा । 

1917 में रूस में पैदा हुए वामपंथ ने 1928 में ही भारत की जड़ें खोदनी शुरू कर दीं थीं। 1962 में जब चीन ने भारत पर अतिक्रमण किया तो भारतीय वामपंथी चीन के साथ खड़े थे।मैं उसी चीन की बात कर रहा हूँ जो भाषाओँ के आधार पर भारत को 28 टुकड़ों में तोडना चाहता है। भारतीय इतिहास को बदरूप करने वाले और NCERT का पाठ्यक्रम तय करने वाले सारे तथाकथित बुद्धिजीवी वामपंथी है। ISI का ज़िक्र करके पोस्ट बड़ी करने से कोई फायदा नहीं। 

आपको क्या लगता है कि रॉकफेलर स्कालरशिप , मैगासेसे अवार्ड , फोर्ड फाउंडेशन, ग्रीनपीस आर्गेनाईजेशन बहुत चिंतित हैं भारत के प्रति जो हजारों करोड़ प्रतिवर्ष भारत को दे रहीं थीं ??? या KGB (रूस की ख़ुफ़िया एजेंसी) बेवकूफ थी जो 1970 से कांग्रेस को पैसा दे रही थी ??? या ज़ाकिर नाइक का पीस फाउंडेशन कैसे 3000 करोड़ की हो गयी ??? कैसे 1990 के बाद अपने को दलित कहने वालों को हिंदुओं से अलग करने की बाढ़ आ गयी ??? कैसे जब कोई व्यक्ति आपसी रंजिश में मारा जाता है तब भी मीडिया चिल्ला चिल्ला कर बताता है कि मरने वाला दलित था ???

वैसे तो पिछले सालों में इन बामियों और कसाईयों ने भारतीय समाज का ताना बाना छिन्न -भिन्न कर दिया है , फिर भी ईश्वर को या मोदी जी को धन्यवाद कीजिये कि 13000 NGO की विदेशी फंडिंग पर बैन लगा दिया। फिर सब पूछते हैं कि मोदी ने हिंदुओं के लिए क्या किया ????

हिलता हुआ पेड़ और झड़ते हुए पत्ते सबको नज़र आ रहा हैं लेकिन उनकी नींव में मठ्ठा कौन डाल रहा है, कोई जानना नहीं चाहता है। ज़रा जानने की कोशिश कीजिये कि इस पूरे प्रकरण की फाउन्डेशन कौन डाल रहा है। फिर मुंह से यही निकलता है कि जब अपना ही सोना खोटा हो तो सुनार को दोष कैसे दें। 

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