धर्मान्तरण में सतत प्रयासरत "चर्च"



ईसाई धर्म को बढ़ावा देने के उद्धेश्य से विदेशों से भारत में जड़ जमाने के लिए तमाम मिशनरीज संचालित है ! यह हिन्दू धर्म के लोगों को अनेक प्रकार से प्रलोभित कर उन्हें ईसाई धर्म अपनाने हेतु प्रेरित करते है ! ध्यान दें तो पता चलता है कि एक पार्टी विशेष के द्वारा पूर्व में ईसाई धर्म को बढ़ावा देने के उद्धेश्य से मिशनरीज संस्थानों को शासकीय अनुदान के माध्यम से चर्चों की मरम्मत, उनके सुन्दरीकरण तथा किश्चियन कम्युनिटी हॉल बनाने के लिए देती रही है जिसका खुलासा RTI के माध्यम से भी हो चुका है ! जबकि किसी भी देश में कोई भी सरकार धार्मिक संस्थानों को पैसा नहीं दे सकती ! यह साक्षात संविधान का उल्लंघन है, परन्तु अफ़सोस खुद को सेक्युलर पार्टी बताने के लिए ईसाई संस्थानों की जेब भरने का काम अपने आकाओं के निर्देश एवं वोट बैंक को बढाने के लिए कर रहे है !

यही नहीं कुछ अंतराष्ट्रीय ईसाई संस्थाएं उत्तर-पूर्व के राज्यों में आतंकवाद को खुला समर्थन देती रहीं है ! उनका एकमात्र उद्धेश्य समूचे उत्तर-पूर्व को भारत से अलग करना रहा है ! इन विभिन्न आतंकवादी संगठनों को चर्च की और से पैसा मुहैया कराने का खेल सर्वविदित है ! छत्तीसगढ़, उड़ीसा, बिहार, प.बंगाल, आसाम, मिजोरम, त्रिपुरा आदि क्षेत्रों में आदिवासियों को धर्मान्तरित करने का धंधा जोर शोर से चलता है ! 

धर्मान्तरण के कार्यों में संलिग्ध संस्थाओं पर स्थानीय आदिवासियों के द्वारा समय समय पर आरोप लगाए जाते रहे है कि धर्मान्तरण के जरिये उनकी स्थानीय संस्कृति को खतरे में डाला जा रहा है, परन्तु पूर्व में दिल्ली में बैठी लूली-लंगड़ी सरकारों एवं मार्क्सवादियों की शह पर यह काम धल्लड़े से जारी रहा है ! स्थिति इतनी विकराल होती चली गयी कि इन क्षेत्रों के स्थानीय लोग ण सिर्फ अल्पसंख्यक होते चले गए बल्कि वे लोग अपने वार्षिक उत्सवों को भी शांति के साथ मना नहीं पा रहे ! 

भोले भाले आदिवासियों के द्वारा इनकी बात नहीं मानने पर इनकी औरतों के साथ अपहरण और बलात्कार किया जाता है और उन्हें अपना धर्म छोड़ने को मजबूर किया जाता है ! इस कृत्य के विरोध में जब rss एवं अन्य हिन्दू संगठन विरोध में कार्य करते है तो उन्हें उपहार में धमकियां एवं जानलेवा आक्रमण मिलते है ! अगस्त 2000 में स्वामी शान्तिकली महाराज की हत्या कर दी गयी ! इसी प्रकार दिसंबर 2000 में जमातिया कबीले के मुख्य पुजारी लब कुमार जमातिया की भी हत्या कर दि गयी ! इनका कसूर वही था जो कि लक्ष्मणानंद सरस्वती का था, यानी कि हिन्दुओं को धर्मान्तरण के विरुद्ध जागृत करना !

वर्तमान परिस्थितियों पर यदि नजर डाली जाए तो देखने में आता है कि इन चर्चों की गतिविधियाँ जहाँ एक और आदिवासी क्षेत्रों में तो जोर-शोर से जारी है ही वहीँ दूसरी और शहरी क्षेत्रों में भी यह गुपचुप रूप से धर्मान्तरण के लिए प्रयासरत है ! जिसका जीता जागता उदाहरण है म.प्र. के शिवपुरी में बिना प्रशासन को जानकारी दिए एक हिन्दू ब्राह्मण लड़के को बिना उसके परिवार को सूचना दिए शिवपुरी बुलाकर चर्च में शादी से पूर्व रीति रिवाजों के नाम पर ईसाई पद्धति के अनुसार उसकी शुद्धि के नाम पर उसका धर्म परिवर्तन कराने की अधूरी कोशिश की गयी !

जानकारी के अनुसार उज्जैन के एक ब्राह्मण परिवार का एक युवक जो वर्तमान में एक प्रतिष्ठित कंपनी में मुंबई में कार्यरत है, शिवपुरी निवासी ईसाई परिवार की एक युवती के साथ प्रेम विवाह करने का ईच्छुक था, परन्तु युवती के घर वालों ने युवक के सामने ईसाई पद्धति स चर्च में विवाह की विधिवत रस्म निभाने के लिए शिवपुरी बुलाया एवं पूजा के नाम से उस हिन्दू युवक एवं ईसाई युवती की गुपचुप शादी का आयोजन बिना प्रशासन को अवगत कराते हुए किया जा रहा था ! जबकि हिन्दू युवक और ईसाई युवती की शादी तब तक वैध नहीं हो सकती जब तक उनमे से कोई एक अपना धर्म परिवर्तन नहीं कर लेता और गौर करने वाली बात है कि धर्म परिवर्तन बिना प्रशासन की अनुमति के संभव नहीं है, तो शिवपुरी स्थित जीवन ज्योति चर्च क्या क़ानून का उल्लंघन नहीं कर रहा था ? अगर क़ानून या संविधान के अनुरूप वे दोनों अपना-अपना धर्म बनाये रखना चाहते थे, तो विकल्प के रूप में उनकी शादी विशेष विवाह अधिनियम १९५४ के तहत पंजीकृत कराई जानी चाहिए थी जो नहीं हुआ !

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