उफ़,नक्सलवाद को खादपानी विश्वविद्यालयों से ?



आज एक बार फिर नक्सलवाद और उसके बौद्धिक शुभचिंतक चर्चा में हैं | जहाँ हिंसक नक्सली देश के दुर्गम क्षेत्रों में अपनी हिंसक जड़ें पसार रहे हैं, वहीं महानगरों के विश्वविद्यालयों से उन्हें समर्थन का खाद पानी मुहैया कराया जा रहा है | 

आज महाराष्ट्र के गढ़चिरौली सत्र न्यायालय ने माओवादियों से संपर्क रखने के आरोप में दिल्ली विश्वविद्यालय के निलंबित प्रोफेसर जी.एन.साईबाबा, जेएनयू स्टूडेंट हेमन्त मिश्रा, पूर्व पत्रकार प्रशांत राही के अलावा महेश तिर्की और पांडु नरोटे को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत दोषी ठहराकर आजीवन कारावास की सजा सुनाई है । वहीं विजय तिर्की को दस वर्ष के कारावास की सजा दी गई है |

कोर्ट ने साईबाबा और पांच अन्य को भारत के खिलाफ युद्ध का षडयंत्र रचने का दोषी पाया है। साईबाबा दिल्ली यूनिवर्सिटी के राम लाल आनंद कॉलेज के प्रोफेसर थे। जज एस.एस. शिंदे ने सभी आरोपियों को अनलॉफुल ऐक्टिविटीज (प्रीवेन्शन) ऐक्ट की धारा 13,18,20, 38 और 39 का दोषी पाया है।

कहने को तो साईंबाबा 90 प्रतिशत निशक्त हैं, व चलने फिरने के लिए व्हील चेयर का उपयोग करते हैं, किन्तु इसके बावजूद उन्होंने देश और विदेश में कई सम्मेलनों और सेमिनारों में हिस्सा लिया है, जिनके जरिये उन्होंने माओवादी विचारधारा का प्रचार-प्रसार किया । कोर्ट में जिरह के दौरान इन आरोपों का बचाव पक्ष के वकील ने कोई प्रतिवाद भी नहीं किया।

हेम मिश्रा को महेश तिर्की और पांडु नरोटे के साथ गढ़चिरौली जिले के अहेरी से अगस्त, 2013 में गिरफ्तार किया गया था। पूछताछ में उनसे मिले सुराग के आधार पर ही प्रशांत राही और विजय तिर्की को गोंडिया जिले के दियोरी से गिरफ्तार किया गया था। साईंबाबा को महाराष्ट्र की गढ़चिरौली पुलिस ने मई 2014 में प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) का सदस्य होने, समूह के लिए नियुक्तियां करने और रसद मुहैया कराने के आरोप में गिरफ्तार किया था।

महाराष्ट्र पुलिस के अनुसार साईबाबा का नाम उस समय सामने आया, जब जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र हेमंत मिश्रा को गिरफ्तार किया गया था। उसने जांच एजेंसियों को बताया था कि वह छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ के जंगलों में छिपे माओवादियों और प्रोफेसर के बीच ‘कूरियर’ का काम करता है। 

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में काम कर रहे डेमोक्रेटिक स्टूडेंट यूनियन भी ‘नक्सलवाद और माओवाद’ की इस पटकथा के प्रमुख अंग रहे ।

जीएन साईबाबा पहले व्यक्ति नहीं हैं जिनके सम्बन्ध ‘आतंकवाद, नक्सलवाद या माओवाद’ से रहे हैं । एसएआर गिलानी, विनायक सेन, सोनी सोरी, सीमा आजाद, विश्वविजय, अरुण फरेरा… ऐसे दर्जनों नाम हैं, जो लंबे समय से इन असामाजिक और हिंसक समूहों के समर्थक रहे हैं | किन्तु पूर्ववर्ती यूपीए सरकार की ढुलमुल नीति के चलते और अंतर्राष्ट्रीय समर्थन की वजह से इन लोगों पर कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं हो सकी । 

गिरफ्तारी की फिल्मी पटकथा –

7 सितंबर 2013 को प्रथम न्यायाधीश अहेरी ने महाराष्ट्र पुलिस को साईबाबा के घर की तलाशी का आदेश दिया, इसके बाद 12 सितंबर 2013 की दोपहर में पुलिस और इंटेलिजेंस की टीम द्वारा साईबाबा के दिल्ली विश्वविद्यालय के ग्वायर हॉल, वार्डेन फ्लैट आवास पर छापा मारा गया।

साईबाबा के घर से कुल 41 सामान की जब्ती की गई, जिसमें हार्ड डिस्क, पेन ड्राइव से लेकर किताबें तक शामिल हैं। इसी बरामदगी के आधार पर अहेरी, गढ़चिरौली के उपायुक्त पुलिस ऑफिसर ने 17 सितंबर 2013 को साईबाबा को पूछताछ के लिए नागपुर या दिल्ली से बाहर किसी जगह पर 8 दिनों के भीतर उपस्थित होने का सम्मन जारी किया। 

इसके बाद शुरू हुआ मानवाधिकार संगठनों और दिल्ली विश्वविद्यालय अध्यापक यूनियन, छात्रों आदि का सियापा | मजबूरन पुलिस को साईबाबा के आवास पर ही पूछताछ करने को विवश होना पड़ा । 9 जनवरी 2014 को महाराष्ट्र पुलिस ने साईबाबा से गहन पूछताछ की। इस पूछताछ के बाद उन के नाम पर कथित नॉन बेलेबल वारंट जारी कर दिया गया।

साईबाबा द्वारा लगातार वारंट की उपेक्षा किये जाने के बाद अंतत: दिल्ली विश्वविद्यालय ने उन्हें निलंबित कर दिया और आवास खाली करने का केस कायम किया ।

अंततः नौ मई 2014 की दोपहर में प्राध्यापक जीएन साईबाबा को दिल्ली विश्वविद्यालय कैंपस में महाराष्ट्र पुलिस ने हिरासत में लिया । पहले साईबाबा को सिविल लाईंस पुलिस स्टेशन ले जाया गया, तथा वहां से वायुयान द्वारा नागपुर ले जाया गया | पुलिस द्वारा उन्हें अहेरी कोर्ट में पेश कर 24 मई और बाद में 3 जून 2014 तक की न्यायिक रीमांड पर नागपुर सेंट्रल जेल भेज दिया गया।

7 अप्रैल 2016 को जी. एन. साईबाबा जैसे ही नागपुर सेंट्रल जेल से जमानत पर बाहर आये, उनका मीडिया को पहला बयान देशद्रोह के आरोपी कन्हैया कुमार, उमर खालिद, अनिर्बन भट्टाचार्य के पक्ष में मुखरित हुआ । साईबाबाने कहा कि इन दोनों और छात्र आंदोलन से जुड़े अन्य विद्यार्थियों पर उन्हें अभिमान है। कन्हैया कुमार जैसे विद्यार्थी नेता आदिवासी और दलित समाज के लिए काम कर रहे हैं।

प्रारम्भिक जीवन –

आंध्र प्रदेश के गोदावरी जिले के एक छोटे से सुदूरवर्ती गांव में नामभर की जमीन वाले परिवार में जन्मे साईबाबा का परिवार अपनी जमीन गंवाने के बाद अमलापुरम में आकर बस गया। वहीं पर उनकी कॉलेज तक की पढ़ाई हुई। हैदराबाद विश्वविद्यालय से एम. ए. किया। इसके बाद अंग्रेजी प्राध्यापन में डिप्लोमा किया। यहीं से उनका संपर्क उग्र बामपंथ से हुआ ।

1994 से 96 तक वे अखिल भारतीय जनप्रतिरोध मंच, आंध्र प्रदेश कमेटी के सचिव रहे और इसके बाद वह इस मंच के महासचिव बनकर दिल्ली आ गए। इस पद पर वह 2005 तक रहे और इसके बाद क्रांतिकारी जनवादी मंच के संयुक्त सचिव की तरह काम किया। इस दौरान दिल्ली विश्वविद्यालय में नौकरी के लिए कई बार आवेदन किया और अंतत: 2003 में राम लाल आनंद कॉलेज में अंग्रेजी के अध्यापक नियुक्त हुए। साईबाबा ने 1996 में राष्ट्रीयताओं की मुक्ति और आत्मनिर्णय के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन, 1998-99 में किसानों के विशाल मोर्चे जॉफिप में सहभागिता की । जनवादी मोर्चा निर्माण में भी उन्होंने हिस्सेदारी की। इसके बाद जन आंदोलन के नाम पर नक्सली हिंसा के खुले पैरोकार की उनकी भूमिका प्रारम्भ हुई ।

पीयूसीएल और पीयूडीआर जैसे घोषित ‘माओवादी’, ‘नक्सलवादी’ संगठनों ने हत्या, षड्यंत्र, कुचक्र, और धमकियों का जो कुचक्र रचा उसके बौद्धिक सहयोगी के रूप में जी. एन. साईबाबा का नाम भी सामने आया । दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेज में पढ़ाते हुए, जेएनयू में भी बामपंथ की जड़ों को वे सींचते रहे और इस प्रकार शैक्षिक माहौल को अभारतीय बनाने का उनका अभियान जोरशोर से चलने लगा ।

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