इस्लाम और भगवद् गीता



(7 मार्च 2017 को टाईम्स ऑफ़ इण्डिया में प्रकाशित फ्रेंकोइस गौटीयर के एक लेख का अनुवाद | लेखक फ्रांस के सबसे बड़े दैनिक ले फिगारो के लिए 10 वर्ष तक दक्षिण एशिया में राजनीतिक संवाददाता रहे तथा वर्तमान में में अब इसी पत्रिका के पेरिस में संपादक-इन-चीफ हैं !)

पिछले 30 वर्षों में, मैंने अपनी पुस्तकों, अपने लेखों और साथ ही सम्मेलनों में अपने उद्बोधन के दौरान अक्सर इस्लाम और इस्लामी कट्टरवाद का विरोध किया है । शायद यही कारण है कि मुझे अक्सर एक इस्लामोबोब या एक हार्ड-लाइन प्रो-हिंदू के रूप में जाना माना जाता है ...

जब मैं एक पत्रकार के रूप में पहली बार भारत आया, तब किसी भी अन्य पश्चिमी संवाददाता के समान मेरे भी भारत को लेकर पूर्वाग्रह और विचार थे | मुसलमान और हिंदू में क्या अंतर है, मुझे नहीं पता था। मेरी मान्यता थी कि हिन्दू भी कट्टरपंथी हो सकते हैं और केवल धर्मनिरपेक्ष कांग्रेस ही एकमात्र ऐसी पार्टी है जो भारत को एकजुट रख सकती है, आदि आदि...

लेकिन 90 के दशक में मैंने कश्मीर को कवर करना शुरू किया, जहाँ अलगाववाद पनप रहा था और पूरी घाटी हिंसा की आग में झुलस रही थी। तब मैंने सबसे पहले हिंदू नेताओं को नजदीक से देखा, उनके साक्षात्कार लिए| क्रूरता पूर्वक हुई डॉक्टरों, वकीलों और ऑल इंडिया रेडियो के उद्घोषकों की हत्याओं ने मुझे हिला दिया । और फिर बेनजीर भुट्टो द्वारा दिए गए 'आजाद कश्मीर' के भाषण, श्रीनगर की हर मस्जिद और घाटी में दोहराये जाने लगे | हिंदुओं को कहा गया कि "कन्वर्ट हो जाओ या मरो" और फिर देखते ही देखते कुछ ही हफ्तों में, 350,000 कश्मीरी पंडितों ने अपने पैतृक घरों और जमीन को छोड़ दिया | इन बेचारों का कोई और अपराध नहीं था, सिवाय इसके कि वे हिन्दू थे | उन्होंने अपनी आत्मरक्षा में भी कोई गोली नहीं चलाई और चुपचाप अपने ही देश में शरणार्थी बन गए, यह दुनिया में अपनी तरह का पहला उदाहरण था |

इन सबको देखते देखते मेरी आँखें खुल गईं और मेरा नजरिया भी बदल गया । उसके बाद मैंने कई अन्य देशों जैसे बांग्लादेश, पाकिस्तान या अफगानिस्तान में भी यही सब देखा | इसने मुझे भारतीय इतिहास का अध्ययन करने को प्रेरित किया और मुझे समझ में आया कि सदियों से हिंदू इसी मुस्लिम नफरत के शिकार रहे हैं । साथ ही मैंने हैरत से यह भी देखा कि किस प्रकार भारतीय इतिहास की किताबों में शिवाजी महाराज या महा राणा प्रताप जैसे महान हिंदू नायकों का वर्णन महज एक पैराग्राफ में किया गया है: इतना ही नहीं तो शिवाजी महाराज, जिन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता और असाधारण साहस की दम पर केवल कुछ सौ सहयोगियों की दम पर अपने समय की दुनिया की सबसे ताकतवर सेना को हराया, उन्हें महज एक लुटेरा बताया है | और महाराणा प्रताप को एक छोटे से सरदार के रूप में वर्णित किया गया है, जबकि वे एकमात्र ऐसे राजपूत योद्धा थे, जिन्होंने हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर की सेना का सामना किया था। 

और विडंबना तो देखिये कि औरंगजेब, जिसने एक दुष्ट राक्षस के समान न केवल हिंदुओं के साथ अत्याचार किये, बल्कि अपने अपने पिता को जहर दिया, अपने भाई दारा शिकोह का सिर काटा, अपने बेटे को कैद कर दिया – उसकी इतिहास की पुस्तकों में प्रशंसा की गई है, लिखा गया कि केवल उसके समय ही कला विकसित हुई | जबकि सचाई यह है कि औरंगजेब ने अपने दरबार में गैर इस्लामिक बताकर संगीत पर प्रतिबंध लगा दिया था ...।

... यह सब देखते अनुभव करते, अब मेरा जीवन ही बदल चुका है | अब मेरी पत्नी और मैं विगत 25 सालों से श्री श्री रविशंकर के सानिध्य में प्राणायाम और ध्यान तकनीकों का अभ्यास कर रहे हैं और उससे हमें ऊर्जा, उत्साह और प्रतिबद्धता प्राप्त हुई है । अब तो हम इस सबमें इतने तज्ञ हो चुके हैं कि हम भारत में उत्पन्न, मानवता के लिए इस महान उपहार को एक सेवा के रूप में, नि: शुल्क दूसरों को भी प्रदान कर रहे हैं ।

पिछले शिवरात्रि समारोह के दौरान, हमने श्री श्री के बंगलौर आश्रम में ईरानियों के एक बैच को प्राणायाम पाठ्यक्रम का अभ्यास कराया । हमारे समूह में, अनेक लड़कियां और महिलायें भी थीं, उनमें से कुछ ने परंपरागत ढंग से अपने सिर ढके हुए थे, किन्तु जैसे जैसे उनका अभ्यास बढ़ा, और हमारे बीच स्नेह विकसित हुआ, यह औपचारिकता भी समाप्त हो गई । उन सभी में अत्याधिक प्यार और मानवता का विकास सहज अनुभव किया जा सकता था ।

मुझे इस पाठ्यक्रम से पहले यह नहीं पता था कि मुसलमान भी दूसरों के समान हैं, सभ्य मनुष्य, गर्मजोशी से परिपूर्ण, परिवार उन्मुख, मेहमाननवाज ! मुझे याद है जब मैं कई मुस्लिम देशों को पार करके पेरिस से भारत पहुंचा, तब मेरा सबसे अच्छा दोस्त एक मुस्लिम फ्रांसीसी मोरक्कन था। वह जब मिलता "असलम-ओ-अलैकाम" कह कर मुस्कुराते हुए स्वागत करता, हम साथ साथ भोजन करते, मनोरंजन करते, एक दूसरे का सम्मान करते। किन्तु इस हिंदू दुनिया में इस्लाम के इस सार्वभौम भाईचारे का अस्तित्व नहीं है।

तो इसने मुझे सोचने को विवश किया : इस्लाम का जन्म ईरान में हुआ और खोमैनी के उद्भव के बाद वहां शिया बहुमत है | ईरान की छवि एक हार्ड कोर इस्लामिक राष्ट्र की है, जहां शरिया का शासन है और जो अपने विश्वास के वर्चस्व की खातिर, परमाणु हथियार का इस्तेमाल करने के लिए भी तैयार है | इसके बाद भी ये लोग हमें सिखाते हैं कि पश्चिमी ईसाई दुनिया में प्रेम और सद्भाव नहीं हैं...।

मैं यह मानता हूँ कि ज्यादातर मुसलमान अच्छे हैं, मैं कई मानवीय अधिकार संगठनों, पत्रकारों या बुद्धिजीवियों को जानता हूँ, जो इस समय शरणार्थी के रूप में अपने अधिकारों के लिए लड़ते हैं। अब कुरान की बात करते हैं, जो निसंदेह एक अद्भुत शास्त्र है, लेकिन यह 1400 साल पहले के लोगों और उनकी मानसिकता के अनुसार लिखा गया था | उस समय की परिस्थितियां कठोर थी, उस समय जिन्दगी और मौत में से किसी एक को चुनना था, अतः दंड भी कठोर थे । आज के इस्लामिक आतंकवादियों को छोड़कर शायद ही किसी ने कुरान को ठीक से पढ़ा होगा : उसमें कहा गया है कि इस्लाम को ही दुनिया का धर्म होना चाहिए, पत्थरमारमार कर महिलाओं की जान ली जा सकती है, समलैंगिक होने पर मृत्यु दंड दिया जाना चाहिए । क्या इन बातों की निंदा नहीं की जानी चाहिए ? तर्क यह कहता है कि अंतरराष्ट्रीय ख्याति के मुस्लिम विद्वानों को एक साथ मिलकर कुरान को सुधारना चाहिए, जैसा कि ईसाइयों ने किया है, ताकि यह आधुनिक इक्कीसवीं सदी के उपयुक्त बन सके |

लेकिन समस्या यह है कि कोई भी मुसलमानों से यह कहने की हिम्मत नहीं कर सकता | वे चाहे जितने आधुनिक, पढेलिखे, बुद्धिमान और खुशमिजाज हों, कुरआन का सवाल आते ही थम जाते हैं …

तो अब मैंने भी तय किया है कि मैं भगवद गीता के दायरे में इस्लाम से लड़ना जारी रखूंगा: मेरे भाइयों और बहनों आपमें से अनेक विपरीत शिविर में हैं, किन्तु मैं उन्हें प्यार करता हूं और उनका सम्मान भी करता हूं ... साथ ही मैं यह भी जानता हूँ कि वे एक ऐसे धर्म में पैदा हुए हैं, जो चाहे-अनचाहे, जाने अनजाने, दुनिया को नुकसान पहुंचा रहा है – और वे अमानवीय और पाशविक शक्तियों के साथ खड़े हैं, अतः उन्हें चुनौती दी जानी चाहिए, साथ ही दिल में प्रेम भाव रखकर - नफरत नहीं।

जैसा कि गीता का सन्देश श्री श्री हमें याद दिलाते हैं कि सम्पूर्ण विश्व एक परिवार हैं, वसुधैव कुटुंबकम। हमें यह नहीं भूलना चाहिए ...

सौजन्य: टाइम्स ऑफ इंडिया

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