मुग़ल शासन के अंत तथा १८५७ की क्रांति के सूत्रधार पेशवाओं के वंशज आज कहाँ हैं, क्या हैं ?

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हिंदू साम्राज्य का निर्माण शिवाजी द्वारा किया, जिसे बाद में मराठों के चतुर्थ सम्राट छत्रपति शाहू के पेशवा (प्रधानमंत्री) के रूप में पेशव...


हिंदू साम्राज्य का निर्माण शिवाजी द्वारा किया, जिसे बाद में मराठों के चतुर्थ सम्राट छत्रपति शाहू के पेशवा (प्रधानमंत्री) के रूप में पेशवा बाजीराव द्वारा विस्तारित किया गया ।
मुग़ल शासन के अंत के सूत्रधार थे मराठे | १६८० से १७७० के बीच मुगलो के जायदातर भू भाग पर मराठो का अधिपत्य हो गया था। गुजरात और मालवा के बाद पेशवा बाजीराव ने १७३७ में दिल्ली में भी मुगलो को हराकर अपने अधीन कर लिया था और दक्षिण दिल्ली के जायदातर भागो पर मराठाओं का राज था। बाजीराव के द्वारा मुगल बादशाही को विध्वंसक रूप से तोड़ने के बाद ग्वालियर में रानोजी शिंदे, इंदौर में मल्हार राव होल्कर, बड़ौदा में पिलजी गायकवाड़ और धार में उदयजी पवार को जागीरदार नियुक्त किया और इस प्रकार मराठा राज्यसंघ को भव्य रूप प्रदान किया । बाद में बाजीराव के पुत्र पेशवा बालाजी बाजीराव ने तो पंजाब को भी जीतकर मराठो की विजय पताका पूरे उत्तर भारत में फैला दी थी।
लेकिन उसके बाद जो कुछ हुआ, वह विचारणीय है | दिल्ली का तख़्त तोडने बाले पेशवा, १४ जनवरी १७६१ को हुए पानीपत युद्ध में घरभेदी जयचंदों के कारण परास्त हो गए | यह तो हुई मुगलों के खिलाफ मराठा साम्राज्य की पराजय | किन्तु इसके बाद भी मराठा प्रभाव पूर्णतः समाप्त नहीं हुआ | सिंधिया, होलकर, गायकवाड, पंवार आदि जागीरदार अपना प्रभाव कायम किये रहे |
अंग्रेजों के खिलाफ १८५७ में हुए स्वतंत्रता संग्राम में नाना साहब पेशवा और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की कहानी तो जगजाहिर है ही | अब एक मौलिक सवाल पर गौर फरमाईये | आज प्रबल पराक्रमी पेशवा वाजीराव के वंशज कैसे जी रहे हैं, और उनके द्वारा नियुक्त जागीरदारों के क्या हालचाल हैं ?
भारत की राजनीति में अंग्रेज़ों के आगमन से पूर्व 125 सालों तक प्रभुत्व जमाने वाले और दिल्ली की गद्दी को नियंत्रित करनेवाले पेशवाओं के वंशज पुणे के कोथरूड इलाक़े में एक सामान्य से घर में रहते हैं | पेशवा घराने के दो परिवार पुणे में है | एक है डॉक्टर विनायक राव पेशवा, उनकी पत्नी जयमंगलाराजे, बहू आरती और उनकी बेटियां. यह पेशवा घराने की 10वीं पीढ़ी है | 74 वर्षीय विनायकराव भूगर्भ विशेषज्ञ हैं और इसी विषय के प्राध्यापक के रूप में उन्होंने पुणे विश्वविद्यालय में 33 वर्ष नौकरी की |
दूसरा परिवार विनायकराव के बड़े भाई कृष्णराव का है जो हाल ही में गुजर गए | स्व. कृष्णराव के परिवार में अब उनकी धर्मपत्नी उषा राजे, बेटा महेंद्र, बहू सुचेता और उनकी बेटी हैं | उनके बेटे महेंद्र का अपना फैब्रिकेशन का व्यवसाय है |
ये सारे सदस्य पेशवा ख़ानदान के अमृतराव पेशवा के वंशज हैं | पुणे में जो पेशवा रहते हैं, उनके पास कोई ख़ानदानी जायदाद या संपत्ति नहीं है |
अंग्रेज़ों ने पेशवाओं की कई संपत्तियां अपने क़ब्ज़े में ले लीं थीं | अमृतराव सन् 1800 के आसपास वाराणसी चले गए थे | कई पीढ़ियों तक ये लोग वहीं रहे | लेकिन तीन पीढ़ी पहले पेशवा पुणे में आ गए.
आज उनके पास अपना कहने के लिए केवल दो बाते हैं.
एक तो पेशवा उपनाम और दूसरा मंदिर. ये मंदिर भी पुणे में नहीं हैं. वाराणसी के गणेश घाट पर स्थित गणपति का मंदिर तथा वहीं के राजाघाट पर अन्नछत्र पेशवाओं को विरासत के रूप में मिले थे.
इनमें से अन्नछत्र अब नहीं है. गणपति घाट के मंदिर का सारा इंतजाम आज भी पेशवा ख़ानदान के पास है. दोनों पेशवा परिवारों ने मिलकर इसके लिए ट्रस्ट की स्थापना की है.
इसके माध्यम से मंदिर का प्रबंध किया जाता है. चूंकि इस मंदिर का प्रबंधन ट्रस्ट करता है, इससे उन्हें कोई लाभ नहीं मिलता.
विरासत के तौर कहने के लिए पेशवाओं के लिए यह एकमात्र वस्तु है. इस मंदिर में पेशवाओं की तरफ़ से हर वर्ष पारंपरिक रूप से गणेशोत्सव मनाया जाता है.
यह उत्सव उत्तर भारतीय परंपरा के अनुसार होता है. पेशवा द्वारा स्थापित पर्वती, मृत्युंजयेश्वर मंदिर जैसे कुछ मंदिर आज भी पुणे में खड़े हैं, जिनका प्रबंधन देवदेवेश्वर संस्थान करता है.
विनायकराव पेशवा इस संस्थान के विश्वस्त मंडल में हैं, लेकिन उसकी अध्यक्षता पुणे के विभागीय आयुक्त करते हैं. इस तरह इन मंदिरों में उनकी उपस्थिति नाममात्र है. ध्यान देने की बात है कि पेशवा बाजीराव के पुत्र पेशवा नानासाहब की मृत्यु पार्वती मंदिर में स्थित एक इमारत में हुई थी.
आजकी नई पीढ़ी को पेशवा क्या है, यही पता नहीं है. जिन्हें पेशवा बाजीराव और उनकी वीरता की जानकारी होती है वे लोग अवश्य पेशवा परिवार के लिए अपना सम्मान जताते हैं.
महेंद्र पेशवा कहते हैं,कि "जब भी किसी नए व्यक्ति से पहचान होती है, तो लोग पूछते है, आप तो पेशवा हैं, आपको उद्यम-व्यवसाय की क्या ज़रूरत है?"
महेंद्र के पिता केंद्र सरकार की नौकरी में थे. इसलिए उनकी पढ़ाई बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश में हुई थी. कुछ हैहीनहीं, अतः अन्य राजघरानों की तरह पेशवाओं को अपनी जायदाद संभालने की तकलीफ नहीं उठानी पड़ती.
अंग्रेज़ों ने जब सत्ता हथियाई थी, उस समय पेशवा दूसरे बाजीराव की सारी संपत्ति और हथियार ज़ब्त करते हुए उन्हें उत्तर प्रदेश के बिठूर में भेज दिया था. पेशवाओं के सारे हथियार और संपत्ति पहले 1818 में दूसरे बाजीराव के समय और बाद में नानासाहब के विद्रोह के बाद ज़ब्त कर लिए गए थे. जो हथियार बचे थे वे अब पार्वती स्थित संग्रहालय में रखे गए हैं.
मेरी ओर से बस छोटा सा प्रश्न जोड़ना चाहता हूँ.....
पेशवाओं के पास अब कुछ भी नही है, जो है वो अपनी नोकरी या व्यवसाय।
क्या कारण है कि सिंधियाओ, होल्करो, गायकवाड़ो और भौंसले धन संपत्ति से मालामाल है।
जबकि मराठा साम्राज्य का श्रेष्ठ काल पेशवाओ के समय ही था...
कोई है जो उत्तर देगा।

शायद जो सिद्धांतों की खातिर जूझता है उसके वंशज इसी प्रकार आम इंसान रहते हैं और जो समझौतावादी होता है, उसके वंशज के वस्त्र हीरे मोती जटित होते हैं |

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क्रांतिदूत : मुग़ल शासन के अंत तथा १८५७ की क्रांति के सूत्रधार पेशवाओं के वंशज आज कहाँ हैं, क्या हैं ?
मुग़ल शासन के अंत तथा १८५७ की क्रांति के सूत्रधार पेशवाओं के वंशज आज कहाँ हैं, क्या हैं ?
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