उफ! आडवाणी, डा. जोशी का इतना बुरा वक्त ?



आज के “नया इंडिया” समाचार पत्र में श्री हरिशंकर जी व्यास का सम्पादकीय पढ़कर कुछ उनकी, कुछ अपनी बात कहने की इच्छा हो आई | 

व्यास जी ने लिखा है कि लालकृष्ण आडवाणी, डा मुरलीमनोहर जोशी के पाए यदि नहीं होते, इन्होंने आगे नहीं बढाया होता तो न भाजपा आज वाले मुकाम पर होती और न नरेंद्र मोदी आज प्रधानमंत्री पद पर बने होते। यदि आडवाणी का वीटो नहीं होता तो मोदी का न केवल मुख्यमंत्री पद जा रहा था बल्कि फिर एजेंसियों-कोर्ट-कचहरी में वह हुआ होता जिसकी कल्पना रोंगटे खड़े कर सकती है। इसलिए नरेंद्र मोदी के वक्त में आडवाणी बुढ़ापे की दारूण अवस्था के बीच मुकद्दमा लड़े, 2 साल लगातार सुनवाई में पेशी पर जाए तो किसे अच्छा लगेगा ?

जब स्वामी असीमानंद, प्रज्ञा भारती के लिए जांच एजेंसी एनआईए स्टेंड बदल सकती है, जांच-सबूत देख नए सिरे से निर्णय पर पहुंच सकती है तो सीबीआई ऐसा क्यों नहीं कर सकती थी ? कौन नहीं जानता कि 6 दिसंबर 1992 के दिन अयोघ्या में जो कुछ हुआ, उसकी किसी ने योजनां नहीं बनाई थी | बाबरी ढाँचे का ध्वंस स्वंयस्फूर्त हिंदू ज्वालामुखी का उबला लावा था था। हकीकत में तो उस दिन आडवाणी, संघ और भाजपा सब लुटेपिटे थे। इसलिए कि उनकी राजनीति और रणनीति के अनुसार नहीं हुआ था ।

व्यास जी के लेखन का लब्बोलुआब यह है कि आज अगर दिल्ली में नरेंद्र मोदी-अमित शाह की सत्ता है और उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की धर्मध्वजा फहरा रही है, तो उसके मूल में जून 1989 में संपन्न हुई पालमपुर की भाजपा बैठक का वह प्रस्ताव है, जिसमें आडवाणी जी ने राममंदिर आंदोलन के संकल्प लिया था। उनका मानना था कि इससे बाद सोया हुआ हिन्दू समाज जागेगा, भाजपा जो कि दो सांसदों वाली औकात में पहुँच गई है, आगे बढ़ेगी | अब कोई इसे साजिश कहे तो कहे, पर उसका परिणाम आज का भारत है। 

तो क्या नरेंद्र मोदी, अमित शाह की सीबीआई को सुप्रीम कोर्ट में खम ठोककर यह दो टूक स्टेंड नहीं लेना चाहिए था कि साजिश की बात फालतू है, मुकद्दमे लायक साक्ष्य नहीं है । सोचने वाली बात यह है कि सीबीआई जब निर्लज्जता पूर्वक दसियों मामलों में सरकारी तोते की तरह काम करती रही है तो आखिर वह आडवाणी, डा जोशी, उमा भारती आदि पर मुकद्दमा चलाने की जिद्द क्यों किए रही? उसकी जिद्द के कारण ही सुप्रीम कोर्ट को फैसला देना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट ने वही किया जो उसका फर्ज है। आखिर जब भारत सरकार, उसकी एजेंसी सीबीआई की अपील है कि साजिश थी, मुकद्दमा चलना चाहिए तो देश की सर्वोच्च अदालत कैसे कह दे कि यह फालतू बात है ? साजिश के साक्ष्य सच्चे है या झूठे, यह तो अभी निचली अदालत को देखना है।

सरकार और भाजपा कहती रहे कि यह सब सामान्य बातें हैं | मुक़दमा दशकों से चल रहा था चलता रहेगा । उमा भारती पहले भी मंत्री थी आज भी मंत्री है। कल्याणसिंह अभी राज्यपाल है सो अदालत ने कहा ही है कि जब वे राज्यपाल पद से रिटायर हो तब उन पर आरोप तय हो। किन्तु क्या राष्ट्रपति चुनाव में आडवाणी जी को भाजपा अपना उम्मीदवार बनाएगी, यह एक बड़ा सवाल है | क्योंकि संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप कहते हैं कि इन नेताओं के खिलाफ पहले से भड़काऊ भाषण का मामला पेंडिंग था और अब सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद गिराए जाने की साजिश के आरोप में भी केस चलाने को कहा है तो ऐसे में यह मामला सिर्फ नैतिकता का है। जहां तक कानून का सवाल है तो संविधान का बेसिक रूल यह है कि हर व्यक्ति कानून के सामने तब तक निर्दोष है जब तक कि वह दोषी करार नहीं दिया जाता। ऐसे में इन नेताओं के खिलाफ जो भी आरोप हैं, अभी ट्रायल का विषय हैं और ट्रायल के बाद यह तय होगा कि ये दोषी हैं या नहीं। 

तो कुल मिलाकर आडवाणी जी को राष्ट्रपति बनाने में कोई कानूनी अड़चन नहीं है | हाँ अगर नहीं बनाया जाता, तो अवश्य साफ़ तौर पर माना जाएगा कि उनके खिलाफ साजिश हुई है | अन्यथा तो राजनीति में विश्वासघात, कुटिलता और काईयाँपन आम बात है | बूढे लालकृष्ण आडवाणी की दारूण दशा पर कोई दो आंसू नहीं बहाने वाला | व्यास जी ने आज लिखा है, कल किसी और विषय पर कलम चलाएंगे | पर बहुत बुरा होगा। 

सत्ता का कल्पवृक्ष साकार हो,
सर पर चढ़ा अंहकार हो ?
अर्जुन न एकलव्य, गुरूदक्षिणा कहाँ,
बस अब तो कुर्सी का व्यापार हो |


साभार आधार – नया इंडिया

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें