डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी की महानता का तटस्थ आंकलन |

संविधान निर्माण हेतु गठित की गई प्रारूप समिति के माननीय सदस्य 

आज की पीढी को जहाँ एक ओर स्वतंत्रता प्राप्ति के समय घटित घटनाओं की जानकारी होना ही चाहिए, वहीं साथ साथ तत्कालीन महापुरुषों की महानता का तटस्थ आंकलन भी करना चाहिए | आखिर कितने महान थे वे ? महान थे भी या नहीं ? कहीं ऐसा तो नहीं है कि यह महानता उन पर जबरदस्ती लादी गई हो ? आदि आदि |

आईये स्वतंत्र भारत के संविधान और डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी पर चर्चा करते हैं | आज़ाद होने के बाद संविधान सभा के सदस्य ही प्रथम संसद के सदस्य बने थे। जुलाई 1945 में द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद ब्रिटेन में एक नयी सरकार का गठन हुआ। इस नयी सरकार ने भारत के संबन्ध में अपनी नई नीति की घोषणा की तथा भारत की आज़ादी के प्रश्न का हल निकालने के लिए ब्रिटिश कैबिनेट के तीन मंत्री तत्कालीन समय में भारत भेजे गए। 

उसी समय भारत के राज्यों की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा संविधान सभा के सदस्य चुने गए | इस सभा ने अपना कार्य 9 दिसंबर 1947से आरम्भ किया । संविधान सभा में उस समय के सभी राजनैतिक दलों व समाज के हर वर्ग का प्रतिनिधित्व था | संविधान सभा में कांग्रेस के पं जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, मौलाना अबुलकलाम आज़ाद, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, आचार्य जे.बी. कृपलानी, पं. गोविंद बल्लभ पंत, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टण्डन, बालगोविंद खेर, के. एम. मुंशी तथा टी. टी. कृष्णामाचारी सम्मिलित थे | 

गैर कांग्रेसी सदस्यों के रूप में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी, एन. गोपालास्वामी आयंगर, पं. हृदयनाथ कुंजरू, सर अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर, टेकचंद बख्शी, प्रो. के. टी. शाह, डॉ. भीमराव अम्बेडकर तथा डॉ. जयकर सम्मिलित हुए | महिला सदस्य के रूप में सरोजिनी नायडू व श्रीमती हंसा मेहता को लिया गया | जबकि जयप्रकाश नारायण व तेजबहादुर सप्रू ने संविधान सभा की सदस्यता लेने से ही इंकार कर दिया | अनुसूचित जाति वर्गों से तीस से अधिक सदस्य इस सभा में शामिल थे। सच्चिदानन्द सिन्हा इस सभा के प्रथम सभापति नियुक्त किये गए थे। किन्तु उनकी मृत्यु हो जाने के बाद डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को सभापति निर्वाचित किया गया।

संविधान सभा ने 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन में कुल 166 दिन बैठक की। सभा की बैठकों में प्रेस और जनता को भी स्वतंत्रता से भाग लेने की छूट प्राप्त थी।संविधान सभा ने कुछ समितियों का भी गठन किया | नियम समिति, संचालन समिति के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, संघ शक्ति समिति, संघ संविधान समिति, राज्य समिति के अध्यक्ष प.जवाहरलाल नेहरू, प्रांतीय संविधान समिति व परामर्श समिति के अध्यक्ष सरदार वल्लभ भाई पटेल, प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अम्बेडकर, झंडा समिति व मूल अधिकार उपसमिति के अध्यक्ष जे.बी. कृपलानी, सर्वोच्च न्यायालय समिति के अध्यक्ष एस. वारदाचारियार तथा अल्पसंख्यक उपसमिति के अध्यक्ष एच. सी. मुखर्जी को बनाया गया |

इन समितियों में अध्यक्ष के अतिरिक्त अन्य सदस्यों का भी चयन किया गया | उसी क्रम में प्रारूप समिति में अध्यक्ष डॉ. भीमराव अम्बेडकर के साथ एन. गोपालास्वामी आयंगर, अल्लादी कृष्ण स्वामी अययर, के.एम. मुंषी, मोहम्मद सादुला, एन. माघवराय बी.एल. मित्तर, तथा डी.पी खेतान को सदस्य बनाया गया | बी. एन. राव संविधान सभा के वैधानिक सलाहकार थे | 1948 में डी.पी खेतान की मृत्यु हो जाने पर टी.टी. कृष्णमाचारी को उनके स्थान पर सदस्य बनाया गया |

प्रारूप समिति ने संविधान के प्रारूप पर विचार विमर्श करने के बाद 21 फरवरी, 1948 ई. को संविधान सभो को अपनी रिपोर्ट पेश की |

संविधान सभा में संविधान का प्रथम वाचन 4 नवंबर से 9 नवंबर, 1948 ई. तक चला | संविधान सभा के सदस्यों के सुझावों पर अमल करते हुए अपेक्षित परिवर्तन पश्चात् दूसरा वाचन 15 नवंबर 1948 ई० को प्रारम्भ हुआ, जो 17 अक्टूबर, 1949 ई० तक चला | इस बार भी विचार विमर्श में कुछ नए सुझाव आये, जिन्हें जोड़कर संविधान सभा में संविधान का तीसरा वाचन 14 नवंबर, 1949 ई० को प्रारम्भ हुआ जो 26 नवंबर 1949 ई० तक चला और संविधान सभा द्वारा संविधान को पारित कर दिया गया | इस समय संविधान सभा के 284 सदस्य उपस्थित थे |  

उसके प्रारूप पर हस्ताक्षर करते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने संवैधानिक सलाहकार रहे बी. एन. राव को विशेष रूप से धन्यवाद देते हुए कहा कि आपके द्वारा प्रदान की गई जानकारियों की मदद से ही अन्य सदस्य अपने कर्तव्य को पूरा कर पाये हैं | 

अब इस राजनीति को क्या कहा जाए कि संविधान रचना का पूरा श्रेय केवल और केवल डॉ. अम्बेडकर जी को दिया जाता है | प्रारूप समिति के शेष सात सदस्य तथा संविधान सभा के 299 सदस्यों की क्या कोई भूमिका ही नहीं थी ? प्रारूप समिति के अध्यक्ष का निसंदेह महत्व है, किन्तु उतना ही जितना पीठासीन अधिकारी का होता है या लोकसभा में लोकसभा अध्यक्ष का होता है | अब सवाल उठता है कि इतने भर से क्या कोई महामानव हो सकता है ?

आईये इस प्रश्न का उत्तर तलासने के लिए डॉ. बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर के जीवन चक्र पर एक विहंगम दृष्टि डालें –

शुरू करते हैं बाबा साहेब के दादाजी से, जो 1860 में अंग्रेज़ो की सेना में सिपाही थे। वेतन था 9 रुपये मासिक । सेवा निवृत्ति के पश्चात अंतिम तनख्वाह का 70% पेंशन भी मिली ही | दादाजी ने उनके पिताजी को पढाया लिखाया, योग्य बनाया | उसके बाद अंग्रेजी और मराठी में डिग्रीधारी रामोजी मालोजी अंग्रेज़ो की फौज में सूबेदार नियुक्त हो गए | अंग्रेजी पर अच्छा अधिकार, तथा ऊपर से महू की सैनिक छावनी में नियुक्त, सोच सकते हैं न, क्या रुतबा रुआब रहा होगा साहब का | आज भी अगर कोई अच्छी अंग्रेजी बोल ले लिख ले तो उसका वाहन जमीन से चार अंगुल ऊपर उड़ने लगता है, आज से 125 वर्ष पहले आप समझ सकते है अंग्रेजी बोलने वालों का कितना सम्मान होगा। 

पढेलिखे रामोजी ने अपने परिवार के सभी बच्चों की शिक्षा अंग्रेजी माध्यम में और सरकारी विद्यालयों में ही करवाई। सेना में भारतीय सूबेदार होने के कारण उनके संपर्क बहुत अच्छे थे। कुछ पिता का दबदबा और संपर्क सम्बन्ध तो कुछ बाबा साहब की योग्यता, बाबा साहेब को तीसरी कक्षा से ही कोल्हापुर महाराज से 5 रुपया मासिक की छत्रवृत्ति मिलने लगी थी। स्व० रामो जी सकपाल 1894 में सेवा निवृत्त हुए और 1898 में उन्होंने दूसरा विवाह रचा लिया, और मुम्बई में आकर नोकरी करने लगे। यहाँ बाबा साहेब एलफिन्सटन रोड के सरकारी विद्यालय में पढ़े। 1913 मे रामोजी का देहांत हुआ और इसी वर्ष बड़ोदा नरेश से बाबा साहेब को 11.50 ब्रिटिश पाउंड मासिक की छात्रवृत्ति मिलने लगी । बैसे भी 1908 से ही उन्हें बड़ोदा महाराज से 25 रुपये मासिक की छात्रवृत्ति पहले से मिल ही रही थी। 

1917 में उन्हें बड़ोदा महाराज का मिलिट्री सेक्रेटरी बनाया गया। 1918 में वो मुम्बई विश्वविद्यालय में पोलिटिकल इकॉनमी के प्रोफेसर बन गए । 1919 के बाद उन्होंने अपनी राजनैतिक पारी शुरू की, उसमें जो कीर्तिमान उन्होंने बनाए, वह सबके सामने है। सचमुच बहुत संघर्ष करना पड़ा था बेचारे बाबा साहब को | 

उनकी शैक्षणिक योग्यताएं तो देखिये –

B.A., M.A., M.Sc., D.Sc., Ph.D., L.L.D., D.Litt., Barrister-at-La w. B.A.(Bombay University) Bachelor of Arts, MA.(Columbia university) Master Of Arts, M.Sc.( London School of Economics) Master Of Science, Ph.D. (Columbia University) Doctor of philosophy , D.Sc.( London School of Economics) Doctor of Science , L.L.D.(Columbia University) Doctor of Laws , D.Litt.( Osmania University) Doctor of Literature, Barrister-at-La w (Gray's Inn, London) law qualification for a lawyer in royal court of England. Elementary Education, 1902 Satara, Maharashtra Matriculation, 1907, Elphinstone High School, Bombay Persian etc., Inter 1909, Elphinstone College, Bombay Persian and English B.A, 1912 Jan, Elphinstone College, Bombay, University of Bombay, Economics & Political Science M.A 2-6-1915 Faculty of Political Science, Columbia University,New York, Main-Economics Ancillaries-Soc iology, History Philosophy, Anthropology, Politics Ph.D 1917 Faculty of Political Science, Columbia University, New York, 'The National Divident of India - A Historical and Analytical Study' M.Sc 1921 June London School of Economics, London 'Provincial Decentralization of Imperial Finance in British India' Barrister-at- Law 30-9-1920 Gray's In London

ये सारी उपाधियाँ उन्हें किसके सहयोग से मिलीं ? बडौदा महाराज हों, चाहे कोल्हापुर नरेश, या अंग्रेज सेवक उनके पिताजी या दादा जी व वे स्वयं, स्वतंत्रता समर में उनकी भूमिका क्या ?
हाँ उनकी योग्यता असंदिग्ध थी और उनके विचार युगांतरकारी | वे भले ही कोई चुनाव नहीं जीते, किन्तु उन्होंने लोगों का दिल ऐसा जीता कि बस कहना ही क्या है | अब देखिये ना कि अनेक संगठन अपने नेताओं से अधिक डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी का नाम जपते हैं |

प्रणाम भारत की राजनीति |

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