दारा शिकोह के जीवन लक्ष्य, सर्वधर्म समभाव की आज सर्वाधिक आवश्यकता



31 मार्च 2017 को नई दिल्ली में अन्तराष्ट्रीय सांस्कृतिक अध्ययन केन्द्र द्वारा नौवां चमनलाल स्मृति व्याख्यान का आयोजन किया गया, जिसका विषय था - ‘‘ दाराशिकोह के विशेष संदर्भ में हिन्दू धर्म की समन्वयकता ’’| कार्यक्रम में बोलते हुए केन्द्रीय विद्युत राज्य मंत्री श्री पीयुष गोयल ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रूप में हमें वह मोरल अथारिटी मिली है जो हमें गलत रास्ते पर जाने से बचाती आई है। स्व. चमन लाल जी भी संघ के शीर्षस्थ मार्गदर्शक थे , जिनके सरल सहज व आत्मीय व्यवहार के कारण लोग केशव कुंज में उनसे मिलने खिंचे चले आते थे। इससे अधिक सादगी क्या होगी कि उन्होंने कभी प्रेस किये कपड़े नहीं पहने। चमन लाल जी में भक्ति , नैतिक मूल्यों की शक्ति तथा युक्ति का सामंजस्य था। संघ के विश्व विभाग के दायित्व का निर्वाह श्री चमन लाल जी ने पूर्ण निष्ठा व कुशलता से किया व विश्व को भारतीय विचार की ओर प्रवृत्त किया । 

श्री पीयुष गोयल ने दाराशिकोह को महान विद्वान व गंगा जमुनी तहजीब का नायक को निरूपित करते हुए कहा कि आज उनके विचारों की देश को बहुत आवश्यकता है। केन्द्र की मोदी सरकार ने दिल्ली की डलहौजी रोड़ का नामान्तरण दाराशिकोह मार्ग किया है तथा दाराशिकोह के विचार ‘ सबका साथ-सबका विकास ’ को अपना ध्येय वाक्य बनाया है ।

इस अवसर पर बोलते हुए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व निदेशक डॉ. के.के. मुहम्मद ने बताया कि मुगल काल में अकबर ने हिन्दू ग्रंथो का फारसी में अनुवाद करवाना आरम्भ किया। बाद में दाराशिकोह ने बहुत से उपनिषद् व अधिकतर हिन्दू धार्मिक ग्रंथों का फारसी में अनुवाद किया जिससे भारतीय ज्ञान व विचार विश्व में फैला।

राष्ट्रीय संग्रहालय के महानिदेशक डॉ. बी.आर मणि ने कहा कि यदि शाहजहां के बाद दाराशिकोह भारत के बादशाह बने होते तो भारत का इतिहास कुछ और होता। उन्होंने दाराशिकोह से जुड़े इतिहास के कई तथ्यों को कार्यक्रम में रखा। श्री सौमित्र गोखले ने भी इस विषय पर अपने विचार रखे।

इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहसरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबले , अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉ. मनमोहन वैद्य , अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्री सुनील आंबेकर , श्री बाल मुकुन्द पांडे , श्री श्याम परांडे , स्वर्गीय चमन लाल जी के परिवार के सदस्य तथा बड़ी संख्या में इतिहासवेत्ता व बुद्धिजीवी उपस्थित थे।कार्यक्रम का मंच संचालन श्री अमरजीव लोचव ने किया। अंत में धन्यवाद ज्ञापन प्रोफेसर कपिल कपूर ने प्रस्तुत किया।

यह तो हुआ कार्यक्रम का विवरण, अब आईये दारा शिकोह के विषय में कुछ और विस्तार से चर्चा करें –

शाहजहाँ के सबसे बड़े बेटे दारा शिकोह का जन्म 28 अक्टूबर 1615 ई. को हुआ तथा उसे 18 वर्ष की आयु में 1633 में युवराज भी घोषित कर दिया गया | उसे 1645 में इलाहावाद का, 1647 में लाहौर का तथा 1649 में गुजरात का शासक बनाया गया | 

इतिहासकार बर्नियर ने लिखा है कि दारा में अच्छे गुणों की कमी नहीं थी | वह मितभाषी, हाजिर जबाब, नम्र और दयालु इंसान था | वह अपना क्रोध जल्द ही शांत कर लेता था | बादशाह शाहजहाँ उसे बहुत पसंद करते थे, किन्तु उसके भाइयों के मन में उसके प्रति ईर्ष्या और द्वेष का भाव था |

दारा बहादुर तो था किन्तु साथ ही सूफीवाद व इस्लाम के हनफी पंथ का अनुयाई था | उसने अन्य धर्मों के तालमद, बाईबिल व हिन्दू उपनिषदों का भी गहन अध्ययन किया | वह हिन्दू योगी लालदास व मुस्लिम फकीर सरमद का समान आदर करता था | उसने अपना जीवन लक्ष्य रखा था सार्वभौमिक धार्मिक तथ्यों की मतभिन्नता दूर कर समन्वय का मार्ग खोजना | वह कुशल लेखक भी था | उसने सफीनात अल औलिया और सकीनात अल औलिया में सूफी संतों की जीवन गाथा लिखी | रिसाला ए हकनुमा और तारीकात ए हकीकत में उसने सूफी दर्शन की व्याख्या की | वेदान्त और सूफीवाद की तुलना करते हुए मजमा अल बहरेन नामक ग्रन्थ की रचना की | उसने 52 उपनिषदों का अनुवाद कर सीर ए अकबर ग्रन्थ लिखा | 

स्वाभाविक ही कट्टरपंथियों की निगाह में वह खटकने लगा | 1657 में जैसे ही बादशाह शाहजहाँ बीमार पड़ा उसके भाईयों औरंगजेब और मुराद ने उसे धर्म द्रोही घोषित कर उसके खिलाफ जंग छेड़ दी | दारा शिकोह को जान बचाकर भागना पड़ा | शाहजहाँ के समर्थन के बाबजूद पहले ग्वालियर के नजदीक धर्मंट के युद्ध में तथा बाद में आगरा के पास सामूगढ़ में उसे करारी शिकस्त मिली | थका हारा दारा आगरा पिता के पास पहुंचा तो औरंगजेब ने किले की घ्रेरेबंदी कर पानी की आपूर्ति भी रुकवा दी | यह बादशाह शाहजहाँ के खिलाफ खुली जंग थी | तीन दिन प्यास से आजिज आये बादशाह ने किले के दरवाजे खुलवा दिए | औरंगजेब ने उसे कैद कर लिया, किन्तु दारा वहां से भागने में सफल रहा |

शरणार्थी की तरह यहाँ से वहां भागते दारा पंजाब, कच्छ और गुजरात में भटकता रहा | अप्रैल 1659 में जैसे तैसे बनाई हुई सेना के साथ दारा ने राजस्थान के दौराई में औरंगजेब का फिर सामना किया, किन्तु एक बार फिर पराजित होकर जान बचाने को भागा | उसने दादर के अफगान सरदार जीवन खान के यहाँ शरण ली, किन्तु वह दगावाज निकला और उसने धोखे से दारा को उसके बेटे बेटियों के साथ औरंगजेब के सुपुर्द कर दिया | बंदी दारा को पहले तो भिखारी की पोशाक पहनाकर पूरे शहर में घुमाया गया, फिर मुल्ला मौलवियों की अदालत में उस पर धर्मद्रोह का मुक़दमा चला | मुकदमे का फैसला तो पहले से ही तय था | उसका सर कलम कर मौत के घाट उतार दिया गया | दारा की मौत की दो तारीखें मिलती हैं | एक तो 30 अगस्त 1659 और दूसरी 9-10 सितम्बर 1659 | काश औरंगजेब के स्थान पर दारा शिकोह बादशाह बना होता तो शायद आज हिन्दू मुसलमानों की वास्तविक गंगा जमुनी तहजीब दिखाई देती | लेकिन जो पूरी दुनिया में नहीं हुआ, वह भारत में कैसे होता ?

साभार आधार – डॉ. राधेश्याम द्विवेदी का आलेख

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