भारत का असली इतिहास जिस से आज तक अनभिज्ञ है भारतवासी

इतिहास में कई घटनाएं ऐसी हैं जो एक दूसरे की पुनरावृत्ति के सामान प्रतीत होती है, और यदि समान घटनाओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जाये तो इन घटनाओं का प्रभाव और भी अधिक स्पष्ट हो जाता है !  छत्रपति शिवजी के पुत्र छत्रपति शंभा जी और शहीदेआजम भगत सिंह के जीवन का तुलनात्मक अध्ययन किया जाये तो कई रोचक समानताएं मिलती है !

जब शिवाजी को औरंगजेब ने बंदी बनाया था तब शंभा जी भी उनके साथ ही थे, एक ओर कुटिल अत्याचारी की कुटिलता तो दूसरी ओर स्वराज के लिए संघर्षरत एक आदर्श चरित्र, शंभा जी बचपन से ही कई सैन्य अभियानों में शिवाजी के साथ रहे, षड़यंत्र, रण नीति, युद्ध कौशल इस सभी को समझते हुए ही शंभा जी बड़े हुए थे, 1680 में शिवाजी की अचानक मृत्यु के बाद 1681 में शंभा जी ने सत्ता संभाली, ये मात्र सत्ता ही नहीं थी वरन हिंदवी स्वराज की वो जिम्मेदारी थी जिसका स्वप्न शिवाजी ने देखा था !

भगत सिंह को भी स्वराज की प्रेरणा विरासत में ही मिली थी, उनके दादा जी, पिता जी, दोनों चाचा सभी स्वतंत्रता संग्राम में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते रहे, भगत सिंह की माता जी और चाची जी ने उन्हें स्वतंत्रता संग्राम की कई किस्से कहानियां सुनाकर पाला था, इन परिस्थितियों का नन्हे भगत पर इतना प्रभाव था कि वो बचपन में ही खेतों में बंदूकें उगाने की चाह रखता था, जलियाँ वाला बाग काण्ड ने भगत सिंह को अंदर तक झंकझोर दिया और 12 साल के भगत सिंह ने तभी उस बाग की मिट्टी को माथे पर लगाकर प्रण लिया की इन अत्याचारी अंग्रेजों से इस कुकृत्य का बदला लेकर रहूँगा !

भारत माता को अत्याचारी अंग्रेजों से मुक्त कराने का जो संकल्प भगत सिंह ने बचपन में लिया था ऐसा ही हिन्दवी स्वराज का संकल्प शंभा जी के जीवन में विरासत से ही मिला था ! दादा दादी की कहानियां, परिवार का परिवेश और आदर्शों की प्रेरणा बच्चों के जीवन पर बहुत प्रभाव डालती हैं  !  शंभा जी और भगत सिंह भी ऐसे ही परिवेश से निकले थे !

उन दिनों औरंगजेब ने अपने पुत्र मो. अकबर को किसी युद्ध की जिम्मेदारी देते हुए राजपुताना भेजा, परंतु यहाँ के राजाओं ने उसे सत्ता का लालच देकर अपने साथ मिला लिया और औरंगजेब के विरुद्ध विद्रोह के लिए उकसा दिया, परंतु जल्द ही औरंगजेब ने षडयंत्रों से राजपूताने में फूट डाल दी और मो. अकबर अपनी जान बचा कर भाग निकला, मो. अकबर ने कई राजाओं से शरण मांगी परंतु असफल रहा क्योंकि इसे शरण देने का सीधा अर्थ औरंगजेब से दुश्मनी मोल लेना था ! परंतु शंभा जी ने इसे शरण देकर औरंगजेब को खुली चुनोती दे डाली ! शंभाजी यहीं नहीं रुके उन्होंने गोलकुंडा और औरंगाबाद को आक्रमण कर मुग़लों से छीन भी लिया, अब औरंगजेब तिलमिला उठा ! शिवाजी की मृत्यु के बाद उसे ऐसी चुनोती की उम्मीद नहीं थी ! औरंगजेब ने अपना सारा ध्यान पूरे हिंदुस्तान से हटाकर सिर्फ मराठाओं पर केंद्रित कर लिया और युद्ध पर युद्धों का क्रम चल पड़ा ! शंभा जी ने 1681 से 1689 तक छोटे बड़े कुल 114 युद्ध लड़े और सभी में अपने युद्ध कौशल से विजय पाई ये युद्ध केवल मुग़लों से ही नहीं अंग्रेज और फ्रांसिसियों से भी हुए सभी में शंभा जी ने विरोधियों को ये बता दिया की हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा में कितनी शक्ति है !

शंभा जी के युद्ध कौशल का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने न केवल तलवार और अस्त्र शस्त्रों के आकार प्रकार में परिवर्तन किया बल्कि दोनों हाथों से 4-4 फुट की दो धारी तलवारों से लड़ने की एक पुरानी मार्शल आर्ट मर्दानी खेल को अपने सैन्य प्रशिक्षण में अनिवार्य किया ! बड़ा ही रोचक तथ्य है कि रानी लक्ष्मी बाई भी मर्दानी खेल की सिद्धस्थ थी !

कल्पना कीजिए एक दो धारी तलवार दोनों दिशाओं से वार करती थी तो दो तलवारों से लड़ते हुए सैनिक का दुश्मनों के पास कोई जवाब नहीं होता होगा ! ऊपर से पहाड़ी इलाका और छापामार युद्ध शंभा जी को सीधे युद्ध में औरंगजेब कभी नहीं हरा पाया ! ऐसी घटना विश्व इतिहास में बहुत कम होंगी जब लाखों की संख्या वाली फ़ौज 8 सालों के लगातार युद्ध के बावजूद भी प्रतिद्वन्दी का बाल भी बांका नहीं कर पाई ! औरंगजेब अब कमजोर हो गया है ऐसी खबरें आम होचली थी ! जब जब तानाशाह और अत्याचारीयों को प्रतिकार मिला तब तब इन्होंने आम जनता पर अपने अत्याचार और बढ़ा दिए कई मंदिरों में तोड़फोड़ प्रारम्भ कर दी गई, कई तरह के कर लगाये गए, ताकि एक धार्मिक दबाव शंभा जी पर बनाया जा सके, और षड़यंत्रो का एक दौर प्रारम्भ हुआ !

लगभग ऐसी ही चुनोतियाँ भगत सिंह और उनके साथियों ने अंग्रेजों के सामने रखी थी, सांडर्स की हत्या जहाँ अंग्रेजों को प्रत्यक्ष चुनोति थी वहीं काकोरी काण्ड अंग्रेजों के सरकारी खजाने में सेंध के समान ही था, अत्याचारी अंग्रेज इन क्रांतिकारियों से इतने चिढ़ गए थे कि वो इसका बदला लेने के लिए किसी भी हद तक गिर सकते थे, ऊपर से असेम्बली हॉल में बम फेक कर ब्रिटेन की बहरी सरकार के कान बजा दिए !

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए क़ातिल में है

भगत सिंह को भी इस क्रांति का अंजाम पता था, फिर भी वो अपने बाज़ुओं के ज़ोर से पूरी दुनियां को अत्याचारियों के अत्याचार की हद दिखाना चाहते थे ! शंभा जी भी आखिर अपने साथियों द्वारा किये विश्वास घात का शिकार हुए एक गुप्त मार्ग से जाते समय शंभा जी को 200 अंगरक्षकों के साथ मुग़ल सेना ने घेर लिया शंभा जी यहाँ से भी बच निकले परंतु कुछ ही दिनों में पुनः पकड़ लिए गए !

जब जब अत्याचारी शासकों ने अपने प्रतिद्वंद्वीयों को पकड़ा है, तब तब ही दुनियां ने इन अत्याचारियों की सनक और क्रूरता की हद देखी है, शंभा जी मात्र एक साथी के साथ बंदी बना लिये गए थे, इन्हें कोड़ो से मारा गया बेड़ियों में जकड कर हाथी के पीछे बाँधा गया, फिर कई दिनों तक घसीटते हुए औरंगजेब के पास ले जाया गया, रस्ते में भी इन्हें बहुत अपमानित किया गया, इन पर थूका गया, थकने पर भालों से घोपा जाता ! परंतु अभी भी ज़ुल्म की इंतिहा बाकी थी, औरंगजेब ने कहा कि मै शंभा जी की आखों में ख़ौफ़ देखना चाहता हूँ अब शंभा जी को औरंगजेब के सामने लाया गया जब इनकी आखों से पट्टी हटाई गई तो शंभा जी ने औरंगजेब को ऐसे घूरा जैसे शेर अपने शिकार की आखों में आँखे डाल कर घूर रहा हो, औरंगजेब ने शंभा जी को 4 शर्ते मानने पर जीवन दान की बात कही उसकी शर्ते थी, अपने किलों को मुग़लों के हवाले करना, अपने ख़ज़ानों को मुगलों को सौप दें, अपने गुप्तचरों को पकड़वाए,और शंभा जी इस्लाम स्वीकार कर ले, अब उत्तर देने की बारी शंभा जी की थी मुँह से कपड़ा हटते ही शंभा जी ने औरंगजेब को उसी की सभा में सूवर कहकर सिंह के छाबे से दो दो हाथ करने की चुनौती दे डाली, औरंगजेब आग बबूला हो गया तुरंत ही शंभा जी की जीभ काट दी गई, उनके नाख़ून खींच लिए गए और तो और उनकी आँखों को गर्म लोहे की सलाखों से फोड़ दिया गया !

फिर भी औरंगजेब का गुस्सा शांत नहीं हुआ उसने हुक्म दिया कि शंभा जी के टुकड़े टुकड़े करके नदी में फेक दो और तो और दिन भी ऐसा चुना गया हिन्दू नव वर्ष के पूर्व अमावस्या का, ताकि हिन्दू नव वर्ष को अभिशाप के रूप में याद रखें ! फागुन अमावस्या जिसे पूर्वी भारत में चैत्र अमावस्या के रूप में जाना जाता है 11 मार्च 1689 को शंभा जी की हत्या कर दी गई और उनके विक्षिप्त शव के टुकड़ों को नदी में फेक दिया गया !

भगत सिंह को भी जेल में कई यातनाएं दी गई मानवता की हद तो तब हो गई जब निर्धारित तिथि से पूर्व ही उन्हें फाँसी दे दी गई उनके शव को भी शत् विक्षिप्त कर नदी में बहा दिया गया ! भगत सिंह को भी मार्च में और हिन्दू नव वर्ष में नवरात्रों के दौरान ही फाँसी पर चढ़ा दिया गया था !

लोगों ने शंभा जी के शरीर के टुकड़ों को नदी से खोज खोज कर निकाला फिर पुनः विधि विधान से उनकी अंत्येष्ठि की गई लगभग ऐसा ही भगत सिंह और उनके साथियों के शवों के साथ भी किया गया था और बाद में उनकी भी पुनः अंत्येष्ठि की गई !

औरंगजेब ये समझ रहा था कि शंभा जी के बाद अब मुग़ल सल्तनत का हिंदुस्तान में निर्विरोध साम्राज्य स्थापित हो जायेगा परंतु हुआ इसके विपरीत शंभा जी के बाद मराठा और राजपूताने के कई राजा औरंगजेब से बदला लेने के लिए या तो एक हो गए या एक कर लिए गए अगले कुछ ही वर्षों में बाबर द्वारा स्थापित मुग़ल सल्तनत के पैर उखड़ने लगे, इसका परिणाम ये हुआ कि सन् 1760 के आते आते बंगाल और कुछ पूर्वी हिस्से को छोड़ कर पूरे भारत पर केसरिया ध्वज लहराने लगा !

ऐसा ही परिणाम भगत सिंह की मृत्यु के बाद भी आये, जन आक्रोशित युवाओँ का एक ऐसा सेलाब भारत में आया की वो अंग्रेज जिनके साम्राज्य में कभी सूर्य अस्त नहीं होता था उनकी जड़े भारत में हिल गई, हिंसक या अहिंसक जितने भी आंदोलन भारत में 1931 के बाद हुए उसमे आम लोगों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने लगे, अंग्रेजों ने सोचा भी नहीं था की अगले 16 सालों में ही उन्हें भारत छोड़ना पड़ेगा ! दोनों की शहादत ने ये बात सिद्ध कर दी कि बलिदानियों के बलिदान कभी निष्फल नहीं जाते है, उनके बलिदान के बाद अपने आप को मातृभूमि पर न्योछावर करने वालों का सैलाब आ जाता है !
|| वन्देमातरम् ||


साभार – वैदिक भारत डॉट इन

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