यूपीए सरकार ने किस तरह से एक एक्ट के जरिये सेना के हाथ बांध दिये ?



आम तौर पर हम लोग कश्मीर समस्या के लिए नेहरू जी को दोषी ठहराते हैं | लेकिन सचाई यह है कि 1947 से आज तक लगातार गलतियाँ दर गलतियाँ की गई हैं | आज किसी वीडियो में सेना के जवान को थप्पड़ और लात खाते देखकर आपका खून खौलता है, स्वाभाविक भी है | लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसका कारण क्या है ? कश्मीर वादी में नौजवान तो नौजवान, महिलाओं और छोटे छोटे बच्चों की भी हिम्मत हो जाती है, कि वे सैनिकों को गालियाँ दें, उन पर पत्थर फेंके, आखिर सेना इतनी कमजोर कैसे हो गई | सचाई यह है कि 2010 में मनमोहन सरकार के एक फैसले ने सेना को केंचुआ बना दिया | यूपीए सरकार ने एक एक्ट के जरिये सेना के हाथ बांध दिये ? 

मनमोहन सरकार ने आतंकवादियों के हितों को ध्यान में रखकर कश्मीर में सदभावना_एक्ट लागू किया, तथा उसमें ऐसे नियम बनाए जिनके अनुसार हमारे फौजियो को गुनाहगार बनाना आसान हो गया | देखिये क्या हैं वे नियम -

1--जब तक आंतकवादी फायर न करे तब तक फायर नहीं करना है।
( मतलब फायर के अलावा कुछ भी करे, पत्थर फेंके थप्पड़ मारे डंडे मारे मगर फोर्स चुपचाप पिटती रहे | नतीजा आप देख ही रहे हैं कि कश्मीरी लड़के सेना को थप्पड़ और पैर मार रहे )...
2-- मारे गए आंतकवादी के पास हथियार होंना जरूरी है,और हथियार हो भी तो भी सैनिक तब तक फायर नही कर सकता जब तक कि आतंकवादी फायर न करे
( मतलब सेना आतंकवादी के फायर करने का वेट करे और अगर आतंकवादी मारा जाता है और मरने के बाद कोई उसका हितैषी हथियार छुपा दे तो उसे आतंकवादी घोषित न करकेसीधा सादा कश्मीरी जवान घोषित किया जा सकता है और सैनिकों के ऊपर केस किया जा सकता है, और ये बात सबको पता है कि कश्मीर की लोकल पुलिस भी आतंकवादियों से मिली होती है, जिनके लिए हथियार छुपाना कोई मुश्किल नही होता)...
3--यह सेना की जिम्मेदारी है कि वह स्थानीय अदालत में ये साबित करे कि मारा गया व्यक्ति आतंकवादी ही था | ( ज्ञातव्य है कश्मीर की स्थानीय अदालत मेंना बेगानी ही होती है ) इतना ही नहीं तो आतंकवादी के पक्ष में उसके परिजन कोर्ट में सेना के खिलाफ रिट कर सकते है और अगर आतंकवादी, आतंकवादी साबित न हुआ तो सेना के जवानो पर कत्ल का केस चलता है ( मतलब कि एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा | आतंकवादी को मारने पर प्रोत्साहन की कम, सज़ा की संभावना ज्यादा हो तो कौन सरफिरा यह करना चाहेगा ? भला प्रूफ कहाँ से लायेंगे, क्या कैमरा आन करके रिकार्डिंग की जायेगी, कि देखो आतंकी ने गोली चलाई और जबाबी कार्यवाही में वह मारा गया )

नतीजा साफ़ है कि 2010 के इस एक्ट से आंतकवादी सुरक्षित और बेख़ौफ़ हो गए हैं | सबको पता है कि ये लोग खुले आम घूमते हैं और बच्चों को 500 रुपया देते है पत्थर मारने का...

आंतकवादियों के बच्चों की मुफ़्त पढाई और उसकी अगर 3/4 बीबियाँ है तो तीनो को पेंशन दिया जाता है और ये मन मोहन सिंह की सरकार का किया धरा है जो सेना के साथ आजकी सरकार भी भुगत रही है.

ये कांग्रेस के खोदे हुए गड्ढे है जिसका भुगतान हमारी सेना को करना पड़ रहा है.... 

एक तो 370, उस पर मामला यू एन ओ में, ऊपर से सदभावना के नाम पर आंतकवादियो की सुरक्षा ...

मोनी बाबा या सोनिया या और कांग्रेसी क्या सोच रखते थे ये सोच लो आप लोग ..

आज की मौजूदा सरकार अगर सद्भावना_एक्ट खत्म करें तो यही लोग चिल्लाएगे कि कश्मीरी अल्पसँख्यको पर जुल्म हो रहा है |

आंतकवादियो के परिजनों को सदभावना_पुनर्वास_सहायता के नाम से 7500 मासिक पेंशन मिलती है ....

इन सबको सुधारने में वक्त लगेगा और सुधार तभी होगा, जब जनमत का दबाब इतना बने कि कोई चूं भी न कर पाए ।

आईये यह दबाब बनाने की शुरूआत करें | एक मोदी को रोकने के लिए सब चोर डाकू इकट्ठे हो जाते हैं, तो देश की सज्जन शक्ति खुलकर सोनिया मनमोहन के काले कारनामे रद्द करने की मांग क्यों नहीं उठा सकती ? 

जानते हैं इस एक्ट का नतीजा क्या होता है ? एक बानगी देखिये -

*वो 30 अप्रैल 2010 का समय था!*

*स्थान था कश्मीर का मच्छिल सेक्टर!* 

*हमारी सेना का कर्नल डी के पठानिया कश्मीर में अपने जवानों की एक एक कर के अपनी आँखों के आगे वीरगति देख रहा था!*

*वो बेचैन भारत माँ का लाल हर दिन अपने हाथों से अपने किसी शूरवीर जवान का अंतिम संस्कार कर रहा था ।

*एक दिन उस से ना रहा गया!*

*30  अप्रैल 2010 को कर्नल पठानिया ने स्वयं को हर आदेश, हर बाध्यता, हर नियम से मुक्त कर डाला!*

*उसके साथ इस पावन अभियान में उसका अधीनस्थ मेजर उपेन्द्र आया! उसके साथ हवलदार देवेंद्र कुमार, लांस नायक लखमी व सिपाही अरुण कुमार ने सेना को तंग कर चुके शहज़ाद अहमद , रियाज़ अहमद व् मोहम्मद शफ़ी को अपने खुद के नियम और खुद के क़ानून से मार गिराया!*

*कर्नल पठानिया और मेज़र उपेन्द्र का खौफ़ हिमालय की घाटी में बन्दूक और तोपों की आवाज से भी ज्यादा गूँज गया! वहां खुद को आतंकी कहने वाला अपना हुलिया बदल कर बंदूक की जगह बुरका पहन कर घूमने लगा!*


*शांति के दूतों में छाया ये खौफ़ दुर्दांत आतंकी संगठन और उस समय की सत्ता के मालिक कांग्रेस को रास ना आया! फिर शुरू हुआ कर्नल पठानिया और मेज़र उपेन्द्र की अनंत प्रताड़ना का दौर!*


*रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने उनकी अपनी खाल से भी ज्यादा प्रिय वर्दी उतरवा कर उन्हें बर्खास्त कर दिया और याकूब के लिए रात में  12 बजे खुलने वाली कोर्ट ने मेजर उपेन्द्र, कर्नल डी के पठानिया और उन पाँचों जवानों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई!*

*फिर आतंकियों में छाया सारा खौफ़ घूम कर सेना में छा गया!*

*कश्मीर में घी के लड्डू बंटे!*

*वो सारे महावीर आज भी जेलों में हैं!*

*आतंकी बुरहान वाणी को पूरी दुनिया का मुसलमान बच्चा बच्चा जानता है!*

*पर  फ़ौजी कर्नल डी के पठानिया को कोई भी नहीं जानता!*

*कश्मीर  से गूँज रहा है कि बुरहान वाणी को वापस लाओ ।*

*क्या किसी में दम है ये कहने का कि कर्नल पठानिया और मेजर उपेन्द्र को मुक्त करो?*

 *।।भारत माता की जय।।*


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