वैज्ञानिकों ने भी माना – सात हजार वर्ष पहले अस्तित्व में था “रामसेतु”

ऐसा हमारी जिंदगी मैं कई बार होता है जब हम किसी विषय पर तब तक यकीन नहीं पाते, जब तक उसे अपनी देख ना लें ! धर्म और अध्यात्म से जुड़ी बहुत सी बातें भी इसी तरह की हैं ! जैसे रामायण मैं माता सीता को लंका से अयोध्या लाने के लिए भगवन श्रीराम की वानर सेना द्वारा बनाया गया पल ‘राम सेतु’ का क्या सच है वास्तव में कभी बनाया भी गया था या नहीं ?

यह दुनिया और हिन्दू धर्म मानने वालों के लिए एक बहुत अहम प्रश्न है ! ये न केवल धार्मिक और हिन्दू इतिहास बल्कि विज्ञान द्वारा भी इस प्रश्न का हल निकालने का पूरा प्रयास किया जा रहा है ! राम सेतु के अस्तित्व को लेकर विश्वभर में छिड़ी बहस के बीच राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने बड़ा खुलासा किया है। संस्थान के वर्तमान सलाहकार व पूर्व मुख्य वैज्ञानिक राजीव निगम के अध्ययन में दावा किया गया है कि राम सेतु करीब सात हजार साल पहले अस्तित्व में था।

इस निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए वैज्ञानिकों ने समुद्र के बढ़ते जलस्तर और विभिन्न सूक्ष्मजीवियों (माइक्रो आर्गनिज्म) के अवशेषों की कार्बन डेटिंग का सहारा लिया। इससे प्राप्त अवधि को वैज्ञानिकों ने रामायणकाल से भी जोड़ा तो दोनों की अवधि समान पाई गई। यह अध्ययन वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान में आयोजित की गई नेशनल जियो-रिसर्च स्कॉलर्स मीट में साझा किया गया।

राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान के सलाहकार राजीव निगम के मुताबिक राम सेतु की हकीकत का पता लगाने के लिए सबसे पहले रामायणकाल की सटीक अवधि जाननी जरूरी थी। इसके लिए उन्होंने अन्य शोधार्थी सरोज बाला के वाल्मीकि रामायण के आधार पर किए गए अध्ययन का सहारा लिया। अध्ययन में वाल्मीकि रामायण में दर्ज तारों की स्थिति का पता लगाकार प्लेनिटोरियम सॉफ्टवेयर से उस काल की अवधि निर्धारित की। यह अवधि करीब 7000 साल पुरानी पाई गई।

इसके बाद तब से अब तक समुद्र के जल स्तर में आए परिवर्तन की गणना की गई। पता चला कि तब से लेकर अब तक समुद्र का जल स्तर तीन मीटर तक बढ़ गया है। वर्तमान में राम सेतु के पत्थर पानी से इतने नीचे तक पाए गए। यानी तब राम सेतु के पत्थर सतह पर रहे होंगे और वह पुल की शक्ल में नजर आते होंगे।

प्रारंभिक अध्ययन में राम सेतु का पता चलने के बाद कार्बन डेटिंग का निर्णय भी लिया गया। राम सेतु के पत्थरों में मौजूद सूक्ष्मजीवी फोरामिनिफेरा, कोरल, ऊलाइट्स आदि के अवशेषों की कार्बन डेटिंग कराई गई। इनकी अवधि भी सात हजार साल पुरानी पाए जाने के बाद पूरी तरह स्पष्ट हो गया कि वाल्मीकि रामायण में दर्ज काल और राम सेतु के पत्थर एक ही अवधि को दर्शाते हैं।

वैज्ञानिक राजीव निगम के मुताबिक राम सेतु भारत के दक्षिण पूर्वी तट के किनारे रामेश्वरम द्वीप व श्रीलंका के उत्तर पश्चिमी तट पर मन्नार द्वीप के मध्य में चूना पत्थरों से बना है। इतिहास के प्रमाणों के अनुसार बताया जाता है कि इसकी लंबाई 30 किलोमीटर व चौड़ाई तीन किलोमीटर थी। 

क्या है रामसेतु ?? 

धर्म की मान्यताओं और कहानियो के अनुसार जब रावण सीता का हरण कर उन्हें लंका ले गया था तब श्रीराम ने वानरों की सेना की सहायता से समुद्र के बीच एक पुल का निर्माण किया था और इस पुल को ‘रामसेतु’ नाम दिया गया ! वर्तमान के युग में इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर "एडम्स ब्रिज" के नाम से भी जाना जाता है ! परन्तु इसी रामसेतु पुल से श्रीराम की पूरी वानर सेना गुजरी और रावण पर विजय हासिल की ! 

कहां बना है रामसेतु ?? 

वानर सेना द्वारा बनाया गया ये रामसेतु पुल इस समय में भारत के दक्षिण पूर्वी तट के किनारे रामेश्वरम द्वीप तथा श्रीलंका के उत्तर पश्चिमी तट पर मन्नार द्वीप के मध्य चूना पत्थर से बना है ! यदि आज के वैज्ञानिकों और की मानें, तो कहा जाता है कि एक समय था जब ये पुल भारत तथा श्रीलंका को आपस में जोड़ता था ! 

कहते है कि निर्माण के बाद इस पुल की लम्बाई 30 KM और चौड़ाई 3 Km थी ! ये आज के समय में भारत तथा श्रीलंका के इस भाग का पानी काफी गहरा है लेकिन फिर भी उस समय भगवान राम ने इस स्थान पर एक पुल बनाया था. !

क्या कहता है रामसेतु का इतिहास ? 

धार्मिक और हिन्दू इतिहास की माने तो मान्यता है कि भगवान राम ने सीता को लाने के लिए बीच रास्ते मैं आने वाले इस समुद्र को अपने चमत्कारी तीर से सूखा कर देने का सोचा लेकिन समुद्र देवता बोले, “हे प्रभु, आप अपनी सेना की मदद पत्थरों का एक पुल बनाएं ! मैं इन पत्थरों का वजन सम्भाल लूंगा !” इसके बाद वानर सेना झाड़ तथा पत्थर एकत्रित करने लगी ! पत्थरों को एक कतार में किस तरह से रखकर एक मजबूत पुल बनाया जाए इस पर कई योजनाएं भी बनाई गईं !

मान्यताओं के अनुसार रामसेतु को 1 करोड़ से ज्यादा वानरों द्वारा केवल 5 दिन में बनाया गया था, लेकिन इस पुल पर रखे पत्थर और उनका बिना किसी वैज्ञानिक रूप से जुड़ना आज तक हर किसी के लिए सवाल बना हुआ है !

कैसे बना पुल? 

धर्म ग्रन्थ रामायण के अनुसार रामसेतु पुल को नल एवं नील की मदद से बनाया गया था ! उनके स्पर्श से कोई भी पत्थर इस समुद्र में डूबता नहीं था ! ऐसे कई पत्थरों को रामेश्वर में आई सुनामी के दौरान समुद्र किनारे देखा गया था और आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि आज भी पानी में फिर से डालने पर यह पत्थर डूबते नहीं हैं, बल्कि तैरते है !



विज्ञान और वैज्ञानिको की माने तो ‘प्यूमाइस’ नाम का एक पत्थर होता है ! यह पत्थर मजबूत लगता है लेकिन फिर भी यह पानी में पूरी तरह से डूबता नहीं है, बल्कि तैरता रहता है ! कहते हैं यह पत्थर ज्वालामुखी के लावा से आकार लेते हुए बनता है ! ज्वालामुखी से बाहर आता हुआ लावा जब वातावरण से मिलता है तो उसमे ठंडी या उससे कम तापमान की हवा मिल जाती है ! यह गर्म और ठंडे मिल के ही इस पत्थर में कई तरह से छेद कर देता है, जो अंत में इसे एक स्पॉंजी प्रकार का आकार देता है !

प्यूमाइस पत्थर के छेदों में हवा होती है जो इसे पानी से हल्का बनाती है, जिस कारण यह डूबता नहीं है और पानी पर तैरता है लेकिन जैसे ही धीरे-धीरे इन छिद्रों में पानी भरता है तो ये पत्थर भी पानी में डूबना शुरू हो जाता है ! लोगो के हिसाब से शायद यह भी एक कारण है रामसेतु पुल के डूबने का !

नैशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस, नासा द्वारा रामसेतु की सैटलाइट से बहुत सी तस्वीरें ली गई हैं ! नासा का यह भी मानना है कि रामेश्वर से होकर मन्नार द्वीप तक एक पुल आवश्य बनाया गया था, लेकिन कुछ मील की दूरी के बाद इसके पत्थर डूब गए, लेकिन हो सकता है कि वे आज भी समुद्र के तलहटी निचले भाग पर मौजूद हों !


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