गौमाता के वध के विरोध स्वरुप आक्रोशित ओजपूर्ण कविता - आशुतोष "ओज" की दो नाली से



भावनाओ को शब्दों का रूप देकर आज कविता लिखी है,ये मेरा आक्रोश है, जो मेने व्यक्त किया है।क्योंकि हमारी मान्यता हमारी धार्मिक आस्था की प्रतीक गौ माता काटी जा रही है तब मेरे अंदर का हिंदुत्व मौन नही रह सकता,कुछ व्यक्त किये नही रह सकता।तो लीजिये मेरे मन के भाव मेरी एक नई कविता के रूप में।



हर युग मे जिसको पूजा, स्थान रहा सबसे ऊंचा,
रही सभी की गौ माता, वह मान दिया सबसे ऊंचा,
पाप बढे जब भी पृथ्वी पर, उसने गौ का रूप धरा,
तभी प्रभु ने श्री रामचंद्र बन, मनुज
 रूप अवतार धरा,



त्रेता में प्रभु रामचंद्र ने गाय रक्ष संकल्प लिया,
भवसागर को करने पार तभी मंत्र ये अल्प दिया,
गौ सेवा से मिटते पाप उदय पुण्य हो जाते है,
तभी तो नटखट कृष्ण रूप में प्रभु यही मिल जाते है,



काले अंग्रेजो ने देखो आज उसे झुठलाया है,
देखो माँ का भक्षण करने जी उनका ललचाया है,
मानव कभी नही हो सकते वह सारे तो पापी है,
जिनके पाप से हिलती धरती मानवता भी काँपी है,



नानक कृष्ण की पावन भूमि करके अब चीत्कार उठी,
गौ माता पे रखते खंजर उन सब को धिक्कार उठी,
जो भारत की मानबिंदु बच्चे बच्चे की माता है,
उसके मांस से बना बिरयानी, सार्वजनिक क्यूँ खाता है,



अंतर मन मे ज्वाल उठा है बाजू आज फड़कते है,
गौ भक्षण पर रोक लगाने, सीने आज धधकते है,
खुलेआम भारत की माता को उनने कैसे काटा,
गौ भक्तों की आस्था तोड़ी, मार दिया उनने चांटा,



रहे होंसले बढ़ते उनके पापी ने ललकारा है,
उनको केवल सबक सिखाना बस संकल्प हमारा है,
लाचारी के भाव को त्यागो राम नाम का जाप करो,
गौवध बंदी मांग उठाओ, सब मिलकर यह काम करो,



भारत मे जिसको रहना है उसको ये कहना होगा,
गाय हमारी माता है यही शब्द रटना होगा,
धूर्त और पाखंडी कोई नही आज ये कह सकता,
बो क्या उसका बाप भी भारत और नही अब रह सकता,



बहुत सह लिया किस्सा हमने नही और अब सह सकते,
दृश्य गाय को कटने बाला देख मौन न रह सकते,
विनती करता हु मोदी जी जल्द कड़ा कानून रचो,
और श्राप के भागी बनने से भी पहले आप बचो,



और अगर कानून बनाना आप के बस की बात नही,
तो फिर आपको छप्पन इंची कहलाने की बात नही,
किया भरोषा हर गौ सेवक उसका तो तुम मान धरो,
सबक सीखा दो हर हत्यारे इनका काम तमाम करो।



मेरा आग्रह है इसको मूल स्वरूप में अधिक से अधिक शेयर करके आगे बढ़ाने का कार्य करे।
आशुतोष शर्मा "ओज" कवि गौ सेवक

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