सुकुमा नक्सली हमला - आत्मावलोकन - जागरण की घंटी )



ऐसा लगता है कि हमारा देश प्राथमिकता तय करने में पिछड़ जाता है, या यूं कहा जाए कि हम यह अनुमान भी नहीं लगा पाते कि राष्ट्रीय क्षितिज पर छाये बादल वर्षा की फुहार लाने वाले हैं या बज्रपात करने वाले हैं | बस्तर के भोले भाले वनवासी हों या काश्मीर के नौजवान, जिन्हें देश और समाज की ताकत होना चाहिए था, वे विध्वंशक तत्वों के हस्तक बने हुए हैं | 

देश की रक्षा हेतु तैनात सैन्य बलों को इसकी सबसे ज्यादा कीमत चुकानी पड़ती है, और देश हुतात्मा सैनिकों की शहादत के प्रति सम्मान व्यक्त कर अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेता है, तो हमारे केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह कड़ी चेतावनी देकर | अभी सुकुमा में हुए नक्सली हमले के बाद राजनाथ सिंह जी ने जब यह चेतावनी दी कि नक्सली नेताओं ने भोलेभाले ग्रामीणों को सुरक्षा बलों पर हमले में सहयोगी बनाने का जो घिनौना कार्य किया है, उसकी उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ेगी, उससे इतना तो साफ़ है कि वे भी इस बात को समझ रहे हैं कि हिंसक अपराधियों और उनके हाथ का खिलौना बने सामान्य जन में अंतर है |

बस्तर के वनांचल में नक्सलियों ने वनवासियों का विश्वास जीता, उनका ब्रेनवॉश किया, और उन्हें समझाया कि माओवादी शासन उनकी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करेगा | मुक्ति उस शोषण से, जो लगातार व्यवस्था उनका कर रही है, या रोक नहीं पा रही है । आजादी के सत्तर दशक बाद भी अगर हमारी प्रजातांत्रिक व्यवस्था शोषण मुक्त समाज रचना नहीं बना पा रही, तो कसूर किसका है ?

यह तो हद ही है कि नक्सलवादियों की अगुवाई में आम वनवासी सुरक्षा बलों पर हमला करता है, उनकी ह्त्या करता है । इतना ही नहीं तो राज्य के राजनीतिक नेताओं की भी हत्यायें होती है । इक्का दुक्का नहीं – बार बार | आखिर क्यों और कैसे ?

सोशल मीडिया पर लगातार कलम चलाने वाले हम लोगों ने भी अपनी प्रतिक्रियाओं में बुनियादी कारणों को समझने की ओर कितना ध्यान दिया है ? एक 32 वर्षीय नौजवान नक्सली नेता कैसे आम वनवासी का दिलो दिमाग जीत लेता है, और उस इलाके का प्रतिनिधित्व करने वाले, वहां से जन प्रतिनिधि बनने वाले तथाकथित राजनेता उनका विश्वास नहीं जीत पाते । यहाँ ध्यान देने योग्य है कि नक्सली समर्थकों में बड़ी संख्या में निर्दोष ग्रामीण, खासकर वनवासी, शामिल हैं । 

कारण साफ़ है कि खनिज सम्पदा से भरपूर जंगलों को बामपंथियों ने विगत अनेक वर्षों से सप्रयास लक्षित किया है | उनके द्वारा की जाने वाली हिंसा की कटुतम निंदा करते हुए भी उनके समर्पण की प्रशंसा करनी होगी | नई दिल्ली या रायपुर में सरकार बनाना आसान है, किन्तु शोषित पीड़ित जन का दिल जीतना मुश्किल | उसके लिए स्वयं को खपाना होता है, जो नक्सलियों ने किया है और हमारे सुविधाभोगी राजनेता यह कर नहीं सकते |

क्या यह विचारणीय नहीं होना चाहिए कि स्वयं को उसी जमीन का बेटा कहने वाले "निर्वाचित" विधायकों और सांसदों के वास्तविक प्रभाव का स्तर क्या है? जबकि ये सभी निर्वाचन क्षेत्र आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। विभिन्न राजनैतिक दलों का प्रतिनिधित्व करने वाले कार्यकर्ता चुनाव तो जीतते रहते है, अपनी और अपनी सात पुश्तों का भविष्य तो सुरक्षित कर जाते हैं, लेकिन समाज के अंतिम छोर पर खड़े इन वनवासियों की आँख के आंसू कितने पोंछ पाते हैं ? उन निर्वाचन क्षेत्रों से जीतने वाले, उन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले जन प्रतिनिधियों को आत्म-परीक्षण करना चाहिए |

साथ ही अनुसूचित जनजाति वर्ग के उन शासकीय अधिकारियों को भी आत्मावलोकन करना चाहिए, जो केवल उस समाज के होने की बजह से आरक्षण पाते हैं और सुख पूर्वक सम्पन्नता का जीवन बिताते हैं | क्या यह उन लोगों का दायित्व नहीं कि वे अपने समाज बंधुओं को हिंसा के मार्ग पर जाने से रोकें ? उनके जीवन स्तर में सुधार लाये, और अगर उनका कहीं कोई शोषण होता है, तो अपने प्रभाव का उपयोग कर उसे थामने, रोकने का प्रयत्न करें ? पर वे भी अपने में और अपने बच्चों में मग्न रहते हैं |

एक और सवाल कि यह तो माना जा सकता है कि नक्सलियों के पास एके -47 सहित आधुनिक हथियार तो उन सुरक्षा बलों से लुटे हुए हो सकते हैं, जिनकी वे हत्याएं करते हैं, किन्तु इन हथियारों के लिए गोला बारूद उन्हें कहाँ से मिलता है ? यह तो शासन तंत्र से ही मिलता होगा ना ? अगर शासन उनकी सप्लाई लाईन का भी पता नहीं लगा सकता, उसे नहीं रोक सकता, तो सिवाय धिक्कारने के और क्या किया जा सकता है ?

कहा जा रहा है कि नक्सलियों को हथियारों और गोला बारूद की आपूर्ति विदेशी स्रोत से भी होती है । उनका सम्बन्ध हमारे देश के कट्टर दुश्मनों के साथ जुड़ा हुआ है । पिछले दिनों नक्सली नेताओं की कश्मीरी अलगाववादियों के साथ हुई बैठक के समाचार भी सामने आये हैं | छत्तीसगढ़ कोई सीमावर्ती राज्य नहीं है | यह भारत का ह्रदय प्रदेश है | पाकिस्तानी या चीनी हथियारों का पूरा देश पारकर यहाँ तक पहुंचना भी हमारे सुरक्षा तंत्र की बड़ी खामी की ओर संकेत करता है ।

सीमापार दुशमन तो चाहेगा ही हमें परेशान करना, किन्तु क्या हम केवल परेशान होने को ही बने हैं? 

इस आलोचनात्मक आलेख की ख़ास बात यह है कि इसे भाजपा नेता श्री बलवीर पुंज के न्यू इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक आलेख के आधार पर लिखा गया है |

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