भारतीय संत परंपरा का स्वर्णिम अध्याय, मुनिराज सुवीर्य रत्न विजयजी महाराज - संजय तिवारी

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भारत माता को फिर बहुत गर्व हुआ होगा। उनकी कोख ने इस युग का एक और विवेकानंद दिया है भारत को। इस बार यह धरती है गुजरात की। वरशील शाह जैसे ...

भारत माता को फिर बहुत गर्व हुआ होगा। उनकी कोख ने इस युग का एक और विवेकानंद दिया है भारत को। इस बार यह धरती है गुजरात की। वरशील शाह जैसे मेधावी को जागतिक प्रपंच रास नहीं आये और जन्म ले लिया मुनिराज सुवीर्य रत्न विजयजी महाराज ने। किसी मठ या मंदिर या आस्था के साम्राज्य पर उत्तराधिकार के लिए मुनिराज सुवीर्य रत्न विजयजी महाराज का जन्म नहीं हुआ है। भारत की नयी पीढ़ी को भारतीय संत परम्परा का गौरव समझाने के लिए इस युग की यह ऐतिहासिक घटना है। भारत की गौरवशाली परंपरा के बारे में यकीनन नयी पीढ़ी को कुछ भी नहीं पता। सामान्य तौर पर साधू-संत के वेश में जिस तरह के लोग आजकल सक्रिय हैं उन्होंने इस पवित्र परंपरा को बहुत आघात पहुंचाया है। मुझे याद आता है कि स्वामी विवेकानंद ने भी इसी तरह स्वामी रामकृष्ण परमहंस से प्रभावित होकर गृहत्याग किया और परिव्राजक बन गए थे। नरेंद्र से विवेकानंद तक की यात्रा के बारे में अब तक बहुत लिखा जा चुका है। 

यहाँ हम बात कर रहे हैं वार्शील शाह से मुनिराज सुवीर्य रत्न विजयजी महाराज तक की यात्रा के बारे में। यह आधुनिक भारत की अद्भुत आधात्मिक घटना है। एक ऐसा मेधावी बालक जिसने इसी वर्ष गुजरात बोर्ड की परिक्षा टॉप की और सन्यासी बन जाता है। उसी देश में जहा बिहार के toppers के जालसाजी की कहानिया लिखी जा रही हैं। जिस बालक को लेकर उसके माता पिता ने बहुत से सांसारिक सपने बने होंगे वह इसी उम्र में इस संसार से विदा लेकर इसी संसार के कल्याण के लिए जीवन अर्पित करने का संकल्प लेकर सन्यासी बन गया। वह भी उन्ही माता पिता के सामने ही। खुद का पिंड दान। अद्भुत है यह घटना।

आइये दृष्टिपात करते हैं इस यात्रा पर -

गुजरात में इस साल 12वीं क्लास के एग्जाम में 99.99 पर्सेंटाइल हासिल करने के बाद वर्शील शाह पूरे देश में चर्चा में हैं। इसका कारण यह है कि इतनी शानदार सफलता के बाद भी वे संन्यास लेकर जैन संत बन गए। अब वे संत मुनिराज सुवीर्य रत्न विजयजी महाराज बन चुके हैं। वर्शील की संत बनने की प्रबल इच्छा थी, लेकिन उनके पिता ऐसा नहीं चाहते थे। वर्शील के पिता जिगर कनुभाई शाह कहते हैं कि मैं चाहता था कि बेटा हायर एजुकेशन हासिल करे और देश की सेवा करे, लेकिन बेटे की इच्छा देखते हुए दीक्षा की इजाजत दे दी। जिगरभाई कहते हैं, "मेरी महत्वाकांक्षा को ठेस तो लगी है, लेकिन बेटे की बेहतरी के लिए गृह त्याग की इजाजत दी है।

बचपन से ही अध्यात्म की ओर झुकाव

गुजरात के खेड़ा जिले के बारसद गांव के मूल निवासी वर्शील शाह के दादा कनुभाई हीरालाल शाह 70 साल पहले गांव से अहमदाबाद कपड़ा का बिजनेस करने आए थे। बाद में वहीं बस गए। वर्शील के पिता जिगर भाई इनकम टैक्स ऑफिशियल हैं और उनकी मां अमीबेन हाउसवाइफ हैं। अपनी दादी भानूमतिबेन कनुभाई शाह के लाडले रहे वर्शील का बचपन से ही अध्यात्म की ओर झुकाव रहा है। वे माता-पिता और बहन के साथ अक्सर देरासर जाते थे और प्रवचनों को बड़े गौर से सुनते थे।

वर्शील से छह साल बड़ी उनकी बहन जैनी जिगरभाई शाह ने भी 12वीं कॉमर्स बोर्ड की परीक्षा में 99.99 पर्सेंटाइल के साथ टॉप किया था। संत बनने के बाद वर्शील अब जमीन पर ही सोएंगे और सूरज डूबने के बाद पानी भी नहीं पिएंगे।अब तक सभी सुख सुविधा के बीच पले-बढ़े वर्शील पूरी लाइफ नंगे पांव चलेंगे। ब्रह्मचर्य का पालन करेंगे। खाने-पीने को लिमिट में रखने के साथ ही वे अपने पास रुपए-पैसे, बैंक अकाउंट, जगह-जमीन, धन-दौलत कुछ नहीं रखेंगे. बिजली और मॉडर्न इक्विपमेंट्स का इस्तेमाल नहीं करेंगे। हमेशा सफेद कपड़े ही पहनेंगे, कुदरत को नुकसान पहुंचाने वाले किसी भी साधन का इस्तेमाल नहीं करेंगे। वे पांच महाव्रतों का पालन करेंगे। अपरिग्रह का पालन करेंगे यानी जीवन में किसी चीज का संग्रह नहीं करेंगे। केवल चातुर्मास में 4 महीने एक जगह रहेंगे। बाकी महीनों में सदैव विचरण करते रहेंगे। घर कभी नहीं जाएंगे। किसी भी महिला को स्पर्श नहीं करेंगे।

वर्शील के मामा नयन भाई ने बताया कि उसे बचपन से ही माता-पिता ने आत्मविश्वासी बनाया। गर्मी की छुटि्टयों या दशहरा-दीवाली की छुटि्टयों में वह घूमने या रिश्तेदारों के यहां जाने के बजाय गुरु महाराज कल्याण रत्न विजयजी के यहां जाता था। अहमदाबाद में वसंतकुंज में वर्शील और उसका परिवार रहता है। वहां पास ही में बड़े गुरुजी महाराज का आना-जाना होता है। वर्शील उनकी बातें सुनकर प्रभावित होता था। वह गुरु महाराज की बातें सुनकर घर में उस पर अमल करने की बातें करता था। वर्शील जब 6 साल का था, उस वक्त वह रात में खाना नहीं खाता था, क्योंकि जैन धर्म में सूरज डूबने के बाद भोजन को निषेध माना जाता है।

वर्शील शाह ने गुरुवार को अडाजण के स्वामी नारायण मंदिर में जैन भगवती दीक्षा ग्रहण की। अब वे सुवीर्यरत्न विजयजी महाराज के नाम से जाने जाएंगे। वर्शील के शब्दों में - इसका कारण मुझे संयम के मार्ग पर चलकर सद्गति पाने का अवसर मिला है। उसके सामने सांसारिक सुख तुच्छ है। 12वीं के बाद मेरे मित्र पूछा करते थे, आगे क्या करोगे, मैं इसका जवाब नहीं देता था। मित्र कहते थे, सीए की पढ़ाई करना। मैंने गुरु महाराज से चर्चा की तो उन्होंने पूछा, क्या सीए बन जाने से जीवन स्थिर हो जाएगा? फिर मैंने कई लोगों से बात की। मैंने देखा कि साधु महाराज के पास कोई साधन नहीं है, फिर भी उनके हृदय में आनंद का फव्वारा फूटता है। वहीं बाहरी जीवन नर्क बना हुआ है। नर्क में स्वर्ग का अनुभव करना है तो गुरु की शरण में जाना होगा। आज से दो साल पहले ओडी में गुरु महाराज से मेरी भेंट हुुई थी। उनके वचनों का जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। मैं आध्यात्म के मार्ग पर आगे बढ़ता चला गया। आज दीक्षा मिल गई। मैं संयम के मार्ग पर चलने के लिए आप लोगों का आशीर्वाद चाहता हूं। आप सबका आशीर्वाद मुझे इस मार्ग पर संबल देगा।

स्कूल कर रहा इंतजार, कब आएंगे मार्कशीट लेने

मुनिराज कल्याण रत्न विजय महाराज सहित कई संतों के सानिध्य में उन्हें दीक्षा दिलाई गई। वर्शील जिस स्कूल में पढ़ते थे, वहां उनका इंतजार हो रहा है, ताकि वे अपनी मार्कशीट आकर ले जाएं।

लेखक भारत संस्कृति न्यास नयी दिल्ली के अध्यक्ष हैं
9450887186

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