NDTV - अभिव्यक्ति पर हमला या दुष्टता को दंड - प्रतिक खरे



जानिए असली सच्चाई_
लो हो गया फ्री स्पीच पर अब तक का सबसे बड़ा हमला।एनडीटीवी के खिलाफ सीबीआई ने एफआईआर दर्ज कर ली। हालांकि शिकायतकर्ता सरकार नही है। कोई सरकारी एजेंसी भी नही है। एनडीटीवी का ही एक शेयरहोल्डर है। एनडीटीवी ने आईसीआईसीआई बैंक से 350 करोड़ का लोन लिया था। उस वक़्त एनडीटीवी के पास महज 74 करोड़ की सम्पत्ति थी। मगर कांग्रेस राज में फ्री स्पीच के इस सबसे बड़े कथित मसीहा की धमक का आलम ये था कि 74 करोड़ की सम्पत्ति की कीमत पर 350 करोड़ का लोन हासिल कर लिया गया। वो भी तब जब एनडीटीवी के शेयर औंधे मुंह गिर चुके थे। उनका भाव 438 रुपया प्रति शेयर से गिरकर 156 रुपये प्रति शेयर पर आ चुका था। ऐसी कंपनी को इतना भारी भरकम लोन! फिर इस लोन का एक बड़ा हिस्सा प्रणव रॉय और राधिका रॉय के पर्सनल खातों में डाइवर्ट कर दिया गया। ये एक और बड़ा कारनामा किया इन फ्री स्पीच वालों ने। इस लोन के एवज में ब्याज की 48 करोड़ की रकम बनती थी। मामला इस बात का है कि एनडीटीवी इसे भी पी गया। इसी मामले में सीबीआई की बैंकिंग फ्रॉड डिवीज़न ने एनडीटीवी के मालिक प्रणव रॉय, उनकी पत्नी राधिका रॉय और होल्डिंग कंपनी आरआरपीआर प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली है।

हालांकि सीबीआई की बैंकिंग फ्रॉड डिवीज़न ने इसके पहले भी ब्याज की रकम हड़प कर जाने के न जाने कितने मामलों में एफआईआर दर्ज की है। मगर "फ्री स्पीच" पर कभी भी इस तरह का कोई हमला नही हुआ। यहां तक कि बैंकों के करोड़ों हड़प कर जाने वाले माल्या ने भी फ्री स्पीच पर हमले का आरोप नही लगाया। ट्विटर के प्लेटफार्म से ही सही, माल्या की फ्री स्पीच दनादन जारी है। दिक्कत ये है कि एनडीटीवी ने अपनी ईमानदारी का कथित सर्टिफिकेट खुद ही जारी किया हुआ है। और इसके चारों कोनों पर वामपंथ की गली हुई प्लास्टिक से बाइंडिंग भी कर दी है। इस सर्टिफिकेट के चारों ओर 'सेकुलरिज्म' के नंगे तार झूलते रहते हैं। छूने की सोचना भी मत। चेतावनी अलिखित है, मगर बिल्कुल स्पष्ट है। लालू यादव भी चारा घोटाले से लेकर हज़ार करोड़ की बेनामी सम्पत्ति के मामले में सेकुलरिज्म के ऐसे ही कवच का इस्तेमाल कर चुके हैं और करे जा रहे हैं।

इसी एनडीटीवी के रवीश पांडेय (सिगरेट के पैकेट पर लिखी चेतावनी वाले रूल के मुताबिक-रवीश कुमार) के सगे बड़े भाई एक दलित लड़की को प्रताड़ित करने और सेक्स रैकेट चलाने के मामले में महीनों से फरार चल रहे हैं। मगर इस फ्री स्पीच और अभिव्यक्ति की आज़ादी को तब काठ मार गया था जब इसी चैनल पर ब्रजेश पांडेय की खबर बिना ताबूत के ही दफन कर दी गई। देश के तमाम चैनलों और अखबारों में बिहार कांग्रेस के उपाध्यक्ष रहे ब्रजेश पांडेय (रवीश पांडेय के भाई) की खबरें प्रमुखता से चलीं और छपीं मगर अभिव्यक्ति की आज़ादी के इस सबसे बड़े कथित झंडाबरदार ने उस पीड़ित दलित लड़की की आवाज़ कुचल दी। भाई का मामला जो था। दिल्ली की किस मार्किट में बिकते हैं, इतने मजबूत मुखौटे? टेंडर भर निकल जाए तो ठेकेदारों में होड़ लग जाएगी! रवीश पांडेय को शायद पता होगा इस मार्केट का?

अब एनडीटीवी पर एक और मामला जांच में सामने आया है। विदेशों में 33 'पेपर कंपनियां' बनाई। 1100 करोड़ रुपए उगाहे और फिर सारी कंपनियां dissolve कर दीं। पेपर कंपनियां यानि वे जो सिर्फ कागजों पर चलती हैं। ये 1100 करोड़ रुपए भी उन अज्ञात लोगों ने दिए जो ब्रिटिश वर्जिनिया आइलैंड और केमन आइलैंड जैसे टैक्स हैवेन देशों या यूं कह लें कि काली कमाई के अड्डों से तालुक रखते हैं। ये सारी जानकारी घरेलू एजेंसियों से छुपा ली गई। न इनकम टैक्स को खबर हुई और न ही कॉरपोरेट अफेयर्स मिनिस्ट्री को। हो गए चुपचाप करोड़ों पार।

सिलसिला है ये। एक दो नही कई-कई मामले। हिंदुस्तान टाइम्स में छपी रिपोर्ट पर यकीन करें तो एयरसेल मैक्सिस डील से लेकर एयरइंडिया की प्लेन खरीद तक। हर जगह एनडीटीवी। मलाईदार कमाई के हर रास्ते पर। मुहर दर मुहर।

मगर नही। मामला फ्री स्पीच का है। मामला कथित ईमानदार पत्रकारिता के इकलौते ठेकेदार का है। मामला सेक्युलर और वामपंथी सोच के झण्डाबरदार का है। सो सारे गुनाह माफ। सारी एजेंसियां "संघी"। खिलाफ आवाज़ उठाने वाले सारे लोग "कम्युनल"। देश का लोकतंत्र "खतरे" में। फ्री स्पीच "कोमा" में। उफ़, शाम के 7.30 हो गए। अब यहीं खत्म करता हूँ। कुछ ज़रूरी काम निपटा लूं। कुछ देर बाद "काली स्क्रीन" भी देखनी होगी ! 

उक्त आलेख के साथ श्री सतीश मिश्रा जी का यह आलेख भी पठनीय है -

मुझे न एनडीटीवी से सहानूभूति है और न ही इसके एंकर या इसके मालिक से। ये कल बंद हो या आज बंद हो हमें कोई फर्क नहीं पड़ने वाला

1.गोधरा कांड के बाद ये यही एनडीटीवी लगातार नरेंद्र मोदी, आरएसएस और भाजपा के खिलाफ एकसूत्री एजेंडा चलाता रहा है। यह किसके इशारे पर किया जाता रहा है क्या किसी से छुपा है?
2.एनडीटीवी के मालिक प्रणव रॉय के ठिकानों पर छापे की कार्रवाई को बदले की भावना बताने वाले बुद्धिजीवी, पत्रकार और नेता बता सकेंगे कि गुजरात के लोकतांत्रिक रूप से चुने गए एक मुख्यमंत्री को किस हैसियत से तब सीबीआई ने 9 घंटे तक पूछताछ की थी।
3 एक तरफ, उत्तर प्रदेश के दादरी में अखलाक की मौत पर खूनी आंसू बहाने वाला यह चैनल और इसका एंकर ब्लैक स्क्रीन कर रहा था तो दूसरी तरफ इसी दिल्ली में डॉक्टर पंकज नारंग की अवैध बांग्लादेशियों द्वारा की गई हत्या को रोड रेज बताने से नहीं चूका। इन बुद्धिजीवियों की मानें तो एक की हत्या आपराधिक साजिश थी और इससे धर्मनिरपेक्षता का गला घोंटा गया तो दूसरे की हत्या से देश में लोकतंत्र मजबूत हुआ।
4. एनडीटीवी एक दिन में नहीं बना तो नरेंद्र मोदी भी एक दिन में प्रधानमंत्री नहीं बने और न ही भारतीय जनता पार्टी एक दिन में संसद में बहुमत में आई है। इसे रोकने के लिए कैसे-कैसे सत्ताधारी नेताओं और इसके चमचे बुद्धिजीवियों, पत्रकारों ने खुले एजेंडे के तहत भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और इसके आनषांगिक संगठनों के पीछे सत्ता का बेजा इस्तेमाल किया वो किसी से छुपा है क्या?
4. एक खास विचारधारा के लोग और बुद्धिजीवी दिनरात भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ किस तरह का व्यवहार करते रहे हैं, ये किसी से छुपा है क्या?
5. देश के विभिन्न शिक्षण संस्थानों में किस तरह से बुद्धिजीवियों और चापलूसों को पिछले 70 सालों में सत्ताधारियों ने भरा है, इस पर भी कुछ कहना है।
6 . एनडीटीवी और भ्रष्टाचार का मामला एक दिन का नहीं है। यह पिछले कई सालों से चर्चा में रहा है, लेकिन सत्ताधारियों से संबंध के कारण इन लोगों ने हमेशा से जांच में बाधा डाली और एक तरह से जांच एजेंसियों का माखौल उड़ाने का काम किया है।
7. दूसरे को गलत बताने से आपका अपराध कम नहीं हो जाता है। छापा संस्थान के मालिक पर पड़ा है, लेकिन बिलबिलाहट वामपंथी बुद्धिजीवियों और इस विचारधारा के समर्थकों में साफ तौर पर देखी व महसूस की जा सकती है।
8. ऐसे तथाकथित बुद्धिजीवियों के अनुसार, इस देश में लोकतंत्र एनडीटीवी के कारण ही है वरना सभी मीडिया संस्थान मोदी के हाथों बिक चुके हैं. जिस तरह से आप दूसरे संस्थानों के एंकरों और मालिकों को लगातार टार्गेट करते रहे हैं उससे आपका एजेंडा साफ दिखता है। सच पूछिए तो आप सबके चेहरे से नकाब उतर चुका है और आपकी हालत खिसियानी बिल्ली खंभा नोंचे की तरह है।
9. इस देश में हर अपराधी कानून का फंदा में फंसने के बाद इसे विरोधियों और सरकार की साजिश बताते नहीं थकता, लेकिन मुद्दे से जुड़े व जानकार लोगों को सबकी हकीकत मालूम रहती है।
10. सोशल मीडिया के इस दौर में आप कितने भी चालाक क्यों न हों, ज्यादा समय तक अपने एजेंडा को चला नहीं सकते और अगर चलाते हैं तो लोग आपकी समझ को अच्छी तरह से जानते हैं। इसलिए चिल्ल-पों करने की बजाए अपने ऊपर लगे आरोपों की सफाई न्यायालयों में दिया करिए।
11. आपसे उन्हीं तत्वों को सहानुभूति हो सकती है, जिन्होंने आपसे लाभ लिया या पाया है। देश का बहुमत आपके साथ नहीं है, क्योंकि आप एक एजेंडे के तहत वर्षों से काम कर रहे हैं और अब जाकर आपकी पोल खुलनी शुरू हुई है। 

अंत में श्री सुरेश चिपलुनकर जी का यह तीखा व्यंग वाण -

जब सुदर्शन टीवी के सुरेश चव्हाणके गिरफ्तार होते हैं तब "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" खतरे में नहीं आती... इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी तमाम प्रेस को अपने चरणों में कूँ-कूँ-कूँ करवाते हैं, तब "फ्री स्पीच" का नारा पता नहीं कहाँ गायब हो जाता है...
जब सुब्रत रॉय गिरफ्तार होते हैं तब क़ानून अपना काम कर रहा होता है...

लेकिन जैसे ही "दलाल शिरोमणि" (र)NDTV के मालिक पर छापा पड़ा तो लोकतंत्र खतरे में आ गया??? - गजब!!!
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"सेकुलर चरस" की क्वालिटी ऐसी ही होती है...

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