चीन का बढ़ता प्रभाव - रूस और चीन के बीच दरार |



14-15 मई, 2017 को चीन ने अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बीजिंग में एक सम्मेलन आयोजित किया । इस सम्मेलन में 130 से अधिक देशों और 70 अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया, व बेल्ट एंड रोड फोरम (बीआरएफ) का गठन किया । इस कार्यक्रम में एशिया, यूरोप, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका से संबंधित देशों के प्रतिनिधि सम्मिलित हुए । इस अवसर पर कई बहुपक्षीय और द्विपक्षीय दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए गए । स्वाभाविक ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित हुआ और मध्य मई में इस समाचार ने सुर्खियों में जगह बनाईं।
ख़ास बात यह है कि सेन्ट्रल एशियन रिपब्लिक (कार) के पांच सदस्य देशों में से तीन ने इस आयोजन के लिए उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडलों को भेजा। कजाखस्तान के राष्ट्रपति नूरसुल्तान नज़रबेयिव, किर्गिज गणराज्य के राष्ट्रपति अमेमाबेक अतामबायेव और उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति श्वकत मिर्जियोयेव ने बीआरएफ में अपनी उपस्थिति दर्ज की। इन नेताओं ने गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया, और संयुक्त घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए। कार के शेष दो सदस्य देशों, तुर्कमेनिस्तान और ताजिकिस्तान ने फोरम में भाग लेने के लिए कोई प्रतिनिधिमंडल नहीं भेजा। 

क्या है यह बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव ?

बेल्ट और रोड इनिशिएटिव, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा प्रस्तावित एक प्रमुख कार्यक्रम है, जिसमें वह समुद्री सिल्क रोड भी सम्मिलित है, जिसकी घोषणा 2013 में उन्होंने अस्ताना और जकार्ता में की थी | इस महत्वाकांक्षी परियोजना के माध्यम से चीन दुनिया के 60 देशों और 63 प्रतिशत आवादी से सीधे जुड़ जाएगा | रेलवे और सड़क नेटवर्क, समुद्र मार्गों और ऊर्जा पाइपलाइनों के निर्माण से अंततः उभयपक्षी व्यापार बढेगा | चीन प्रारम्भिक दौर में ही यूरोप, पश्चिम एशिया, मध्य एशिया, दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया से जुड़ जाएगा, जबकि आगे चलकर तो उसकी पहुँच सीधे अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका तक हो जायेगी । बीआरआई के अंतर्गत, निम्नांकित छह आर्थिक गलियारों को विकसित करने का प्रस्ताव है: -

नई यूरेशियन लैंड ब्रिज, जो कि मध्य एशिया के माध्यम से चीन और यूरोप को जोड़ता है;
चीन-मंगोलिया-रूस कॉरिडोर;
चीन - मध्य एशिया - पश्चिम एशिया कॉरिडोर;
चीन- इंडोचायना प्रायद्वीप कॉरिडोर;
चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी);
बांग्लादेश - चीन-भारत-म्यांमार (बीसीआईएम) कॉरिडोर।

घोषित रूप से तो चीन द्वारा प्रस्तावित यह योजना, जिस पर 30 देशों के प्रमुखों ने हस्ताक्षर किये हैं, परिवहन, संचार और व्यापार के माध्यम से विभिन्न देशों और लोगों के बीच सहयोग को बढ़ाने के लिए है। किन्तु चीन को समझने वाले, उसकी कुटिलता के भुक्तभोगी जानते हैं कि चीन की रणनीति छोटे और कम-विकसित पड़ोसियों पर प्रभुत्व स्थापित करने की है। चीन अपने विनिर्मित माल के लिए नए बाजारों की तलाश कर रहा है । 

सिल्क रोड का पुनरुद्धार

प्राचीन काल में एशिया और यूरोप के विभिन्न भागों के बीच जो व्यापार मार्ग थे उन्हें सिल्क रोड कहा जाता था । इसका मुख्य कारण यह था, क्योंकि उन दिनों व्यापार की प्रमुख वस्तु रेशम हुआ करती थी | यह अलग बात है कि अन्य वस्तुओं का कारोबार भी किया जाता था। किन्तु 18 वीं और 1 9वीं शताब्दी में, जब लगभग पूरा एशियाई महाद्वीप उपनिवेश बन गया और इस पर ब्रिटेन, फ्रांस, ओट्मन और ज़ारिस्ट रूस जैसे विभिन्न साम्राज्यों ने अपना अधिकार जमा लिया, यह प्रक्रिया समाप्त हो गई | क्योंकि स्वतंत्रता पूर्वक इंसानों और सामग्रियों की आवाजाही प्रतिबंधित हो गई | किन्तु 1 99 1 में सोवियत संघ के विघटन के बाद, सिल्क रोड की अवधारणा के पुनरुद्धार की आवश्यकता पुनः अनुभव की जाने लगी । चीन तो 1 99 0 के दशक से ही इस अवधारणा का उत्साही समर्थक था।

इसके पीछे मूल कारण था कि अपने उच्च आर्थिक विकास और अतिरिक्त क्षमताओं के कारण चीन को जहाँ कच्चे माल की जरूरत थी, तो वहीं बाजार की भी | उसके लिए पड़ोसी छोटे देशों से बेहतर कौन हो सकता था ? अतः पहल करते हुए चीन ने स्वयं निवेश कर इन छोटे देशों के बीच संयुक्त परियोजनायें प्रारम्भ कीं । बीआरआई की घोषणा से पहले ही 2013 में 'सिल्क रोड' के पुनर्जीवन के बहाने परिवहन और कनेक्टिविटी परियोजनाएं शुरू हो चुकी थीं। 

कार, ​​चीन और बीआरआई

पांच कार देशों में से तीन की सीमाये चीन से लगती हैं । मध्य एशिया को पश्चिम में चीन का प्रवेश द्वार कहा जा सकता है। चीन से यूरोप, पश्चिम एशिया या दक्षिण एशिया के सभी सड़क मार्ग, इन देशों से गुजरते हैं। पांच कारों में से तीन हाइड्रोकार्बन भंडार से समृद्ध है, जो कि चीनी अर्थव्यवस्था की जीवन रेखा है और साथ ही कार देश आर्थिक तौर पर कम विकसित हैं और यह स्थिति चीन के लिए अनुकूल है | क्योंकि वे चीन को कच्ची सामग्री और ऊर्जा की आपूर्ति करते हैं और उनसे निर्मित माल खरीदते हैं। अन्त में, चीन के पश्चिमी प्रांत, जिसे 'झिंजियांग उईघुर स्वायत्त क्षेत्र' कहा जाता है, अपेक्षाकृत कम विकसित और अस्थिर है। झिंजियांग के विकास और स्थिरता के लिए कारों के साथ कनेक्टिविटी और व्यापार को आवश्यक माना जाता है।

पांच कार देशों के साथ 2001 में चीन का कुल व्यापार 1.5 अरब डॉलर था, जो बढ़कर 2015 में 50 अरब डॉलर हो गया। जबकि उनका दूसरा व्यापारिक भागीदार रूस, लगभग 31 अरब डॉलर तक सीमित रहा । मध्य एशिया में, रूस और चीन ने एक अघोषित समझ विकसित की थी, और वह यह कि रूस अपने राजनीतिक और सैन्य वर्चस्व को बनाए रखेगा, जबकि चीन अपनी आर्थिक ताकत का विस्तार करेगा। किन्तु अब यह नीति धुंधली हो रही है | पूर्व में अविभाजित सोवियत संघ में सम्मिलित सेन्ट्रल एशियन रिपब्लिक (कार) देशों के साथ बढ़ते चीनी रिश्तों से रूस असहज महसूस कर रहा है, चिंतित हो रहा है |

इसके अलावा, चीन ने परिवहन, बुनियादी ढांचा और ऊर्जा क्षेत्र में भारी निवेश किया है। वह मध्य एशिया में बड़े पैमाने पर सड़कों, रेलवे लाइनों, पुलों और सुरंगों का निर्माण कर रहा है। तीन पाइपलाइन के माध्यम से चीन, कार देशों से भारी मात्रा में ऊर्जा लेता हैं। कजाकिस्तान अपने कुल तेल उत्पादन में से एक चौथाई चीन को देता है, तो तुर्कमेनिस्तान भी गैस निर्यात का लगभग आधा हिस्सा चीन को देता है | हाल ही में उज़्बेकिस्तान के साथ भी चीन ने $ 15 बिलियन गैस और यूरेनियम सौदों पर हस्ताक्षर किए हैं।

चीन ने हाल ही में कामचिक सुरंग का निर्माण प्रायोजित किया है, जो उज़्बेकिस्तान के फरगना घाटी क्षेत्र को ताशकंद से जोड़ता है। यह सुरंग अनुमानित चीन-किर्गिस्तान-उज्बेकिस्तान रेलवे लाइन का हिस्सा है, जिसे आगे ईरान और पश्चिम एशिया तक विस्तारित किया जाएगा।

बीआरएफ के दौरान, चीन और कारों के बीच कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए, जिनमें निम्न शामिल हैं: -

उज़्बेकिस्तान के साथ अंतर्राष्ट्रीय परिवहन और रणनीति समन्वयन पर समझौता;
उजबेकिस्तान और ताजिकिस्तान के साथ आर्थिक और व्यापार सहयोग करार;
किर्गिस्तान के साथ छोटे और मध्यम उद्यमों को बढ़ावा देने पर सहयोग योजना;
किर्गिस्तान के साथ औद्योगिक क्षमता और निवेश सहयोग;
कजाखस्तान के साथ सीमा शुल्क सहयोग;
"डिजिटल कजाखस्तान 2020" में चीनी भागीदारी;
कजाखस्तान के साथ शैक्षिक सहयोग;
उज़्बेकिस्तान के साथ पर्यटन सहयोग
मध्य एशिया पर बीआरआई का प्रभाव?

जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, बीआरआई से मध्य एशिया में विकास के नए द्वार खुलेंगे । लेकिन यह विकास होगा चीनी ऋण, चीनी निवेश और सभी क्षेत्रों में चीनी आर्थिक सहायता से । सड़क, रेलवे, पुल, सुरंगों का निर्माण और बुनियादी ढांचे का विकास आवश्यक था। ऊर्जा, उद्योग और कृषि जैसे क्षेत्रों में निवेश, संयुक्त उद्यम और परियोजनाओं ने निश्चित रूप से इन गणराज्यों के समग्र आर्थिक विकास पर सकारात्मक प्रभाव डाला है। 

इसके बावजूद, बीआरआई के माध्यम से कार देशों में बढ़ती चीनी गतिविधियां अनेक देशों को चिंतातुर कर रही हैं । भारी मात्रा में ऋण एक गंभीर मुद्दा है, क्योंकि ये इन देशों को कर्ज के मकड़ जाल में उलझा सकता है। यह किर्जिस्तान और ताजिकिस्तान जैसे आर्थिक रूप से कमजोर देशों के लिए विशेष रूप से सच है, जहां 40% से अधिक बाह्य ऋण केवल चीन से प्राप्त हुए हैं । चीनी फितरत को देखते हुए, जहाँ इन देशों की सीमाएं असुरक्षित होने की संभावना है, वहीं चीनी श्रमिकों की बाढ़ को लेकर भी अनेक आशंकाएं हैं। हालांकि, तुर्कमेनिस्तान और उजबेकिस्तान ने स्थानीय मजदूरों की अनिवार्यता के लिए कानून बनाए हैं, लेकिन ऐसे कानून किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान में अनुपस्थित हैं। इन देशों में, इन परियोजनाओं में अधिकांश चीनी कार्यबल ही दिखाई देते हैं। इससे असंतोष पैदा होने लगा है, क्योंकि इन देशों में स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर कम हुए हैं | इसके अलावा, स्थानीय लोगों को चीनी भाषा भी पल्ले नहीं पड़ती, इसके कारण आये दिन संघर्ष की स्थिति निर्मित होती है ।

कारों में चीनी निवेश के बारे में सबसे महत्वपूर्ण चिंता यह है कि चीन अपनी संपत्ति के संरक्षण व सुरक्षा की व्यवस्था स्वयं कर रहा है । इसके अलावा, उसने इन देशों के राजनीतिक और सुरक्षा क्षेत्र में भी दखलंदाजी शुरू कर दी है। हथियारों और गोला-बारूद की आपूर्ति, आतंकवाद विरोधी सहयोग, और ताजिकिस्तान में हाल में आयोजित संयुक्त सैन्य अभियानों को शेष विश्व खतरे की घंटी मान रहा है। विशेषकर इस घटनाक्रम से रूस असहज हो रहा है ।

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