कुडनकुलम परमाणु संयंत्र - विरोध प्रदर्शन के पीछे चर्च का सक्रिय समर्थन:


तमिलनाडु राज्य में स्थित 6000 मेगावाट की कुल क्षमता का कुडनकुलम न्यूक्लियर पॉवर भारत का सबसे बड़ा परमाणु ऊर्जा संयंत्र माना जाता है । इस प्लांट के निर्माण का कार्य, वर्षों पहले 2002 में शुरू हुआ था, लेकिन लगातार चर्च समर्थित सक्रिय विरोध प्रदर्शन के कारण यह आज भी अधर में लटका है |

यह विरोध 2011 में अपने चरम पर पहुँच गया, जब ग्रामीणों ने यह आशंका जताई कि इस न्यूक्लियर संयंत्र के कारण फुकुशिमा जैसी आपदा आ सकती है। कुडनकुलम विरोधी जन आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक एसपी उदयकुमार थे, जिन पर 2014 में आईबी की ख़ुफ़िया रिपोर्ट में यह दावा किया गया कि उदयकुमार भारत के विकास को बाधित करने के लिए विभिन्न अमेरिकन और जर्मन संस्थाओं के इशारे पर काम कर रहे थे।

हाल ही में रिपब्लिक टीवी के एक स्टिंग ऑपरेशन ने इस मामले को एक बार फिर सुर्ख़ियों में ला दिया है, जिसने इस आन्दोलन के विदेशी वित्त पोषण को बेनकाब कर दिया है ।

टीवी संवाददाताओं ने उदयकुमार को विदेशी विश्वविद्यालय के छात्रों को संबोधित करते हुए दिखाया है | प्रोफेसर उन लोगों से अपने परमाणु विरोध प्रदर्शनों में सहायता करने की अपील करते बताये गये हैं । वीडियो में, वे तरीके बताये जा रहे हैं, कि कैसे सुरक्षा एजेंसियों की निगाह में आये बिना उन्हें विदेशी निधि उपलब्ध कराई जा सकती है ।

वीडिओ में उदय कुमार सुझाव देते बताये गए हैं कि कैसे उनके राजनीतिक दल को कोई राशि दान के रूप में दी जा सकती है | यह राशि उनके भारत में रह रहे परिवार या दोस्तों के जरिए दान दी जा सकती है, या सीधे नकद भेजी जा सकती है । उदयकुमार यह दान निकट भविष्य में पुनः प्रारम्भ किये जाने वाले अपने विरोध प्रदर्शनों को बढ़ावा देने के लिए मांग रहे थे । दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने बाद में अपने किसी सहयोगी द्वारा सचेत किये जाने पर रिपोर्टर के सम्मुख पैसे स्वीकार करने की अपनी इच्छा से एकदम इनकार किया |

इसके बाद पत्रकारों ने अपना रुख ईदिंथकाराई स्थित उस चर्च की ओर किया, जो परमाणु विरोधी विरोध प्रदर्शनों का प्रमुख समर्थक माना जाता था । उन्होंने जयकुमार नामक एक पारिश प्रीस्ट से संपर्क किया जो कथित तौर पर विरोध प्रदर्शनों में होने वाले व्यय के लिए धन का प्रबंध करता था । उसने 70 लोगों की एक टीम बनाई हुई थी, जो जाहिरा तौर पर सब काम देखती थी, जबकि जबकि वह और प्रमुख पादरी पर्दे के पीछे से चीजों को नियंत्रित करते थे। स्पष्टतः ईदिंथकाराई में हुए सभी विरोध प्रदर्शनों की व्यवस्था इन्होने तथा आसपास के 13 अन्य गांवों का प्रबंधन, वहां के 13 अन्य फादर ने किया था।

रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि इस पूरे अभियान में चर्च की भागीदारी के योजनाकार एक बिशप हैं, उनके ही सुझाव पर जयकुमार पृष्ठभूमि में काम करते हैं। संयोग से ये बिशप महाशय वे ही व्यक्ति हैं, जो अपना एफसीआरए लाइसेंस रद्द हो जाने से प्रभावित हुए हैं ।

यह भी दावा किया गया है कि प्रधान पादरी के नियंत्रण में 115 पारिशी, चर्च और 400 से अधिक कान्वेंट है, जिनका उपयोग सब स्टेशन के रूप में इटली और फ्रांस के लोगों से सहयोग प्राप्त करने में होता है ।

पत्रकारों ने येसुराज नाम के एक अन्य पुजारी को लक्षित किया, जिसने दावा किया कि ऑल इंडिया कैथोलिक यूनिवर्सिटी फेडरेशन नामक छात्र संगठन की इस विरोध प्रदर्शन में बहुत महत्वपूर्ण भागीदारी रहती ही और उसका इस्तेमाल पूरी परमाणु परियोजना के खिलाफ 'जागरूकता' पैदा करने के लिए किया जाता है ।

पत्रकारों ने एक ग्रामीण का भी साक्षात्कार लिया, जिसने दावा किया कि सभी गैर-सरकारी संगठन वास्तव में बिशप्स द्वारा चलाए जाते हैं तथा जो लोग विरोध प्रदर्शन में भाग लेते हैं, उन्हें ईसाई लोग पैसे देते हैं ।

इन स्टिंग आपरेशनों के माध्यम से, यह प्रकट हुआ कि इस पूरी परियोजना के विरोध का मुख्य प्रेरणा केंद्र परमाणु ऊर्जा के प्रति घृणा नहीं है, बल्कि पैसे कमाने की इच्छा है । अब यह देखना दिलचस्प होगा कि रिपब्लिक टीवी द्वारा किये गए इस रहस्योद्घाटन के बाद भारतीय सुरक्षा एजेंसियां इस पूरे प्रकरण में नए सिरे से कितनी दिलचस्पी लेती हैं। लेंगी भी या नहीं ?

सौजन्य: OPINDIA.com

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