लालू और नीतीश के घात - प्रतिघात, तू डाल डाल - मैं पात पात |


राजनैतिक पर्यवेक्षकों और आम जन की भी दिलचस्पी आज राष्ट्रपति चुनाव से कहीं अधिक बिहार के महागठबंधन के भविष्य को लेकर है | क्या महा गठबंधन अब बिखरने जा रहा है ? जहाँ तक राष्ट्रपति चुनाव का प्रश्न है, उसमें तो भाजपानीत एनडीए के प्रत्यासी रामनाथ कोविंद की विजय तय मानी जा रही है | इसमें किसी को भी संदेह नहीं है कि भाजपा के उम्मीदवार भारत के अगले राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं | किन्तु जिस प्रकार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सबसे पहले, यहाँ तक कि विपक्ष का उम्मीदवार घोषित होने के भी पहले ही उनके प्रति अपना समर्थन घोषित किया है, उसने पूरे विपक्ष को हैरत में डाल दिया है | 

राजनीतिक समीक्षकों का मानना है कि महागठबंधन से हटने की नीतीश कुमार की कोई योजना नहीं थी। क्योंकि वे यह संभावना मानकर चल रहे थे कि भविष्य में देर सबेर सम्पूर्ण विपक्ष उन्हें ही अपना नेता मानने को विवश होगा, और कोई अचम्भा नहीं कि 2019 के चुनाव उनके ही नेतृत्व में लडे जाएँ | फिर अकस्मात ऐसा क्या हुआ कि वे अपनी सारी महत्वाकांक्षा भूलकर एनडीए प्रत्यासी का समर्थन करते दिखाई दिए ? 

जानकार सूत्रों का कहना है कि बिहार के मुख्यमंत्री को अपने खुफिया सूत्रों से ज्ञात हुआ कि उन्हें तबाह करने की साजिश रची जा रही है । उन्हें मालूम पड़ा कि आरजेडी के कुछ नेता कथित तौर पर केंद्र के साथ सांठगाँठ कर रहे थे | आरजेडी नेताओं ने केंद्र को आश्वासन दिया था कि वे नीतीश कुमार को अपदस्थ करने में केंद्र की सहायता करने को सहमत हैं | यह तो सभी जानते हैं कि इन दिनों लालू प्रसाद यादव और उनकी बेटी मीसा भारती के खिलाफ दर्ज कई मामलों के कारण आरजेडी कितनी परेशानियों का सामना कर रहा है। मामले का अहम बिंदु यह है कि राजद अपने नेताओं को बचाने में केंद्र से मदद मांग रहा था, और बदले में नीतीश कुमार को अपदस्थ कर बिहार में मध्यावधि चुनाव की परिस्थिति पैदा करने का आश्वासन दे रहा था । 

जैसे ही नीतीश को एहसास हुआ कि पर्दे के अन्दर क्या पक रहा है, उन्होंने आनन फानन में बाजी पलट दी | भाजपा के लिए भी राजद की तुलना में नीतीश अधिक विश्वसनीय हैं, आखिरकार पूर्व के सहयोगी जो रहे हैं । अब तो जद (यू) और बीजेपी का साथ आना लगभग दिन के उजाले की तरह साफ़ दिख रहा है । मंगलवार को, जेडी (यू) के प्रवक्ता के वी त्यागी ने 17 साल तक चले भाजपा के साथ पार्टी के गठबंधन को याद किया। उन्होंने कहा कि वे अपने 17 साल की भाजपा के साथ साझेदारी के दौरान ज्यादा सहज महसूस कर रहे थे। उन्होंने कहा, "हम अटल बिहारी वाजपेयी शासन के तहत ज्यादा सुकून में थे | हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि अभी भी नरेंद्र मोदी सरकार के साथ उनके धारा 370, समान नागरिक संहिता और राम जन्मभूमि जैसी मुद्दों पर वैचारिक मतभेद हैं।“ 

तो इसे कहते हैं – राजनीति में तू डाल डाल, मैं पात पात |

कौन जाने इन सभी घटनाचक्र में शाह साहब का राजनैतिक कौशल हो ? या यह भी संभव है कि भाजपा (बिल्ली) के भाग्य से नीतीश टूट पड़े | बैसे भाजपा के तो दोनों ही हाथों में लड्डू थे | मध्यावधि होते तो भी (क्योंकि महा गठबंधन तो रहता नहीं और त्रिकोणीय संघर्ष में भाजपा का पलड़ा भारी ही रहना था) और अब नीतीश अपनी तमाम अखिल भारतीय महत्वाकांक्षा को ताक पर रखकर अगर भाजपा के सहयोगी बनते हैं तो दसों घी में और सर कढाही में |

है न सही बात ?

सौ बात की एक बात |

मोदी और शाह की रणनीति का विपक्ष के पास कोई तोड़ नहीं है |

अब 2019 में कौन होगा विपक्ष का प्रधान मंत्री प्रत्यासी ?

क्या राहुल गांधी ? क्योंकि कांग्रेस में उनके अलावा कोई सूरमा है ही नहीं | और उनका नाम सुनते ही आम मतदाता प्रसन्न हो जाएगा, उसका दिल बाग़ बाग़ हो जाएगा |

क्या अरविन्द केजरीवाल ? वाह वाह क्या बात है ?

मैदान साफ़ है |

तो क्या अभी से मोदी जी को 2019 की वधाई भी दे दी जाए ? 

साभार आधार - http://www.oneindia.com/india/inside-story-how-nitish-bust-lalu-yadavs-plot-to-topple-him-2479243.html

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें