हमारे धर्म शास्त्रों ने स्वदेश, स्वधर्म एवं स्व संस्कृति की रक्षा के लिए देशवासियों में संकल्प शक्ति एवं राष्ट्र भक्ति जगाने की विधियों ...

हमारे धर्म शास्त्रों ने स्वदेश, स्वधर्म एवं स्व संस्कृति की रक्षा के लिए देशवासियों में संकल्प शक्ति एवं राष्ट्र भक्ति जगाने की विधियों के साथ साथ सशस्त्र धर्मयुद्ध करने का भी आदेश दिया है ! इसका मूल मंत्र है –‘ब्राम्हबल’ और ‘क्षात्रबल’ का समुचित समन्वयन करना ! यजुर्वेद {20 :25} का सन्देश है –‘यत्र ब्रह्म च क्षत्रं च सम्यंचौ चरतौ सह। तं लोकं पुण्यं प्रज्ञेषंयत्र देवाः सहाग्निना’ यानी “जिस देश में” ‘ब्राहा बल (ज्ञान विज्ञान की शक्ति) और ‘क्षत्रीय बल’ (सैनिक शक्ति, राष्ट्र भक्ति व सामुदिक बल) मिलकर कार्य करते है, वह देश कल्याणकारी, सुरक्षित और सब प्रकार से उन्नत होता है !”
यही बात महाभारत में बार-बार कही गयी है जैसे –
“अग्रतः चतुरो वेदाः प्रष्टतः सशरोधनु”।इदं ब्राह्मं इदं क्षात्रं शस्त्रदपि शास्त्रदपि ||
“चारों वेदों की प्रमाणिकता और शस्त्र बल से धर्म की पुष्टि करो ! एक तरफ शास्त्रादि के “ब्राम्हबल” और दूसरी तरफ शस्त्रादि के ‘क्षात्र बल’ से स्वधर्म एवं स्वदेश की रक्षा करो !” इसका यही अर्थ हुआ कि देश का प्रत्येक व्यक्ति अपने धर्म शास्त्र को जाने जिससे राष्ट्र भक्ति जागृत हो, स्वधर्म पालन की प्रेरणा मिले तथा स्वदेश रक्षा के लिए यदि आवश्यक हो तो शस्त्रादि से शत्रु से संघर्ष करे ! इसलिए हिन्दू धर्म शास्त्रों में ‘क्षात्र या क्षत्रीय धर्म’ सबसे पहले स्थापित किया गया है और स्वधर्म, स्वसंस्कृति एवं स्वदेश की रक्षा करने हेतु प्रत्येक व्यक्ति के लिए क्षत्रीय धर्म को अपनाना सर्वोपरि माना गया है ! इस विषय में महाभारत कहता है –
“आदि देव भगवान् से सबसे पहले क्षात्र या क्षत्रिय धर्म ही प्रवत्त हुआ है ! अन्य धर्म उसी के अंग है जो बाद में प्रगट हुए है ! जो राजा (नेता) सैनिक दृष्टी से संपन्न नहीं है; धर्म परायण होते हुए भी, वे प्रजा की अनायास ही धर्म विषयक परम गति की प्राप्ति नहीं कर सकते है !”
“क्षत्रीय धर्म ही सर्वश्रेष्ठ है ! शश धर्म असंख्य है और इनके फल भी विनाशशील है ! इस क्षत्रीय धर्म में सभी धर्मो का समावेश हो जाता है ! इसलिए इस धर्म को श्रेष्ठ धर्म कहते है !”
“इस प्रकार संसार भर में क्षत्रीय धर्म ही सब धर्मों में श्रेष्ठ, सनातन, अविनाशी एवं मोक्ष तक पहुंचानेवाला सर्वतोमुखी है !”
“लोक में क्षात्र या क्षत्रिय धर्म ही सबसे श्रेष्ठ है !”
अतः स्वधर्म, स्वदेश एवं स्वबंधुओं की सुरक्षा एवं स्वदेश की सर्वांगीण उन्नति के लिए प्रत्येक व्यक्ति का सबसे पहला कर्तव्य, अपने ह्रदय में बसी क्षत्रिय प्रवत्तियों को जगाकर क्षत्रिय धर्म अपनाना है ! क्यूंकि आत्मा-परमात्मा का चिंतन-मनन, ध्यान, आराधना, कथा-कीर्तन, सत्संग आदि केवल स्वराज्य में ही संभव है ! परतंत्र, हिन्दू धर्म विरोधी, इस्लामी राज्य कदापि नहीं ! संक्षेप में, निर्विघ्न ईश्वर पूजा-पाठ के लिए भी पहले स्वतंत्र, स्वादीन एवं स्वधर्म एवं स्वधार्मानुसार राज्य व्यवस्था का होना अति आवश्यक और अनिवार्य है !
अतः राष्ट्रभक्ति ही ईश्वर भक्ति है, स्वराष्ट्र रक्षा ही ईश्वर पूजा है !
राजधर्म को प्रधानता दो
महाभारत में क्षात्र धर्म को राजधर्म भी कहा है और क्षात्र धर्म के समान राजधर्म को भी सर्वश्रेष्ठ धर्म माना गया है –
“सब धर्मों में राजधर्म सबसे श्रेष्ठ है ! इसी से सब वर्णों की पालना होती है !”
“राजधर्म में सब प्रकार के त्यागों का दर्शन होता है ! राजधर्म में सभी दीक्षाओं का प्रतिपादन होता है ! राजधर्म में सम्पूर्ण विधाएं निहित होती है और राजधर्म में सारे लोकों का समावेश होता है !” यानी “राजधर्म द्वारा ही सारे संसार पर आधिपत्य किया जा सकता है ! हिन्दू राजधर्म का अर्थ है –“राज्य सत्ता पाना और उसे पक्षपात रहित, समतावादी व्यवस्थानुसार लोक कल्याण के लिए न्यायपूर्वक चलाना !” अतः सांसारिक भोगों को प्राप्त करने एवं निर्विन्ध अध्यात्म आराधना करने, दोनों के लिए स्वदेश पर अपनी राज व्यवस्था होना अनिवार्य है !
फिर क्षत्रिय धर्म है क्या ?
आमतौर पर विश्वास किया जाता है कि क्षत्रिय जाती का युद्ध के मैदान में शत्रु से युद्ध करना ही क्षत्रिय धर्म है ! परन्तु वास्तव में, हिन्दू धर्म के अनुसार, क्षत्रिय धर्म की अवधारणा अति व्यापक है !
“शत्रु से युद्ध करते हुए अपने शरीर की आहुति देना, समस्त प्राणियों पर दया करना, लोक व्यवहार का ज्ञान प्राप्त करना, प्रजा की रक्षा करना, विवाद ग्रस्त व पीधित स्त्री-पुरुषों को दुखों से मुक्ति दिलाना आदि सभी बातें क्षत्रिय धर्म में सम्मिलित है !”
अतः क्षत्रिय धर्म का पालन केवल उन लोगों तक सीमित नहीं है जो सेना में भर्ती होकर राष्ट्र रक्षा के लिए बलिदान होते है, अथवा जो एक जाती विशेष के लोग है, बल्कि समाज के हर वर्ग के स्त्री, पुरुषों व बच्चों पर होने वाले सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं राजनैतिक शोषण एवं अन्याय से मुक्ति दिलाने के लिए संघर्ष करने वाले सभी क्षत्रिय है ! वैदिक वर्ण व्यवस्था को मानने वाले प्रत्येक हिन्दू के ह्रदय में ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य-शुद्रत्व की प्रवत्तियां समरसता के साथ विद्यमान रहती है यानि प्रत्येक हिन्दू ब्राह्मण भी है, क्षत्रिय भी है, तथा वैश्य और शूद्र भी है और आवश्यकतानुसार इनमे से कोई भी प्रवृत्ति मुख्य तथा सारे व्यक्तित्व पर छा जाती है जो इस वर्ण की प्रवृत्ति के कर्तव्य को पूरा करती है !
अतः धर्म एवं राष्ट्र रक्षा के सन्दर्भ में, प्रत्येक हिन्दू पहले क्षत्रिय है, फिर कुछ और ! क्षात्र धर्म की उपरोक्त परिभाषा के अनुसार ‘प्रजा की रक्षा करना’ क्षत्रिय का धर्म है और आज भारत की लगभग 80 प्रतिशत प्रजा हिन्दू है जिसके राजनैतिक हितों व धार्मिक अधिकारों की उपेक्षा हो रही है और उनकी रक्षा करने के लिए संघर्ष करना ही क्षत्रिय धर्म का पालन करना है ! अतः आज की आवश्यकता है कि प्रत्येक हिन्दू स्वदेश एवं स्वधर्म की रक्षा के लिए अपने क्षत्रिय धर्म के पालन करने का संकल्प ले और उसे पूरा करें !
धर्मो रक्षति रक्षितः –
पहले भारत में राजा स्वयं और अपने सैनिकों व देशवासियों की सहायता से शत्रु से लड़कर राज्य व प्रजा और उनके धर्म की रक्षा करता था ! भारतीय इतिहास साक्षी है कि न केवल राजा व उसकी सेना ने बल्कि ब्राह्मणों व अन्य जातियों और यहाँ तक कि स्त्रियों और बच्चों ने भी सशस्त्र युद्ध कर राष्ट्र व धर्म की रक्षा में महान योगदान दिया है परन्तु आज के हिन्दू विरोधी छद्म सेक्युलरवादी प्रजातंत्र में प्रजा या हिन्दू को अपने राष्ट्र व धर्म की रक्षा प्रजातंत्रीय ढंग से स्वयं करनी होगी वर्ना वह स्वयं मर जाएगा जैसा कि मनु स्मृति में कहा गया है –
“धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः ।
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत् ||
“धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः ।
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत् ||
“मारा व उपेक्षित किया हुआ धर्म, मारने वाले का नाश, और रक्षित किया हुआ धर्म, रक्षक की रक्षा करता है ! इसलिए धर्म का हनन व उपेक्षा कभी न करो, इस डर से कि मारा हुआ उपेक्षित धर्म, कभी हमको ही न मार डाले !”
प्रजातंत्र में क्षत्रिय धर्म का पालन कैसे करें ?
अपने धर्म और संस्कृति को निर्विघ्न अपनाने के लिए व्यक्ति एवं राष्ट्र की सुरक्षा सबसे पहली आवश्यकता होती है, जो कि राज धर्म से ही संभव है ! अतः हिन्दुओं को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष दिलाने वाली, उनके अन्दर विद्यमान, उनकी क्षत्रिय वृति एवं कर्मठता ही है ! यह क्षत्रिय धर्म ही है जो उन्ह शत्रु से संघर्ष करने को प्रेरित करता है ! महाभारत व मनुस्मृति के धर्म रक्षा के उपरोक्त सूत्र, जितने प्राचीनकाल में सच्चे और उपयोगी थे, उतने आज भी है ! आज हिन्दू धर्म, हिन्दू संस्कृति एवं स्वयं हिन्दुओ कि रक्षा केवल कर्म-काण्ड, कीर्तन, चिंतन-मनन, ध्यान और सत्संग से ही नहीं हो सकती ! निसंदेह अध्यात्म साधना नैतिक शक्ति देती है परन्तु बिया राजधर्म या राजशक्ति के अध्यात्म अपंगु है ! वह भी स्वयं अपनी रक्षा नहीं कर सकता है ! इसके लिए धर्माचार्यों को हिन्दू धर्म शिक्षा कि व्यवस्था प्रत्येक गाँव तक में करनी चाहिए तथा उन्हें अपने उपदेशों में राजधर्म और राजशक्ति पाने की प्रेरणा देनी चाहिए ! इसलिए आधुनिक राजधर्म के पुरोधा वीर सावरकर ने आत्म रक्षा के लिए यह सूत्र दिया :
“राजनीति का हिन्दुकरण और हिन्दू का सैनिकीकरण करो !”
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