शूद्र माँ के पुत्र महर्षि वेदव्यास की अमर कृति - “महाभारत” भाग – 1


कल्पना कीजिए कि यदि कोई दो फुट का बौना यदि 6 फीट के बलिष्ठ व्यक्ति को तर्क के साथ अपने बराबरी का साबित करने पर तुला हुआ हो तो क्या होगा ! सामान्यतः लोग उस बौने की बुद्धि पर हसेंगे और उसकी बातों को नजरअंदाज करेंगे | परन्तु हम विराट के वंशज भारतीय नितांत बौनों के तर्कों से प्रभावित होकर अपने प्राचीन गौरवशाली इतिहास को नजर अंदाज कर खुद को बौनों से भी छोटा मानने लगे है ! हम भारतीयों ने ‘महाभारत’ जैसी प्रबंध काव्य रुपी पूँजी पास में होते हुए भी पश्चिमी विद्वानों के कुप्रचार के कारण स्वयं को निर्धन और दरिद्र मानना प्रारंभ कर दिया है ! 

‘महाभारत’ कुरुक्षेत्र के उस महासंग्राम की कथा है जो हस्तिनापुर के सिंहासन के लिए कौरवों और पांडवों के मध्य लड़ा गया ! इस काव्य में एक लाख से अधिक श्लोक है जो 18 पर्वों में विभक्त है ! महाभारत भारत के दस हजार वर्ष के ज्ञात इतिहास का (अर्थात महाभारत तक के पांच हजार साल के इतिहास का) चौथा बड़ा युद्ध था ! महाभारत से पूर्व परशुराम-हैहयों के मध्य, राम-रावण के मध्य एवं दाशराज नामक महायुद्ध हो चुके थे ! महाभारत नमक अद्भुत प्रबंध काव्य को न सिर्फ रामायण के समान राष्ट्रीय प्रबंध काव्य माना गया बल्कि इसे धर्मशास्त्र और पांचवा वेद कहकर ऐसा स्थान दिया गया जैसा किसी दुसरे ग्रन्थ को नहीं दिया गया, परन्तु हमने अपने उसी महाग्रंथ को पश्चिमी विद्वानों के द्वारा पैदा की गयीं शंका और संदेह के कारण एक गड्ढे में धकेल दिया ! 

इन पश्चिमी विद्वानों ने सर्वप्रथम प्रचारित किया कि महाभारत युद्ध कभी हुआ ही नहीं, फिर कहा कि युद्ध तो हुआ, परन्तु वह एक छोटा सा युद्ध था ( जैसे कुछ गली के दादा लोग अपनी गैंग के साथ आपस में भिड गए हो ) ! इन पश्चिमी विद्वानों ने तर्क यह दिया कि जिस तरह के हथियार और शस्त्रों का उल्लेख महाभारत में किया गया है, वह सब काल्पनिक हो सकते है, क्यूंकि उन दिनों इस तरह की विकसित युद्धकला संभव ही नहीं है ! पश्चिमी विद्वानों के महाभारत सम्बन्धी इन कुतर्कों को आम लोगों के बीच तो कोई स्थान नहीं मिला, परन्तु हमारे देश के इतिहासकारों और शोधकर्ताओं ने इन सभी कुतर्कों को महत्वपूर्ण मान कर अनाप शनाप बातें कहना प्रारंभ कर दिया ! महाभारत के बारे में प्रचारित किया गया कि इतना बड़ा ग्रन्थ एक व्यक्ति लिख ही नहीं सकता ! 

पश्चिमी वैचारिक विधवाओं की एक शैली रही है कि भारत के बारे में पहले एक कल्पना करो, फिर उस कल्पना को सच बता कर झूठे प्रामण जुटा कर उसे ऐतिहासिक तथ्य के रूप में प्रस्तुत कर दो ! इन्होने आर्य जाती के बारे में भी ठीक इसी प्रकार का षड़यंत्र रच कर, भारतीयों के वैदिक कालीन पूर्वजों को भी भारत के अतिरिक्त किसी दुसरे देश से आने की कल्पना को भी ठीक इसी तरह परोसा था ! ऐसे ही कुछ लोगों ने महाभारत के बारे में एक भ्रान्ति को जन्म दिया कि यदि कोई व्यक्ति सम्पूर्ण महाभारत को पढ़ लेगा तो उसके चित्त में विक्षोभ पैदा होगा और उसके परिवार में कुछ न कुछ अशुभ अवश्य होगा ! इस अफवाह का असर यह हुआ कि प्रायः लोग महाभारत का वैसा धार्मिक पाठ या अनुष्ठान नहीं करवाते जैसा अन्य प्राचीन ग्रंथों का कराया जाता है ! 

अंग्रजों की कुटिल नीतियों के सैंकड़ों नमूने हमने ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत आने से लेकर १९४७ में अंग्रेजों के अपने देश लौट जाने तक देखे है ! हमारे देश के साहित्य, ज्ञान, विज्ञान, भाषाओं, इतिहास आदि के साथ उन्होंने कैसे कैसे कूटनीतिज्ञ खेल खेले है, इससे हम भलीं भांति परिचित है ! महाभारत कालीन भारत का समाज वित्त और टेक्नोलॉजी की दृष्टी से परम समुन्नत समाज था ! महाभारत में यहाँ वहां ऐसी घटनाएं बिखरी हुई है, जिनसे ज्ञात होता है कि शरीर विज्ञान और आयुर्विज्ञान उन दिनों विकास की एक ख़ास सीमा तक पहुँच चुके थे, जहाँ आज के ‘टेस्ट ट्यूब बेबी’ सरीखी घटनाएं हो जाया करती है ! महाभारत काल में सन्जय के द्वारा राजमहल में बैठकर कुरुक्षेत्र युद्ध का विवरण अपने स्वामी धृतराष्ट्र को देना महाभारत काल की ऊंची टेक्नोलॉजी को दर्शाता है ! 

सामान्य धनुष बाणों को छोड़ दें तो कुछ विशेष हथियारों का उल्लेख भी महाभारत में मिलता है जो शस्त्र नहीं अस्त्र है, जैसे ब्रह्मशिर अस्त्र, आग्नेयास्त्र, वारुणास्त्र, पाशुपत अस्त्र, शक्ति अस्त्र, वायव्यास्त्र, पार्जन्यास्त्र, ब्रह्मास्त्र आदि ! प्रकृति के विभिन्न तत्वों जैसे वायु, जल, अंधड़ आदि की सहायता से महाविनाश की सामर्थ्य को महाभारत में अस्त्र कहा गया है ! शस्त्रों और अस्त्रों में एक अंतर यह है कि जहाँ एक ओर शस्त्र को चलाने में शारीरिक श्रम और फुर्ती का उपयोग होता है वहीँ दूसरी ओर अस्त्र संभवतः बृहत मानसिक एकाग्रता से ही चलाये जा सकते थे ! महाभारत काल के हथियारों को देखते हुए लगता है कि उस समय की युद्ध कला और शस्त्रास्त्र निर्माण टेक्नोलॉजी, आज की युद्ध कला और शस्त्रास्त्र निर्माण टेक्नोलॉजी के मुकाबले कहीं अधिक उन्नत थी ! 

महाभारत के विषय में एक ऐसा दृष्टिकोण जानना बेहद आवश्यक है कि महाभारत ग्रन्थ के रचियता महर्षि वेद व्यास स्वयं निश्चित रूप से महाभारत युद्ध में प्रयोग हुई अधिकाँश कलाओं की बेहद आवश्यक जानकारियों से भली भांति परिचित थे ! इस युद्ध के विषय में महाकवि वेद व्यास यह बताना नहीं भूलते कि 18 दिनों के इस युद्ध में कौनसी सेना कौन से व्यूह रचना में खड़ी की गयी थी ! इन व्यूहों में वज्र व्यूह, क्रोंच व्यूह, गरुण व्यूह, अर्धचंद्र व्यूह, मकर व्यूह, श्येन व्यूह, मंडल व्यूह, सागर व्यूह, श्रुंगाटक व्यूह, सर्वतोभद्र व्यूह, चक्र व्यूह प्रमुखता से बताये गए है ! कहा ऐसा भी जाता है कि भारतीय थलसेना की महाभारत की इन व्यूह रचनाओं में खासी रूचि रहती है ! जिस दिन अभिमन्यु मारा गया था, उस दिन कौरव सेना अभेद चक्र व्यूह में थी ! अगले दिन अर्जुन ने जब जयद्रथ को मारा तो द्रोणाचार्य ने उसे उस दिन शकट व्यूह में सुरक्षित रखने की भरपूर कोशिश की थी ! यह सारी जानकारी यदि हमारे सामने महाभारत ग्रन्थ के माध्यम से आ सकी है तो इसका श्रेय केवल ओर केवल वेदव्यास सरीखे क्रांतदर्शी महाकवि के सारस्वत नेतृत्व को दिया जाना चाहिए ! 

अगर महाभारत काव्य को काल्पनिक भी मान लिया जाए, तो ऐसी श्रंखलाबद्ध कल्पना करने वाले मनीषी वेदव्यास को क्या प्रणिपात नहीं करना चाहिए ? स्वयं धीवर मां के गर्भ से उत्पन्न होकर भी सम्पूर्ण सृष्टि के पूज्य बने महर्षि वेदव्यास का जीवन चरित्र उन समाजघातकों के मुंह पर करार तमाचा है, जो सदा भारत की वर्ण व्यवस्था को कोसने और उसकी चर्चा के माध्यम से समाज को बांटने का षडयंत्र रचते रहते हैं | अरे मूर्खो भारत में तो बड़े से बड़ा प्रकांड विद्वान् भी प्रवचन देने जिस गद्दी पर बैठता है, उसे व्यास पीठ कहा जाता है | आज की भाषा में कहें तो स्वयं को महा दलित का उत्तराधिकारी घोषित करता है | धीवर जाती को आज अनुसूचित जाती में ही माना जाता है ना ? भारत में वर्ण व्यवस्था - एक व्यवस्था थी, आज की तरह जाती नहीं | जन्म से शूद्र भी अपने ज्ञान और विद्वत्ता से समाज में पूज्य बन जाता था |
क्रमशः 

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